एमपी में बागियों ने बढ़ाई दोनों दलों की मुश्किलें

Nov 16, 2018

खरी खरी संवाददाता

भोपाल, 16 नवंबर। विधानसभा चुनाव में एक-एक सीट के लिए मचे घमासान के बीच दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस में बागियों ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं। नाम वापसी के अंतिम समय तक तमाम मान मनौव्वल के चलते दोनों ही दलों में कई बागियों ने तो मैदान छोड़ दिया, लेकिन कई अभी भी मैदान में रहकर अपनी ही पार्टी के लिए चुनौती बने हैं। इन पर कार्रवाई की कवायद भी चल रही है और मान मनौव्वल का प्रयास भी हो रहा है। पार्टियों को उम्मीद है कि शायद अभी भी कुछ लोग मान जाएं जो चुनाव में नाम होने के बाद भी पार्टी के पक्ष में खामोश हो जाएं...।   

चुनाव में पार्टी का टिकट न मिलने से नाराज होने का दौर हर चुनाव में होता है, लेकिन इस बार नाराजगी कुछ ज्यादा ही दिखाई पड़ रही है। सत्तारूढ़ भाजपा के साथ सत्ता में आने को बेताब कांग्रेस में भी घमासान मचा है। दोनों ही पार्टियों के अध्यक्षों सहित तमाम दिग्गजों को चुनाव की अति व्यस्तता के बीच नाराज नेताओं को मनाने में काफी समय जाया करना पड़ा। नाम वापसी के समय निकल जाने के बाद भाजपा ने भाजपा ने कई दिग्गजों को पार्टी से बाहर कर दिया। वहीं कांग्रेस ने अभी सिर्फ झाबुआ के पूर्व विधायक जेबियर मेड़ा को पार्टी से बाहर निकाला है, उसकौ 14 प्रमुख बागी अभी भी मैदान में डटे हैं। इस बार किसी भी तरह सत्ता में आने की  कोशिश कर रही कांग्रेस को अभी भी उम्मीद है कि बागी मान जाएंगे। उन्हें समझाइश देकर रास्ते पर लाने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ लगातार कोशिश कर रहे हैं। उन्हें बहुत उम्मीद है कि एक दो दिन में काफी कुछ ठीक हो जाएगा। भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह सहित कई दिग्गजों को बागियों को मनाने के काम में लगा दिया। घंटों फोन लगाकर लगाकर समझाइश दी गई। भोपाल से हेलीकाप्टरों में चढ़कर नेता बागियों के घर पहुंचे। बेइज्जती का सामना भी करना पड़ा लेकिन आखिरी दौर तक कोशिश जारी रही। इसके चलते कई स्थानों पर पार्टी बागियों को मनाने में कामयाब रही लेकिन कई जगह अभी भी बागी मैदान में डटे हैं। नाम वापसी के बाद भी मैदान में डटे रहने पर पार्टी ने सरताज सिंह, केएल अग्रवाल जैसे पूर्व मंत्रियों और ब्रह्मानंद रत्नाकर, सुदामा सिंह, बाबूलाल मेवरा, राजकुमार जैसे पूर्व विधायकों, समीक्षा गुप्ता, धीरज पटेरिया जैसे प्रमुख नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया। इसके बाद भी अभी उम्मीद बनी हुई है कि शायद इनमें से कुछ को लगे कि वे पार्टी से खिलाफ जाकर गलत कर रहे हैं और वे खामोश हो जाएं। इस कवायद में पार्टी के नेता लगे हुए हैं।

दोनों ही पार्टियों के लिए इस चुनाव में एक एक सीट बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। कांटे की टक्कर वाले इस चुनाव में कहीं भी एक तरफा माहौल नहीं है। यही डर बागियों को अंतिम समय तक मनाने के लिए हथियार बना है। सभी को लग रहा है कि बगावत थमने पर चुनाव की सियासी वैतरणी पार करना थोड़ा आसान हो जाएगा।

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