शवों के साथ बर्बरता पर भारत ने आपत्ति दर्ज कराई
नई दिल्ली, 2 मई। कश्मीर के कृष्णा घाटी सेक्टर में अपने दो जवानों के शवों के साथ हुई बर्बरता पर भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना से आपत्ति दर्ज कराई है। भारतीय सेना के डीजीएमओ (डायरेक्टर जेनरल ऑफ़ मिलिटरी ऑपरेशंस) लेफ़्टिनेंट जनरल ए.के. भट्ट ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष के साथ हाटलाइन पर बात की। उन्होंने पाकिस्तानी कमांडर से कहा कि सैनिकों के शवों को क्षति-विक्षत करना सभ्यता के मानदंडों से परे एक अमानवीय कृत्य है और भारत पाकिस्तानी सैनिकों की इस करतूत की निंदा करता है।
सूत्रों के अनुसार दोनों देशों की सेनाओं के कमांडरों के बीच हाट लाइन पर हुई चर्चा में भारत ने पाकिस्तानी सेना बार्डर एक्शन टीम (बैट) को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। बताया जाता है कि पाकिस्तानी सेना के कमांडर ने इस बातचीत में इस बात से साफ इंकार किया कि पाकिस्तानी सेना के जवानों ने भारतीय सैनिकों के शवों के साथ बर्बरता की है। पाकिस्तान सेना का जनसंपर्क विभाग इस हाटलाइन बैठक के पहले भी प्रेस नोट जारी कर शवों के साथ बर्बरता किए जाने से इंकार कर चुका था। पाकिस्तान इस बात से भले ही इंकार करे, लेकिन जहां यह घटना हुई है, कृष्णा घाटी सेक्टर का वह हिस्सा पाकिस्तान के बट्टाल सेक्टर के सामने पड़ता है। इस बात से सबूत है कि पाकिस्तानी सेना ने सीज फायर तोड़ते हुए फायरिंग की और उसकी आड़ में बैट के जवान एलओसी पर भारतीय सीमा में अंदर तक आ गए। उन्होंने भारतीय गश्ती दल पर हमला किया और हमले में शहीद जवानों के सिर काट दिए।
दोनों देशों के सैन्य कमांडरों की हाटलाइन चर्चा में कोई हल नहीं निकला लेकिन भारत की आपत्ति दर्ज होने के बाद इसका संदेश पूरी दुनिया में चला गया। भारत सरकार के ऊपर इस समय पूरे देश का दबाव है कि वह हमारे सैनिकों के सिर काटने वालों से बदला ले। सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है और कोई बड़ा एक्शन लेने की उम्मीद की जा रही है। संभवतः उसी दिशा में सरकार फूंक फूंक कर कदम रख रही है।
हालांकि यह पहली बार नहीं हुआ है। दोनों देशों के बीच कारगिल की जंग के दौरान भी सैनिकों के शवों के साथ ऐसी बर्बरता की ख़बरें आई थीं। ना तो सैनिकों के शव क्षत-विक्षत करने के आरोप नए हैं और ना ही उन पर दी जाने वाली सफ़ाई। सैनिकों के शवों के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाना चाहिए, इस बारे में अंतरराष्ट्रीय कानूनों में पर्याप्त निर्देश दिए गए हैं। सवाल ये है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा या फिर नियंत्रण रेखा पर सैनिकों या उनके शवों के साथ हुई बर्बरता को रोकने के क्या कारगर कदम हो सकते हैं?
अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत जिनेवा कनवेंशन से लेकर ऑक्सफ़ोर्ड मैनुअल तक में, साफ़ कहा गया है कि शवों के साथ किसी तरह की बदसलूकी की इजाज़त किसी देश की सेना को नहीं है। इंटरनेशनल कमेटी ऑफ़ द रेड क्रॉस के मुताबिक़ सैनिकों के शवों के साथ कोई छेड़छाड़ ना हो, इसे सबसे पहले क़ानून के तौर पर 1907 के हेग कनवेंशन में अपनाया गया, फिर इसे जिनेवा कनवेंशन में भी शामिल किया गया है। जिनेवा कनवेंशन के अनुसार- ''टकराव में शामिल दोनों पक्षों को शवों को बुरे व्यवहार से बचाने के लिए क़दम उठाने चाहिए। युद्ध में मुठभेड़ या किसी और वजह से मारे गए शख़्स के शव का सम्मान किया जाना चाहिए। ''साल 1880 के ऑक्सफ़ोर्ड मैनुएल के मुताबिक़, ''युद्ध के मैदान में पड़े हुए शव के साथ बर्बरता पर पूरी तरह पाबंदी है। विशेषज्ञों का कहना है कि युद्ध में जानें जाती हैं, ये स्वाभाविक है, लेकिन मानवीय मूल्य और अंतरराष्ट्रीय कानून इस बात की इजाज़त नहीं देते कि शवों के साथ ज़्यादती हो।