देश का बजट एक फरवरी कोः कभी आबादी बढ़ाने के लिए मिलती थी टैक्स में छूट
खरी खरी डेस्क
भोपाल, 30 जनवरी। केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 1 फरवरी को संसद में बजट पेश करने जा रही है। इस बजट में टैक्स लिमिट बढ़ाने की मांग की जा रही है जो फिलहाल सात लाख रुपए है। आज सात लाख रुपए तक की आय को टैक्स के दायरे से बाहर कर दिया गया है, लेकिन देश के पहले बजट में यह लिमिट 1500 रुपए थी। वर्तमान टैक्स पेयर को यह जानकर भी आश्चर्य हो सकता है कि इस समय जनसंख्या नियंत्रण के लिए तमाम कड़े कदम उठाने वाले हमारे देश में कभी आबादी बढ़ाने के लिए टैक्स में छूट दिए जाने का प्रावधान था।
पहला बजट 16 नवंबर 1947 को
आजाद भारत का पहला बजट तत्कालीन वित्त मंत्री आरके शनमुखम चेट्टी ने 16 नवंबर 1947 को पेश किया था। यह एक तरह से भारतीय अर्थव्यवस्था की समीक्षा रिपोर्ट थी। पहले बजट के समय देश में 1500 रुपये तक की आमदनी टैक्स फ्री थी।
विवाहितों और कुंवारों के लिए अलग-अलग टैक्स
साल 1955 में देश में शादीशुदा और कुंवारों के लिए अलग-अलग टैक्स फ्री इनकम रखी गई। शादीशुदा को 2000 रुपये तक कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था। वहीं, कुंवारों के लिए यह लिमिट 1000 रुपये ही थी।
जनसंख्या वृद्धि के लिए टैक्स में छूट
हमारे देश में पहली बार 1958 में जनसंख्या बढ़ाने के लिए टैक्स प्रावधानों का सहारा लिया गया। भारत 1958 में बच्चों की संख्या के आधार पर इनकम टैक्स में छूट देने वाला दुनिया का इकलौता देश बना। अगर शादीशुदा हैं, पर बच्चा नहीं है तो 3000 रुपये तक की आय पर टैक्स नहीं देना पड़ता था। लेकिन, एक बच्चा होने पर 3300 रुपये और 2 बच्चों पर 3600 रुपये की आय टैक्स फ्री थी।
हर सौ रुपए पर 97.75 रुपये टैक्स
1973-74 में भारत में सबसे ज्यादा टैक्स रेट था। उस समय आयकर वसूलने की अधिकतम दर 85 फीसदी कर दी गई। सरचार्ज मिलाकर यह टैक्स रेट 97.75 फीसदी पहुंच गया। 2 लाख रुपये की इनकम के बाद हर 100 रुपये की कमाई में से सिर्फ 2.25 रुपये ही कमाने वाले की जेब में जाते थे। बाकी 97.75 रुपये सरकार रख लेती थी।