देश में वन नेशन वन इलेक्शन का खर्चों पर कितना पड़ेगा असर
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 19 सितंबर। देश में इस समय सियासी चर्चा के सबसे हाट इश्यू 'वन नेशन वन इलेक्शन' को लेकर खर्चों का जिक्र प्रमुखता से किया जा रहा है। सरकार दावा कर रही है कि एक साथ चुनाव होने से खर्चों में कमी आएगी, वहीं कई लोगों का मानना है कि इससे खर्चों में कोई कमी नहीं आएगी। उनका दावा है एक साथ चुनाव के लिए लाखों की संख्या में अतिरिक्त ईवीएम और वीवीपीएटी की जरूरत पड़ेगी। इन्हें खरीदने में एक बड़ा बजट अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा। वहीं एक वर्ग का यह भी तर्क है कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' से चुनावों पर होने वाले ख़र्च भी कम होगा। इससे सरकारी कर्मचारियों को बार-बार चुनावी ड्यूटी से भी छुटकारा मिलेगा।
चुनाव खर्चों को लेकर देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत कहते हैं कि अभी तो भारत में चुनाव खर्च सबसे सस्ता है। उनके मुताबिक भारत में चुनाव खर्च करीब एक अमेरिकी डालर (वर्तमान में 84 रुपए) प्रति वोटर आता है। इसमें चुनाव की व्यवस्था,सुरक्षा, कर्मचारियों का तैनाती, ईवीएम और वीवीपीएटी पर होने वाला ख़र्च शामिल है। रावत का कहना है कि भारत के ही पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले आम चुनाव में क़रीब 1.75 डॉलर प्रति वोटर ख़र्च हुआ था। ओपी रावत के मुताबिक़ जिन देशों के चुनावी ख़र्च के आंकड़े उपलब्ध हैं, उनमें केन्या में यह ख़र्च 25 डॉलर प्रति वोटर होता है, जो दुनिया में सबसे महंगे आम चुनावों में से शामिल है।
भारत के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एसवाई कुरैशी कहते हैं कि भारत में चुनाव कराने में क़रीब चार हजार करोड़ का ख़र्च होता है, जो कि बहुत बड़ा नहीं है। इसके अलावा राजनीतिक दलों के क़रीब 60 हज़ार करोड़ के ख़र्च की बात है तो यह अच्छा है। इससे नेताओं और राजनीतिक दलों के पैसे ग़रीबों के पास पहुंचते हैं। भारत में बदलते समय में चुनावों में तकनीक का इस्तेमाल भी बढ़ा है। इसके बावजूद भी चुनावों के दौरान बैनर-पोस्टर और प्रचार सामग्री बनाने, चिपकाने वालों से लेकर ऑटो और रिक्शेवाले तक को काम मिलता है। इस तरह से आम लोगों और उनकी अर्थव्यवस्था के लिए चुनाव कई मायनों में अच्छा भी माना जाता है। एसवाई क़ुरैशी के मुताबिक़ अगर लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाएं तो इसके लिए मौजूदा संख्या से तीन गुना ज़्यादा ईवीएम की ज़रूरत पड़ेगी। भारत में इस्तेमाल होने वाले एक ईवीएम की क़ीमत क़रीब 17 हज़ार रुपये और एक वीवीपीएटी की क़ीमत भी क़रीब इतनी ही है। ऐसे में 'वन नेशन वन इलेक्शन' के लिए क़रीब 15 लाख़ नए ईवीएम और वीवीपीएटी ख़रीदने की ज़रूरत पड़ सकती है। इतनी मशीनों की खरीदी के लिए सरकार को बड़ी राशि खर्च करनी पडेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि एक बार ईवीएम और वीवीपीएट खरीदने के बाद चुनाव खर्च में कमी आ सकती है। अन्य व्यवस्थाओं के मामले में खर्चे कम होने की कोई बहुत उम्मीद नही है। अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो भी कई चरणों में कराने होंगे ताकि सुरक्षा एवं अन्य व्यवस्थाओं से जुड़े कर्मचारियों की ड्यूटी लगाई जा सके। दो चरणों के बीच में जो अंतर होगा, उसी अवधि में सुरक्षा कर्मचारियों की ड्यूटी अलग अलग स्थानों पर लगाई जाएगी तो उसका खर्चा वही होगा जो अलग अलग समय पर चुनाव कराने में होता है। इससे राजनीतिक दलों के खर्चों में जरूर कमी आ सकती है क्योंकि उन्हें एक बार में अपने प्रचार अभियान पर खर्च करना पड़ेगा। हालांकि बार बार चुनाव होने से चुनाव प्रचार अभियान से जुड़े लोगों की बार बार होने वाली आमदनी प्रभावित होगी।