छठ गीतों का पर्याय बन गई शारदा सिन्हा छठ पर ही संसार से विदा

Nov 05, 2024

खरी खरी संवाददाता

नई दिल्ली, 5 नवबंर। छठ महापर्व के गीतों का पर्याय बन गईं मशहूर लोकगायिका शारदा सिन्हा ने इस छठ महापर्व पर नश्वर संसार को अलविदा कह दिया। दिल्ली के एम्स अस्पताल में उनका 72 साल की उम्र में निधन हो गया। वे कई दिनों से बीमार चल रही थीं। शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जानकारी देते हुए लिखा कि मां को छठी मईया ने अपने पास बुला लिया है, मां अब शारीरिक रूप में हम सब के बीच नहीं रहीं।"

देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित शारदा सिन्हा पिछले कई दिनों से एम्स अस्पताल में भर्ती थीं।, शारदा सिन्हा 2018 से मल्टिपल मायलोमा से जूझ रही थीं. यह एक तरह का ब्लड कैंसर है. इसमें बोन मैरो में प्लाज्मा सेल अनियंत्रित तरीक़े से बढ़ने लगते हैं। इससे हड्डियों में ट्यूमर्स बनने लगते हैं। मुश्किल से डेढ़ महीने पहले ही 22 सितंबर को शारदा सिन्हा के पति बृजकिशोर सिन्हा का निधन ब्रेन हेमरेज के कारण हो गया था। कहा जा रहा है कि अपने पति के निधन के बाद से ही शारदा सिन्हा सदमे में थीं। मंगलवार को ही शारदा सिन्हा के बेटे अंशुमान सिन्हा ने अपने यूट्यूब चैनल पर अपनी माँ की सेहत से जुड़े अपडेट साझा किए थे। अंशुमान ने शारदा सिन्हा के लाखों प्रशंसकों को संबोधित करते हुए कहा था, ''माँ वेंटिलेटर पर हैं। बहुत बड़ी लड़ाई में जा चुकी हैं। इस बार काफ़ी मुश्किल है।"

शारदा सिन्हा को उत्तर भारत के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में भी देखा जाता है। बिहार और पूर्वांचल में छठ पर्व के दौरान शारदा सिन्हा की आवाज़ लगभग सभी घरों में गूंजती है।शारदा सिन्हा की गायकी करियर की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी। उन्होंने भोजपुरी, मैथिली और हिन्दी में कई लोकगीत गाए हैं। उनकी गायकी में बिहार से पलायन और महिलाओं के संघर्ष को काफ़ी जगह मिली है। फ़िल्म 'हम आपके हैं कौन' में बाबुल गाने को शारदा सिन्हा ने ही गाया था। यह गाना आज भी बेटियों की शादी के बाद विदाई के दौरान नियम की तरह बजाया जाता है। शारदा सिन्हा को 2018 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। शारदा सिन्हा के गाए गीत कई मौक़ों पर अनुष्ठानों में नियम की तरह शामिल होते हैं। वो चाहे जन्म का उत्सव हो या मृत्यु का शोक, चाहे त्योहार हो या मौसम का करवट लेना। शारदा सिन्हा के बाद भी कई लोकगायिकाएं आईं, लेकिन किसी को वो पहचान नहीं मिल सकी जो शारदा सिन्हा को मिली। इसकी एक वजह उनकी ख़ास तरह की आवाज़ है, जिसमें इतने सालों के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया था।