रिजर्व बैंक और सरकार में मचा घमासान

Oct 31, 2018

 खरी खरी डेस्क 

नई दिल्ली, 31 अक्टूबर। भारत सरकार के लिए यह बेहत चिंताजनक विषय हो सकता है कि सरकार और सरकार से सम्बद्ध स्वायत्त संगठनों को बीच शीत युद्ध सा चल रहा है। सीबीआई की अंदरूनी कलह का खुले आम सड़कों पर आना इसी शीत युद्ध का प्रतिफल है। सीबीआई और आईबी तथा दिल्ली पुलिस के बीच घमासान भी इसी कारण से बढ़ा है। वित्त मंत्रालय और प्रवर्तन निदेशालय के बीच भी इसी के चलते विवाद बढ़ता जा रहा है। इसी कड़ी में अब वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक के बीच घमासान भी जुड़ गया है।

सरकार और सीबीआई के बीच घमासान भले ही अब सामने आ रहा हो, लेकिन यह शीतयुद्ध नोटबंदी के समय से चल रहा है। रिजर्व बैंक किसी भी हालत में नोटबंदी के फैसले के पक्ष में नही था, लेकिन मजबूरी में सरकार का फैसला मनना पड़ा। खामियाजा पूरे देश ने भुगता।  इससे जो उम्मीदें देश की आंखों में जगाई गई थीं, एक भी पूरी नहीं हुईं। सरकार ने जनता का कोपभाजन खुद बनने के बजाय सारा ठीकरा आरबीआई के ऊपर फोड़ दिया। सरकार अभी भी वही कर रही है, इसलिए माहौल ठीक होने के बजाय और खराब हो रहा है।

हालत यह है कि आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने हाल ही में चेतावनी दी है कि यदि हालात ठीक नहीं किए गए तो देश में आर्थिक संकट आ सकता है। ख़बरों के मुताबिक आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफ़ा देने तक का मन बना चुके हैं। कई मुद्दे ऐसे हैं जो मौजूदा तनाव की वजह बने। कहा जा रहा है कि सरकार आरबीआई के ब्याज़ दरों में कटौती न करने से नाख़ुश थी। आरबीआई ने दरें कम करने के बजाय बढ़ा दीं। भारतीय रिज़र्व बैंक इसे अपना सर्वाधिकार मानता है। इसके बाद सरकार और आरबीआई के बीच अधिकारों को लेकर कई बार तकरार हुई।

एनपीए को लेकर भी विवाद जारी है। फ़रवरी में आरबीआई ने एक सर्कुलर जारी कर एनपीए (डूबे हुए क़र्ज़) को परिभाषित किया और क़र्ज़ देने की शर्तें भी फिर से तय कीं। सरकार ने आरबीआई के इस रुख़ को बैंकों के प्रति बेहद कड़ा माना। इस सर्कुलर की वजह से दो सरकारी बैंकों को छोड़कर सभी सरकारी बैंक की क़र्ज़ देने की क्षमता सवालों के घेरे में आ गई। जब नीरव मोदी घोटाले से जुड़ी जानकारियां और ख़बरें आईं तो उसी समय सरकार ने आरबीआई की निगरानी से जुड़ी नीतियों पर सवाल उठाए। इसी समय आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने सरकारी बैंकों पर निगरानी रखने के लिए और अधिक अधिकार मांगे ताकि उन्हें निजी बैंकों को समकक्ष लाया जा सके। आईएल एंड एफ़एस ( इंफ्रास्ट्रक्चर लीसिंग एंड फ़ाइनेंशियल सर्विसेज़) के अपना क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहने के बाद सरकार ने आरबीआई से वित्तीय संकट से जूझ रही ग़ैर बैकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफ़सी) को राहत देने के लिए कहा था। आरबीआई ने इस दिशा में कोई क़दम नहीं उठाया।

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के बोर्ड सदस्य नाचिकेत मोर को कार्यकाल समाप्त होने से दो साल पहले ही पद से हटा दिया गया। मोर को इस बारे में औपचारिक जानकारी भी नहीं दी गई। मोर ने कई मुद्दों पर सरकार का खुला विरोध किया था. इसे ही उन्हें पद से हटाए जाने की वजह माना गया। केंद्रीय बैंक के उच्च अधिकारी इससे सकते में आ गए। सरकार के पेमेंट्स के लिए अलग से नियामक स्थापित करने के फ़ैसले का आरबीआई ने ख़ुला विरोध किया। आरबीआई ने अपनी वेबसाइट पर एक नोट जारी कर इसका विरोध दर्ज करवाया। हालांकि सरकार ने कहा था कि वो आरबीआई के क्षेत्राधिकार में दख़ल नहीं दे रही है। अब एक बार फिर वित्त मंत्री ने बैंकों द्वारा दिए गए ऋणों को लेकर रिजर्ब बैंक पर अनदेखी का आरोप लगा रहे हैं। इसके चलते शीत युद्ध और बढ़ने की आशंका हो गई है।