कमलनाथ सब काम छोड़ दिल्ली पहुंचे, कांग्रेस फिर टूट की कगार पर
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 17 फरवरी। मध्यप्रदेश में करीब चार साल बाद एक बार फिर कांग्रेस टूट की कगार पर खड़ी दिखाई दे रही है। चार साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने कई समर्थकों के साथ कांग्रेस का हाथ छोड़कर भाजपा के भगवा में रंग गए थे। राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी का खास सिपहसालार होने के बाद भी सिंधिया हासिए पर हो गए थे। आज वही स्थिति मध्यप्रदेश में कांग्रेस के नाथ कहे जाने वाले दिग्गज नेता कमलनाथ के साथ हो रही है। इसलिए उनके भाजपा में शामिल होने की संभावना बढ़ गई है। चार साल पहले सिंधिया ने भी फरवरी में ही कांग्रेस के लिए सियासी संकट खड़ा किया था और आज चार साल बाद फिर फरवरी में ही कांग्रेस के समक्ष सियासी संकट खड़ा हो रहा है और इस बार इसके केंद्र बिंदु कमलनाथ हैं।
कांग्रेस हाईकमान से कुछ समय से खफा चल रहे कमलनाथ के अपने सांसद पुत्र नकुलनाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलें कई दिन से सरगर्म थीं। शनिवार को कमलनाथ के अचानक सारे कार्यक्रम निरस्त कर दिल्ली पहुंचने की खबर ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी। इस समय दिल्ली में भाजपा का राष्ट्रीय अधिवेशन चल रहा है और पार्टी के सारे बड़े नेता उसमें मौजूद हैं। ऐसे समय में कमलनाथ का सब कुछ छोड़कर दिल्ली पहुंचना सीधा संकेत है कि उनकी बीजेपी से ड़ील पक्की हो गई है। दिल्ली में मीडिया से चर्चा करते हुए कमलनाथ ने बीजेपी में जाने की खबरों पर न तो कबूला और न ही इससे इंकार किया। उन्होंने कहा कि कुछ होगा तो सबसे पहले मीडिया को बताएंगे। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि कमल नाथ का कांग्रेस से किनारा करना लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित होगा। कांग्रेस राज्य में एक और टूट के कगार पर होगी। प्रदेश में कांग्रेस के कई विधायक और महापौर तथा अन्य बड़े नेता कमलनाथ की गुड बुक में हैं। उनमें से कई कई कमलनाथ के लिए पार्टी छोड़ने को तैयार हैं। कमलनाथ ने अभी तक अपने समर्थकों को कोई संदेश नहीं दिया है, जिससे नेताओं को समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें। हालांकि, सज्जन वर्मा सहित कई नेताओं ने अपनी इंटरनेट मीडिया फेसबुक और एक्स पर प्रोफाइल बदल ली है और कांग्रेस के चिन्ह को हटा दिया है।
सारी उठापटक के बीच हर कोई ये जानने को भी बेताब है कि आखिर कमलनाथ को क्या जरूरत आन पड़ी कि वे भाजपा में जाएं। इसकी कई वजह भी हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने कमलनाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ा। प्रदेश की 230 में से भाजपा ने 163, कांग्रेस ने 66 और भारत आदिवासी पार्टी ने एक सीट जीती थी। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में हार का ठीकरा कमलनाथ पर फोड़ दिया। उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया। अन्य नेताओं ने भी उन्हें अलग-थलग कर दिया। इसके बाद कांग्रेस ने एकाएक अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया। राहुल गांधी के करीबी रहे जीतू पटवारी को प्रदेश कांग्रेस की बागड़ोर सौंप दी गई। इसके बाद कहा जा रहा था कि कमलनाथ राज्यसभा का चुनाव लड़कर केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बन सकते हैं, पर पार्टी ने दिग्विजय सिंह के समर्थक अशोक सिंह को राज्यसभा का उम्मीदवार बना दिया। कुल मिलाकर कहा जाने लगा कि कमलनाथ को प्रदेश के नए नेतृत्व ने एक तरफ कर दिया, जिससे कमलनाथ खफा हैं।