उत्तराखंड में बहुत जल्द यूसीसी कानून

Feb 07, 2024

 

खरी खरी संवाददाता

देहरादून, 6 फरवरी। भाजपा शासित राज्य उत्तराखंड बहुत जल्द समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू करने वाला राज्य सबन जाएगा। राज्य की विधानसभा में मंगलवार को उत्तराखंड समान नागरिक संहिता विधेयक-2024 पेश किया गया। इस विधेयक का मकसद एक ऐसा कानून बनाना है, जो शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों में सभी धर्मों पर लागू हो। इसे सदन में पारित कर राज्यपाल को भेजा जाएगा। राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाएगा। इस तरह से गोवा के बाद उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य बन जाएगा।

उत्तराखंड कैबिनेट 4 फरवरी को ही समान नागरिक संहिता विधेयक को मंजूरी मिली थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधेयक को विधानसभा में पेश करते हुए कहा कि राज्य में सबको समान अधिकार प्रदान करने हेतु हम सदैव संकल्पित हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि बुराइयों के खात्मे के लिए उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए देश में सबसे मुफीद राज्य है। इस बिल का मकसद एक ऐसा कानून बनाना है, जो शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों में सभी धर्मों पर लागू हो। करीब 182 पन्नों के इस कानूनी मसौदे में कई धाराएं और उप-धाराएं हैं। इसमें उत्तराधिकार, विवाह, विवाह-विच्छेदन और लिव इन रिलेशनशिप के बारे में नियम-कानूनों का उल्लेख किया गया है। 

लिव-इन रिलेशनशिप पर भी लागू
विधानसभा में मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में लिव-इन रिलेशनशिप का मुद्दा सहमति बनाम स्थापित सामाजिक नैतिक मानदंड से जुड़ा है। देश में हर नागरिक के अधिकारों की सुरक्षा के लिए जरूरी कानून बनाए गए हैं और उसकी सुरक्षा की गई है लेकिन अधिकार बनाम सामाजिक व्यवस्था में संतुलन भी जरूरी है। इसीलिए उत्तराखंड की सरकार ने समान नागरिक संहिता में लिव-इन रिलेशनशिप पर एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की है।

  • इस एक्ट में यह प्रावधान किया है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले युगल के लिए लड़की की उम्र 18 वर्ष या अधिक होनी चाहिए और उसको लिव इन रिलेशनशिप में रहने से पहले पहचान करने के उद्देश्य से एक रजिस्ट्रेशन कराना होगा और21 वर्ष से कम के लड़का और लड़की दोनों को इस रजिस्ट्रेशन की जानकारी दोनों के माता पिता को देनी अनिवार्य होगी।
  • उत्तराखंड सरकार ने लिव इन रिलेशनशिप के मामलों में रजिस्ट्रेशन को जरूरी कर दिया है ताकि ऐसे जोड़ों को कहीं रहने के लिए किराए पर मकान लेने या अन्य पहचान की आवश्यकताओं पर कोई कानूनीअड़चन का सामना न करना पड़े।
  • उत्तराधिकार के बारे में--- विधानसभा में विधेयक को पेश करते हुए मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि प्रभावी एवं प्रचलित व्यवस्थाओं में सम्पत्ति में उत्तराधिकार या इच्छापत्र (वसीयत) के अधिकारों में व्यापक विसंगति या भिन्नता रही है। उदाहरण के रूप में देखें तो अधिकांश प्रावधानों में मृतक की सम्पत्ति में माता, पति-पत्नी और बच्चों को तो अधिकार है, परन्तु पित्ता को अधिकार नहीं दिया गया है। इसी प्रकार एक ही व्यक्ति की सन्तानों में लिंग के आधार पर भी असमानता है। विवाहित और अविवाहित पुत्री को भी अलग-अलग अधिकार है।
  • समान नागरिक संहिता में माता-पिता को मृतक की सम्पत्ति में एक अंश निर्धारित किया गया है। इसकी व्यवस्था धारा 49 के स्पष्टीकरण व अनुसूची-2 के श्रेणी-1 में की गई है। सम्पत्ति के अधिकार में पुत्र-पुत्री में व्यापक असमानता को दूर किया जा रहा है।
  • हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम व शरीयत अधिनियम में उत्तराधिकार की भिन्नता एवं पुत्री के अधिकार की विसंगतियों को समान नागरिक संहिता वो भाग-2 के अध्याय-1 में दूर करते हुए एक व्यक्ति की समस्त सन्तानों को समान अधिकार प्रदान किये जाने की व्यवस्था की गई है। सदियों बाद उत्तराधिकार से सम्पत्ति प्राप्त करने के अधिकार में बेटा-बेटी एक समान का सिद्धान्त को हम मूर्त रूप देने जा रहे हैं।
  • समान नागरिक संहिता नेबच्चों के सम्मान और सम्पत्ति के अधिकार को सुरक्षित करने का काम किया है।
  • समान नागरिक संहिता में धारा-3 (1-क) में किसी भी रिश्ते से उत्पन्न होने पाले बच्चे को परिभाषित कर दिया गया है, वहीं दूसरी ओर धारा-49 में किसी भी प्रकार से उत्पन्न बच्चों को सम्पत्ति में समान रूप से अधिकार प्रदान कर दिया गया है।
  • यह कानून गर्भस्थ शिशु के अधिकारों को भी सुरक्षित करने का काम कर रहा है। इसके लिए इस संहिता के धारा-55 में अन्य सन्तानों की भांति गर्भस्थ शिशु को भी समान अधिकार प्रदान किये जा रहे हैं।
  • समान नागरिक संहिता हत्यारे पुत्र को सम्पत्ति के अधिकार से वंचित करने जा रही है। संहिता की धारा-58 में यह व्यवस्था की गई है। अब कोई व्यक्ति उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त करने के लिए हत्या करने जैसे जघन्य एवं घिनौने अपराध से दूर रहेगा।
  • समान नागरिक संहिता की धारा-3 (1-3), 3 (3-अ) और अध्याय-2 यह प्रावधान करता है कि कोई व्यक्ति किसी भी माध्यम से प्राप्त समस्त सम्पदा की वसीयत स्वेच्छा से किसी भी व्यक्ति को कर सकता है, और अपने जीवनकाल में वसीयत को बदल भी सकता है, चाहे तो वापस भी ले सकता है।