पति की सैलरी के तीस फीसदी हिस्से पर पत्नी का अधिकार
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 7 जून। पति की सैलरी के तीस फीसदी हिस्से पर पत्नी का हक बनता है। इसलिए तलाक की स्थिति में पति की सैलरी का तीस फीसदी हिस्सा पत्नी को गुजारे भत्ते के रूप में दिया जाना चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में यह निर्णय देते हुए कहा कि कमाई के बंटवारे का एक फार्मूला तय है। इसके अनुसाग अगर पति की आय पर किसी और की निर्भरता नहीं है तो उसकी आय के तीन हिस्से होंगे। इसमें दो हिस्सों पर पति का और एक हिस्से पर पत्नी का हक होगा। गुजारे भत्ते के रूप में पत्नी को यह हिस्सा तब तक मिलता रहेगा जब तक वह जीवित है या फिर वह दूसरी शादी नम कर ले। दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस संजीव सचदेवा ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पति की कुल आय का 15 फीसदी हिस्सा गुजारा भत्ता के रूप में देने का आदेश सुनाया गया था। इसी के खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील की थी। मिली जानाकारी के मुताबिक, वर्ष 2006 में पीड़ित महिला की शादी केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआइएसएफ) में तैनात इंस्पेक्टर हुई थी। 5 मई को शादी हुई और आपसी विवाद के चलते महज छह महीने के भीतर यानी 15 अक्टूबर 2006 को दोनों अलग हो गए। इसके बाद महिला ने गुजारा भत्ते के लिए याचिका दी थी। फरवरी 2008 में महिला का गुजारा भत्ता तय किया गया। इसके तहत उनके पति को निर्देश दिया गया कि वह अपनी कुल सैलरी का 30 फीसदी पत्नी को दे। फैसले को महिला के पति ने चुनौती दी। ट्रायल कोर्ट ने गुजारा भत्ता 30 फीसदी से घटाकर सैलरी का 15 फीसदी कर दिया। तब फैसले को महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी। महिला के वकील ने दलील दी कि ट्रायल कोर्ट ने कोई ठोस कारण बताए बिना ही गुजारा भत्ता 15 फीसदी कर दिया।
वहीं पति का तर्क था कि ट्रायल कोर्ट ने इस आदेश पर निर्णय सुनाया था कि पत्नी की अन्य स्रोत से भी आय होती है। इसका पता उसके बैंक खाते की स्टेटमेंट से लगाया जा सकता है। इसके बाद महिला ने अपने अकाउंट की डीटेल में बताया कि, उसके खर्चे के लिए पिता ने उसे पैसे दिए थे। दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस संजीव सचदेवा ने अपने फैसले में कहा यह निश्चित है कि साल 2008 में महिला के लिए जो गुजारा भत्ता तय किया गया था वह सही था। अदालत ने निर्देश दिया है कि पति के खाते से पैसे काट कर महिला के खाते में भेजे जाएं।