जन्म दिन पर जिंदगी की जंग हार गए एनडी तिवारी
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 18 अक्टूबर। समकालीन भारतीय राजनीति के कद्दावर नेताओं में शुमार उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी का आज उनके जन्म दिन पर ही निधन हो गया। दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह 92 वर्ष के थे।वह पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। पिछले महीने यानी 20 सितंबर को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक के चलते दिल्ली में साकेत के मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। ताउम्र अपने सियासी वजूद को लेकर चर्चा में रहे तिवारी को उम्र के आखिरी पड़ाव में अपने निजी रिश्तों को लेकर चर्चाओं में रहना पड़ा। एक युवक रोहित शेखर ने तिवारी को अपना जैविक पिता बताते हुए कानूनी लड़ाई छेड़ दी। लंबी जद्दोजेहद के बाद तिवारी को मानना पड़ा कि रोहित उनका ही बेटा है। बाद में उन्होंने रोहित की मां उज्जवला से 89 साल की उम्र में शादी कर ली। अब उनके परिवार में पत्नी उज्जवला और पुत्र रोहित हैं। नारायण दत्त तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 को तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविंस में नैनीताल के पास बलूटी गांव में हुआ था। आज यह गांव उत्तराखंड में नैनीताल जिले में स्थित है। नारायण दत्त तिवारी के पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए, एलएलबी की पढ़ाई की।एनडी तिवारी उत्तराखंड के अभी तक के इकलौते मुख्यमंत्री रहे हैं, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। नए-नवेले राज्य उत्तराखंड के औद्यौगिक विकास के लिए उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है। उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के लिए तिवारी के योगदान की सराहना की है।पहली बार 1976 से अप्रैल 1977, दूसरी बार तीन अगस्त 1984 से 10 मार्च 1985 और तीसरी बार 11 मार्च 1985 से 24 सितंबर 1985 और चौथी बार 25 जून 1988 से चार दिसंबर 1989 तक उप्र के मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में गिने जाने वाले एनडी तिवारी कभी प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार थे। लेकिन 1991 को लोकसभा चुनाव महज कुछ हजार वोटों से हार जाने के कारण उनकी जगह पीवी नरसिंहाराव प्रधानमंत्री बन गए। राजीव गांधी के बोफोर्स कांड में फंसने के समय भी उन्हें कुछ समय के लिए प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया था लेकिन उन्होंने इसे यह कहकर नकार दिया था कि इससे राजीव गांधी पर पलायनवादी होने का आरोप लग जाएगा। कांग्रेस के लिए इतना सोचने और करने वाले तिवारी को उम्र के आखरी दौर में भाजपा का दामन थामना पड़ा।