एमपी में आईएएस नहीं चाहते पुलिस कमिश्नर सिस्टम

Mar 29, 2018

सुमन "रमन"
भोपाल, 29 मार्च। गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह ने प्रदेश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने को एक बार फिर हवा दे दी है। उन्होंने इस मुद्दे पर पुलिस मुख्यालय से फीड बैक लेने का दावा किया है, लेकिन यह तय है कि आईएएएस लाबी की सहमति के बिना प्रदेश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होना असंभव है। आईएएस लाबी के अंड़  गों के चलते मध्यप्रदेश के बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू करने का प्रस्ताव बीते करीब बीस साल फाइलों में कैद होकर धूल खा रहा है।
पुलिस एक्ट में प्रावधान है कि दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम यानि पुलिस आयुक्त व्यवस्था हो सकती है। इसके तहत शहर में पुलिस का मुखिया एसपी, डीआईजी अथवा आईजी के बजाय पुलिस कमिश्नर होता है। देश के अधिकांश बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता, चेन्नैई में पुलिस कमिश्नर व्यवस्था ही लागू है। इसमें पुलिस अधिकारियों के पास मजिस्ट्रियल पावर होते हैं। सामान्य तौर पर पुलिस के पास मजिस्ट्रियल पावर नहीं होने के कारण उन्हें मजिस्ट्रियल पावर वाले प्रशासनिक अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। तहसलीदार और नायब तहसीलदार तक के पास मजिस्ट्रियल पावर होते हैं, लेकिन पुलिस के किसी भी आला अफसर के पास यह पावर नहीं होती है। पुलिस को अगर कहीं जरूरत पड़ जाए तो लाठी चार्ज करने से लेकर गोली चलाने अथवा सुरक्षा व्यवस्था पर पुख्ता अमल की खातिर और कदम उठाने के लिए मजिस्ट्रियल पावर वाले अधिकारी से अनुमति लेनी पड़ती है। कई बार तो नायब तहसीलदार जैसा छोटा अधिकारी अनुमति दे तभी पुलिस अपना काम कर सकती है। छोटे मोटे मामलों में भी पुलिस के पास आरोपी के खिलाफ कार्रवाई का कोई अधिकार नहीं होता है। भीड़ वाले मामलों में अस्थायी जेल की घोषणा करने का अधिकार भी पुलिस के पास नहीं होता है। इस व्यवस्था के चलते पुलिस को कई बार दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कानून व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए जरूरी कदम उठाते समय उन्हें मजिस्ट्रियल पावर वाले अफसरों का मुंह ताकना पड़ता है।
इसलिए बहुत दिनों से मांग उठ रही है कि बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू किया जाए। इसे लेकर दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल से गंभीर बहस चल रही है। राज्य की विधानसभा में प्रस्ताव तक आ चुका है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो इसे लागू करने की घोषणा भी कर चुके हैं, लेकिन आज तक मामला गंभीर बहस से आगे नहीं बढ़ा। शिवराज सरकार में जब प्रदेश के भोपाल और इंदौर शहरों में एसपी की जगह डीआईजी को पुलिस प्रमुख बनाने का फैसला हुआ तब भी यह मुद्दा उठा कि पुलिस आयुक्त व्यवस्था लागू करनी चाहिए। अब जब मुख्यमंत्री खुद मान रहे हैं कि डीआईजी सिस्टम फ्लाप साबित हो गया, तब फिर कमिश्नर सिस्टम की मांग उठ रही है। गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह भले ही कह रहे हैं कि इस मामले पर सरकार गंभीर है और पीएचक्यू से फीडबैक लिया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि  जब तक आईएएस लाबी नहीं चाहेगी, तब तक पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू नहीं हो सकता है। आईएएस जानते हैं कि पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने पर बहुत से अधिकार उनके हाथ से छिनकर पुलिस कमिश्नर के पास चले जाएंगे। इससे कलेक्टरों अथवा उनके मातहत अफसरों के  अधिकारों पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन पुलिस वाले उनकी पूछ परख थोड़ी कम कर देंगे। यही एक सोच अभी तक प्रदेश में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने में बड़ा अड़ंगा बनी है। अभी भी इस बात की संभावना बहुत कम है कि मप्र में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू हो पाएगा। अब सरकार बड़े शहरों में डीआईजी की जगह आईजी सिस्टम लागू करने का मन बना रही है लेकिन बाकी व्यवस्थाएं जस की तस बनी रहेंगी।

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