अलविदा अटल जी... एक युग का अंत
खरी खरी डेस्क
नई दिल्ली, 16 अगस्त। हिंदुस्तान की सियासत में आज 16 अगस्त की तारीख एक तवारीख बन गई। देश ही नहीं दुनिया में अपने अलग सियासी अंदाज और भाषण कला के लिए ख्यातिलब्ध भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का आज शाम पांच बजकर पांच मिनट पर निधन हो गया। इसके साथ ही भारत की राजनीति में एक युग का अंत हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे 93 वर्षीय वाजपेयी जून महीने से ही नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे।
भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे, पहली बार 1996 में 13 दिनों के लिए फिर 1998 से 1999 और आखिरी बार 1999 से 2004 तक। एक स्कूल टीचर के घर में 25 दिसंबर 1924 को पैदा हुए वाजपेयी के लिए शुरुआती सफ़र आसान नहीं था। ग्वालियर के एक निम्न मध्यमवर्ग परिवार में जन्मे वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई थी। उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर के बाद पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन का संपादन किया।
वे 1951 में भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे, अपनी कुशल भाषण कला शैली से राजनीति के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने रंग जमा दिया। हालांकि लखनऊ में एक लोकसभा उप चुनाव में वो हार गए थे। दरअसल 1957 में जनसंघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया. लखनऊ में वो चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी ज़मानत ज़ब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वो दूसरी लोकसभा में पहुंचे।इसके साथ ही उन्होंने संसद के गलियारे में अपनी पांच दशकीय संसदीय करियर की शुरुआत की थी। वे 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे। विपक्षी पार्टियों के अपने दूसरे साथियों की तरह उन्हें भी आपातकाल के दौरान जेल भेजा गया। सन 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में उन्होंने हिंदी में भाषण दिया और वो इसे अपने जीवन का सबसे सुखद क्षण बताते थे। सन 1979 में जनता सरकार के गिरने के बाद 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन किया गया। वाजपेयी इसके संस्थापक सदस्य थे और पहले अध्यक्ष भी।
1980 से 1986 तक वो बीजेपी के अध्यक्ष रहे और इस दौरान वो बीजेपी संसदीय दल के नेता भी रहे। अटल बिहारी वाजपेयी 10 बार लोकसभा के लिए चुने गए। वो दूसरी लोकसभा से चौदहवीं लोकसभा तक संसद के सदस्य रहे। बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति भी रही। ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे। सन 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। अटल जी 16 मई 1996 को पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन लोकसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। इसके बाद 1998 तक वो लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे।
1998 के आम चुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ उन्होंने लोकसभा में अपने गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। लेकिन यह सरकार भी केवल 13 महीनों तक ही चल सकी। एआईएडीएमके द्वारा गठबंधन से समर्थन वापस ले लेने के बाद उनकी सरकार गिर गई और एक बार फिर आम चुनाव हुए। 1999 में हुए चुनाव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साझा घोषणापत्र पर लड़े गए और इन चुनावों में वाजपेयी के नेतृत्व को एक प्रमुख मुद्दा बनाया गया। गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और वाजपेयी ने एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। 2009 में सत्ता की राजनीति से संन्यास लेते वक्त वो लखनऊ से सांसद थे। उन्हें 2014 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाज़ा गया। नरेंद्र मोदी सरकार उनके जन्मदिन 25 दिसंबर को 'गुड गवर्नेंस डे' के तौर पर मनाती है।
बतौर प्रधानमंत्री उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मई 1998 में परमाणु बम का परीक्षण शामिल है। पोखरन-2 के साथ ही उनके कार्यकाल के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन्हें आज भी याद किया जाता है। इनमें करगिल युद्ध, लाहौर समिट, इंडियन एयरलाइंस का विमान हाइजैक, 2001 में संसद पर आतंकी हमला, 2002 में गुजरात दंगे आदि शामिल हैं।