खाली कराए जा रहे हैं पंजाब के सीमावर्ती गांव
नई दिल्ली। पाकिस्तान में घुसकर आंतकवादियों को मारने की भारतीय सेना की कार्रवाई यानि दुनिया भर में चर्चित हो रहे भारत के सर्जिकल आपरेशन का सबसे ज्यादा असर पंजाब के सीमावर्ती गांवों में रहने वालों पर पड़ रहा है। सीमा पर तनाव के चलते उन्हें अपने गांव से पलायन करना पड़ रहा है। सेना की समझाइश पर प्रशासन ने कदम उठाते हुए कई गांवों के ग्रामीणों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम शुरू कर दिया है।
बताया जा रहा है कि पाकिस्तानी सीमा से दस किलोमीटर के दायरे में आने वाले कई गाँवों से लोग सुरक्षित जगहों पर जाने लगे हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ रहे सैन्य तनाव के बीच उन्हें डर है कि कहीं सीमापार से फ़ायरिंग न शुरू हो जाए। फ़िरोज़पुर के डिप्टी कमिश्नर डीपीएस खरबंदा के अनुसार जो लोग अपने परिवारों के साथ सुरक्षित जगहों पर जाना चाहते हैं उनके लिए प्रशासन ने सीमा से दस किलोमीटर दूर 31 रिलीफ़ कैंप बनाए हैं। गुरुद्वारों से लोगों कों सुरक्षित ठिकानों पर जाने की अपील किए जाने के बाद अटारी, रानिया, फिरोज़पुर और गुरदासपुर सेक्टर के कई गांवों से बच्चों और महिलाओं को रिश्तेदारों के यहां भेजा जा रहा है। पंजाब सरकार ने कई जिलों में सचिव स्तर के अधिकारी तैनात किए हैं ताकि अपना घर और गाँव छोड़कर जा रहे लोगों की मदद की जा सके।
पलायन कर रहे लोग कहते हैं कि उन पर दो तरफ़ा मार पड़ रही है। एक तो उन्हें अपनी खड़ी फ़सल से हाथ धोना पड़ेगा, वहीं घर भी छोड़ना पड़ रहा है। लेकिन पंजाब के किसान नाखुश नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पड़ने वाले गांव धनोआ कलां के राजबीर सिंह गुरुवार को की गई सर्जिकल स्ट्राइक का समर्थन करते हैं। मोधे गांव में गांववाले गुरुद्वारा में एकत्रित होकर एलओसी पर चरमपंथी कैंपों को फ़ौज द्वारा ध्वस्त किए जाने की सफलता की प्रार्थना भी की। स्थानीय निवासी कुलवंत सिंह के अनुसार सभी लोग यहां फ़ौज की सफलता की प्रार्थना करने के लिए एकत्रित हुए हैं। उन्होंने कहा, "इस कदम का लंबे समय से इतंजार था। आर्मी को ये कार्रवाई बहुत पहले कर लेनी चाहिए थी। हां हमें अपने घर बार को छोड़ कर जाने में समस्या तो आ रही है लेकिन पहले राष्ट्र है। वो कहते हैं कि पाक प्रायोजित आतंकवाद ने पहले ही दीनानगर और पठानकोट में बहुत बर्बादी कर दी है, उन्हें सबक सिखाना बहुत जरूरी था। राजबीर का परिवार गुरुवार को सुरक्षित जा चुका है लेकिन राजबीर और उनकी मां ने गांव छोड़ने से मना कर दिया है।
गुरदासपुर ज़िले में डेरा बाबा नानक नाम की जगह पर रावी नदी पर प्रशासन अस्थायी पुल भी बना रहा है ताकि नदी पार के लोगों को लाने में आसानी हो। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन पराक्रम के समय हम सभी गांव वाले यहां से अपने रिश्तेदारों के पास तरनतारण चले गए थे लेकिन इस बार वहाँ नही गए हैं। उन्हें आशा है कि सब कुछ जल्दी सामान्य हो जाएगा, अगर नहीं होता है तो मैं इस गांव छोड़ने वाला आखिरी आदमी होउंगा।