असली मां से बेहतर साबित होती है राजकुमार को पालने वाली लड़की
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। जाने-माने रंगकर्मी कुलभूषण दलौरी की स्मृति में शहीद भवन में आयोजित दो दिवसीय सांस्कृतिक समारोह के पहले दिन नाटक खड़िया का घेरा मंचित किया गया। इसका निर्देशन आलोक चटर्जी ने किया था। यह नाटक द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका को दिखाता है। समारोह का आयोजन संस्कृति संचालनालय द्वारा मप्र नाट्य विद्यालय के समन्वय में स्वराज संस्थान संचालनालय के सहयोग से किया गया है।
नाटक खड़िया का घेरा प्रख्यात जर्मन नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त की मूल रचना पर आधारित है। इसका हिंदी अनुवाद जाने माने साहित्यकार कमलेश्वर ने किया है। यह नाटक 1944 में लिखा गया था और ब्रेख्त के चार प्रमुख नाटकों में से एक है। यह दुनिया की कई भाषाओं में अनुवदित किया गया है। यह मूलत: चीनी नाटककार ली शिंगडाओ के नाटक द काकेसन चाक सर्कल पर आधारित है। इस नाटक में विश्व युद्ध की विभीषिका को दिखाया गया है। एक किसान की लड़की राजपरिवार के एक बच्चे को बचाती है। उसकी देखभाल वह एक मां की तरह करती है। अंतत: वह किसान पुत्री उस राजकुमार के अमीर माता पिता से बेहतर मां बन जाती है। उसी दौरान गांव का एक मुंशी गांव का अजदक (जज) बना दिया जाता है। मुंशी जंग से उपजी बेरोजगारी के कारण छोटी मोटी चोरियां करता रहता है। सत्ता के उलटफेर में उसकी किस्मत साथ देती है और वह जज बना दिया जाता है। वह उल्टे सीधे न्याय देता है लेकिन उसके न्याय तर्क संगत होते हैं। अपने इस तरह के फैसलों के कारण वह काफी प्रसिद्ध हो जाता है। एक दिन किसान की बेटी का मामला इस जज के पास आता है। इसमें साबित होता है कि वह एक बेहतर मां है। इसी के साथ नाटक का समापन होता है।
यह नाटक जिस तरह की दुनिया हमारे सामने पेश करता है, उसकी अनुगूंज हमें अपने इतिहास और वर्तमान में मिलने लगती है। नाटककार ने इस नाटक के ज़रिये कुछ ऐसे मुद्दों को छूने की कोशिश की है जो द्वीतीय विश्व युद्ध की त्रासदी से उपजे हैं, किन्तु आज भी प्रासंगिक हैं। नाटक को ब्रेख्तियन शैली में करते हुए एक ही अभिनेता द्वारा कई भूमिका अदा कर, मुखौटों, बैनरों और संगीत का प्रयोग कर जगह-जगह एलिनेशन को दिखाने की भी कोशिश की गई है जो ब्रेख्त के एपिक थियेटर की मूल अवधारणा है।
मंच पर- अजदक- कमल पाराशर, ग्रूशा-आयुषी जीना, साइमन-राहुल कुशवाहा, गवर्नर जार्जी-राघवेन्द्र कौशिक, गवर्नर की बीबी-अंजली सिंह, शाल्वा-शुभम भावसार, मोटा राजकुमार-रोहित कुमार,माइकल-सत्यम क्षैत्री, शौवा-गोविंद परमार, सैनिक अधिकारी-सम्बित बेहरा, सिपाही-घनश्याम सोनी, बावर्चिन-नेहा वर्मा, ग्रूशा का भाई-गौरव सिंह, ग्रूशा की भाभी-शिवानी पीपलीवाल, लुउविका-दीक्षा सेंगर, देहाती-राजेश, केतकी। देहातिन-केतकी अशड़ा, सौम्या भारती, दूधवाला-अशोक रैदास, डाक्टर-शिवानी पीपलीवाल, ससुर-अशौक रैदास, पादरी-विनय बाघेला, थूसप-शुभम भावसार, गाँववाले-अमन, रूपेश, आयुषी। ग्रूशा की सास-केतकी अशड़ा। हथियारबंद-विनय, अशोकए रोहितए राजेश। भतीजा.प्रियम जैनए वकील.अमनएरोहितए साईस रूपेशए विनयए भिखारी-केतकी, रोहित, सत्यम, घनश्याम, राघवेन्द्र, गोविंद, फरार ड्यूक-राघवेन्द्र, बुढ़िया-शिवानी, डाकू-रूपेश लामा, जमींदार-रोहित, शुभम, सवार-प्रियम जैन, बूढ़ा-बुढ़िया राजेश, शिवानी।
मंच परे- पूर्वाभ्यास प्रभारी विश्वनाथ पटैल। प्रापर्टी केतकी अशड़ा, सम्बित बेहरा, घनश्याम सोनी। वेशभूषा-नेहा वर्मा, शिवानी पीपलीवाल, दीक्षा सेंगर। मंच व्यवस्था- राजेश, कमल, रोहित, मनीष, सौम्या। रूपसज्जा- अंजली, आयुषी, रक्षा। प्रचार प्रसार- विनय, अमन, अशोक, रूपेश। मंच प्रबंधन-मो शहंशाह, केतकी, शुभम, अमन। कविता लेखन, गीत पुनर्रचना एवं संगीत, परिकल्पना एवं निर्देशन आलोक चटर्जी।