इतिहास के तमाम पहलुओं पर इतिहास कांग्रेस में विचार विमर्श
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 26 फरवरी। इतिहास कांग्रेस के 79वें सत्र का उद्घाटन मंगलवार के भोपाल के आर.सी.वी.पी. नोरोन्हा एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट सभागार में हुआ। उद्घाटन सत्र में ही यह बात उभर कर आई कि आज इतिहास की समझ और उसे तथ्यों से अलग किसी ख़ास विचारधारा के दायरे में परिभाषित करने की कोशिश हो रही है, जो कि भारतीय लोकतांत्रिक परंपरा की विरोधाभासी है। इस मौके पर तमाम गणमान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए भारतीय इतिहास कांग्रेस की सचिव प्रो. महालक्ष्मी रामानाथन ने राज्य सरकार और बरकतुल्ला विश्वविद्यालय का धन्यावाद करते हुए कहा कि इतने कम समय में यह आयोजन करना बेहद ही प्रशंसनीय क़दम है। उन्होंन साथ ही यह भी रेखांकित किया कि दरअसल यह आयोजन पिछले दिसंबर में पुणे के सावित्री बाई फुले विश्वविद्यालय में होना था जिसे कोष की कमी बताकर आख़िरी समय में रद्द कर दिया गया।
भारतीय इतिहास कॉंग्रेस के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी ने सारे प्रतिभागियों को स्वागत किया और इस बात का भरोसा जताया कि आयोजन के लिए कम समय होने के बाद भी हमने आयोजन को सफल बनाने की पूरी कोशिश की। मध्य प्रदेश के प्राचीन इतिहास को याद करते हुए उच्च शिक्षा मंत्री ने कहा भूतकाल और वर्तमान के बीच ये इतिहास कांग्रेस एक सेतु के रूप में काम करेगा ख़ासकर ऐसे वक्त में जब धार्मिक आधार पर इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। मंत्री महोदय ने एक विचार को थोपने के ख़तरे की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस प्रवृत्ति से हमेशा ही लोकतंत्र की प्रक्रिया बाधित होती है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने उद्घाटन सत्र के अपने संबोधन में मौजूदा समय में उन शक्तियों की ओर इशारा किया जो इतिहास को मिथ और मिथक के आधार पर फिर से लिखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यह कोशिश इसलिए भी दुर्भाग्यपूर्ण है क्योंकि यह तथ्यों और भारतीय परंपराओं के साथ एक विरोधाभास पैदा करती है जो हमेशा ही वैज्ञानिक सोच को आत्मसात करने की बात करती है। उन्होंने अपने संबोधन में इस बात का उल्लेख भी किया कि आज भी देश का आम आदमी भारत की आत्मा के साथ खड़ा है। भोपाल में भारतीय इतिहास सम्मेलन के इस वार्षिक आयोजन को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि इसका आयोजन पिछले दिसंबर में पुणे में होना था लेकिन कोष की कमी का जो कारण बताकर इसे रद्द किया गया वह कई आशंकाओं को जन्म देता है। उन्होंने आगे कहा कि 1935 में जब से इतिहास कांग्रेस की स्थापना हुई है आयोजन रद्द होने के महज़ तीन ही उदाहरण मिलते हैं जिसमें पिछला इसी तरह की परिस्थिति आई थी जब साल 2001 में इसे भोपाल में ही आयोजित किया गया था। मध्य प्रदेश के इतिहास की ओर इशारा करते हुए दिग्विजय सिंह ने इतिहासकारों से कहा कि अभी भी कई ऐसे मुद्दे हैं जो शोध की मांग करते हैं, चाहे आदि शंकराचार्य के जन्म को लेकर हो या मध्य प्रदेश में उनकी दीक्षा के सटीक स्थान की बात हो। साथ ही आज ज़रूरत उन गुमनाम योद्धाओं पर भी रोशनी डालने की ज़रूरत है जिन पर अभी तक संतोषजनक काम नहीं हो पाया है, चाहे झलकारी बाई हों, या आदिवासी वीरांगना दुर्गावती।