अजीत जोगी का नौकरशाह से सियासत का सफर
पेंड्रा, 7 जून । छत्तीसगढ़ के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं में शुमार प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने एक झटके में उस कांग्रेस को अलविदा कह दिया जिसके लिए वे आईएएस अफसर की ग्लेमरस नौकरी छोड़ आए थे। नौकरशाह से नेता बनने वाले अजीत जोगी सियासत की बारीकी खूब जानते हैं और यही वजह है कि हर जीत पर, हर शिकस्त पर वो सियासत के नए पासे फेंकते हैं। छत्तीसगढ़ की राजनीति के बड़े ध्रुव अजीत जोगी करीब 30 सालों बाद कांग्रेस का दामन छोड़ रहे हैं और नए रास्ते पर नया सफर शुरू कर रहे हैं। पहले शिक्षक, फिर नौकरशाह और फिर एक राजनेता इन तीन अलग अलग किरदारों को बखूबी निभाने वाले शख्स का नाम है अजीत जोगी। एक नौकरशाह के तौर पर तकरीबन 20 सालों के बेहतरीन करियर के बाद 1986 में इनके सियासी सफ़र की शुरुआत हुई।
राजीव गांधी रहे हैं राजनीतिक गुरू
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राजनीति में आने और सफलता की सीढ़ियां चढ़ाने में अजीत जोगी की भरपूर मदद की। उन्हीं की सरपरस्ती में जोगी का राजनीतिक सफ़र आगे बढ़ा और 1986 से 1998 के बीच ये दो बार राज्य सभा के लिए चुने गए। मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव भी रहे अजीत जोगी 1997 से 2000 तक ये अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता भी रहे।1998 में वे पहली बार रायगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए। साल 2000 में अजीत जोगी के राजनीतिक सफ़र का सबसे अहम पड़ाव आया। जब मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ नया राज्य बना और अजीत जोगी इसके पहले मुख्यमंत्री बने। भाजपा विधायक ने उनके लिए मरवाही सीट खाली कर दी और वे यहीं से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
विवादों से घिरे रहे जोगी
2003 में छत्तीसगढ़ विधानसभा का पहला चुनाव कांग्रेस ने जोगी के नेतृत्व में लड़ा। जोगी नंदकुमार साय से मरवाही का मुकाबला तो जीत गए, लेकिन छत्तीसगढ़ हार गए। चुनाव के बाद उन पर विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगे और कांग्रेस पार्टी से सस्पेंड भी रहे। ये वही वक्त था, जब उनके बेटे अमित जोगी रामावतार जग्गी की हत्या का भी आरोप लगा था। ये उनके राजनीतिक जीवन का शायद सबसे बुरा दौर था। जब अप्रैल 2004 में वो एक बड़े हादसे का शिकार हो गए। और तब से अब तक व्हीलचेयर पर ही हैं। लोकसभा चुनाव में महासमुंद सीट से तब भाजपा में रहे विद्याचरण शुक्ल को हराकर उन्होंने जोरदार वापसी की। लेकिन 2008 में वे फिर मरवाही की सीट से विधानसभा पहुंचे। साल 2013 में उन्होंने अपनी जगह बेटे अमित जोगी को मरवाही से चुनाव मैदान में उतारकर जिताया और खुद 2014 में महासमुंद से लोकसभा चुनाव में भी उतरे। लेकिन यहां उन्हें चंदूलाल साहू से शिकस्त मिली। अजीत जोगी की सियासत प्रदेश कांग्रेस के समांनांतर ही चलती रही। कभी जोगी एक्सप्रेस चलाकर उन्होंने पार्टी को टेंशन दिया, तो कभी बड़े बयान देकर अटेंशन किया। अजीत जोगी की राजनीति अब मरवाही से नई राह पकड़ रही है। लेकिन ये रास्ता उसे सियासत के किस मोड़, किस मुकाम तक ले जाता है। ये तो वक्त ही बताएगा।