आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देश में सियसी बहस छिड़ी
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 2 अगस्त। आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूरे देश में सियासी बहस छिड़ गई है। फैसला सात जजों की संविधान पीठ ने बहुमत के आधार पर दिया है, इसलिए इस फैसले के खिलाफ कोई नहीं जा रहा है, लेकिन फैसले को अमली जामा पहनाने में होने वाली दिक्कतों पर जिरह हो रही है।
गुरुवार को देश के सर्वोच्च न्यायालय के सात जजों की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के आरक्षण में भी सब कैटेगरी निर्धारित की जा सकती है। अभी सब-क्लाशीफिकेशन सिर्फ ओबीसी के आरक्षण में ही किया जाता है। ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर का प्रावधान किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने भले ही ओबीसी आरक्षण की सब क्लासीफिकेशन व्यवस्था को आधार बनाते हुए अपना फैसला दिया है, लेकिन इस पर सियासी बहस शुरू हो गई है। वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश आंबेडकर ने एक्स पर इस फ़ैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह फ़ैसला समानता के मौलिक अधिकार के ख़िलाफ़ जाता है। उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि पिछड़ापन का निर्णय किस आधार पर किया जाएगा। सुप्रीम फैसला सुनाने वाली सात जजों की पीठ में 6 जज अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिए जाने के पक्ष में थे। सिर्फ एक जज जस्टिस बेला त्रिवेदी इस राय से असहमत थीं। कोर्ट के चार जजों ने अनुसूचित जाति और जनजाति में क्रीमी लेयर पर भी अपने विचार रखे। क्रीमी लेयर का मतलब ये है कि वो वर्ग वित्त और सामाजिक रूप से विकसित हैं और वो आरक्षण का उपयोग नहीं कर सकते। जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि अन्य पिछड़े वर्ग आरक्षण जैसे अनुसूचित जाति और जनजाति में भी क्रीमी लेयर आना चाहिए। पर उन्होंने ये नहीं कहा कि क्रीमी लेयर कैसे निर्धारित किया जाएगा। इस पर दो और जजों ने सहमति जताई। वहीं जस्टिस पंकज मित्तल ने कहा कि अगर एक पीढ़ी आरक्षण लेकर समाज में आगे बढ़ गई है, तो आगे वाली पीढ़ियों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। हालांकि, ये बस जजों की टिप्पणी थी और भविष्य के मुक़दमों पर बाध्य नहीं होगा। क्रीमी लेयर का सवाल कोर्ट के सामने नहीं था। फ़िलहाल अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर क्रीमी लेयर लागू है और अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए नौकरी में वृद्धि में भी क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू है।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इससे दलित वोट पर भी असर पड़ेगा। जादवपुर यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर और पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाजीत नस्कर का कहना है कि सब-क्लासीफिकेशन मतलब एससी-एसटी वोट बँट जाएं। इससे एक समुदाय के अंदर राजनीतिक बँटवारा पैदा होगा। बीजेपी ने भी कोर्ट में सब-क्लासिफिकेशन का समर्थन किया है। हो सकता है कि इनसे उनको सियासी फ़ायदा मिले, राज्य स्तर की राजनीतिक पार्टियां भी अपने फ़ायदे के मुताबिक़ सब-क्लासिफिकेशन लाएंगी। हालांकि, उन्होंने इस फ़ैसले से असहमति जताई और कहा, “अनुसूचित जाति का आरक्षण छुआछूत के आधार पर दिया जाता है। इसका सब-क्लासिफिकेशन नहीं कर सकते। इस फ़ैसले का आने वाले दिनों में ज़ोर-शोर से विरोध होगा।”