ओड़िसी नृत्य के जरिए प्रस्तुत की विष्णु, शिव, काली की आराधना
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। राजधानी के शहीद भवन सभागार में शुरू हुए कैवल्य संस्कृति कला अकादमी समिति भोपाल यूके के दो दिवसीय शास्त्रीय नृत्य समारोह में पहले दिन रुद्राक्ष फाउंडेशन भुवनेश्वर, उड़ीसा के कलाकारों ने ओड़िसी नृत्य प्रस्तुत किया।
कैवल्य कैवल्य संस्कृति कला अकादमी देश विदेश में भारतीय शास्त्रीय नृत्यों के प्रर्दशन और प्रशिक्षण पर विशेष काम किया जा रहा है। कई वर्षों से यह संस्था भारत के साथ साथ यूके और कई अन्य देशों में इस तरह के आयोजन कर रही है। भोपाल में दो दिन के शास्त्रीय नृत्य समारोह में पहले दिन आयोजित ओड़िसी नृत्य प्रस्तुति में संजीव कुमार जेना और श्रीराधा पाल की जोड़ी ने नृत्य प्रस्तुतियां दीं। संजीव जेना ओड़िसी नृत्य में बहुत जाना माना नाम है। उन्हें गुरु विचित्रानंद स्वैन के खास शिष्यों में गिना जाता है। उन्होंने बीते करीब दस साल में अनेक प्रस्तुतियां देते हुए कई नए अंदाज बना लिए हैं। उन्होंने कुछ समय गुरु लिंगाराज से भी शिक्षा पाई है। उनके नृत्य में उनके गुरुओं की छाप दिखाई देती है। इसी तरह श्रीराधा पाल भी ओड़िसी नृत्य के क्षेत्र में बहुत सुपरिचित चेहरा बन गई हैं। मात्र पांच साल की उम्र में शास्त्रीय नृत्य के क्षेत्र में उतरने वाली श्रीराधा ने प्रारंभिक नृत्य शिक्षा गुरु पोशाली मुखर्जी से कलकत्ता में ली। उसके बाद उन्होंने कई अन्य नृत्य गुरुओं से शिक्षा पाई और धीरे धीरे अच्छी नृत्यांगना के साथ अच्छी नृत्य शिक्षिका भी बन गईं। आज उनके खाते में तमाम अलंकरण और सम्मान जुड़े हुए हैं। संजीव और श्रीराधा की जोड़ी ने कई मंचों पर युगल शास्त्रीय नृत्य पेश कर वाहवाही लूटी है। भोपाल के मंच पर भी उन्होंने अपनी प्रस्तुतियों से यही किया।
इस जोड़ी ने सबसे पहले मंगलाचरण शांताकारम प्रस्तुत किया। इसमें नृत्य के माध्यम से भगवान विष्णु की आराधना की जाती है। इस जोड़ी ने जब गुरु रतिकांत महापात्र की कोरियोग्राफी से सज्जित नृत्य करते हुए मंगलाचरण किया तो पूरा माहौल भक्तिमय हो गया। शंकरावर्णम राग में एकताल पर जब संजीव और श्रीराधा की जोड़ी ने लय पकड़ी तो लगा कि मंच पर कोई जादू सा हो रहा है। मंगलाचरण के बाद उन्होंने बातू नृत्य पेश किया। बहुत से ओड़िसी नृत्य कलाकार मंगलाचरण के बातू ही प्रस्तुत करते हैं। असल में बातू नृत्य के देवता बटुकेश्वर जी का अभिनंदन है। बटुकेश्वर भगवान शिव का रूप माने जाते हैं। मंगलाचरण के बाद उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इस प्रस्तुति की कोरियोग्राफी पद्मभूषण गुरु केलूचरण महापात्रा जी की है। बातू के बाद श्रीराधा ने पल्लवी हंसकल्याणी की प्रस्तुति दी। असल में यह ओड़िसी नृत्य का वह रूप है जिसमें इस नृत्य की तमाम तकनीकें देखने को मिलती हैं। राग हंसकल्याणी में ताल मट्ठा में पेश की प्रस्तुतियां प्रभावित करने वाली थीं। इसकी कोरियोग्राफी गुरु विचित्रनंद स्वैन ने की थी।
इसके बाद अभिनय-शिव पंचाक की प्रस्तुति की संजीव जेना द्वारा की गई। इसमें भगवान शिव की आराधना की जाती है। जाने माने गुरु स्वर्गीय पदमश्री गंगाधार प्रधान द्वारा कोरियोग्राफ किए गए इस नृत्य को पूरी तरह भोलेनाथ को समर्पित किया गया है। पूरी लय में आने के बाद जब भगवान शिव का डमरू बजता है और तांडव नृत्य पूरी गति में होता है और उनकी तीसरी आंख खुलती है तो मंच के सामने बैठे दर्शक रोमांचित हो जाते हैं। कार्यक्रम के अंतिम चरण में संजीव और श्रीराधा की जोड़ी ने मोक्ष्य महाकाली स्तुति प्रस्तुत की। इस नृत्य के द्वारा मां महाकाली और दुर्गा की आराधना की जाती है। इसमें कोरियोग्राफी और संगीत के साथ साथ गीत का बड़ा महत्व होता है। हर ताल और लय के साथ उठते कदम महसूस कराते हैं कि बस काली या दुर्गा प्रगट होने वाली हैं। इसको कोरियोग्राफी गुरु बिचित्रानंदन सेन ने की थी और संगीत गुरु बिनोद बिहारी पांडा का था। इसमें ताल का बड़ा महत्व होता है और ताल संयोजन गुरु बिजय कुमाक बारीक का था।