स्मृति ईरानी होतीं तो शोरूम में डल जाता ताला !
सुमन
भोपाल । मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में देश के जाने-माने मीडिया हाउस से संबंधित माल में शर्मशार कर देने वाली घटना हुई। माल में स्थित यूनाइटेड कलर्स ऒफ वेनिटन में खरीददारी करने गई एक युवती की अश्लील वीडियो बनाने की कोशिश की गई। मामला आईएएस अफसर की बेटी से जुड़ा था इसलिए आनन-फानन में पुलिस ने कार्यवाही करते हुए आरोपी को गिरफ्तार कर लिया । लेकिन शोरूम अथवा माल के खिलाफ कोई कार्यवाही पुलिस या प्रशासन ने नहीं की, जबकि पिछले साल इसी तरह की घटना देश की ग्लेमरस मिनिस्टर स्मृति ईरानी के साथ हुई थी तब पुलिस ने शोरूम पर तुरंत ताले जड़ दिये थे। ये गोवा पुलिस का कमाल था जो भोपाल की पुलिस नहीं कर पाई या फिर प्रधानमंत्री मोदी की सबसे खास मिनिस्टर की हैसियत का असर था । शायद ये असर भोपाल की बेटी नहीं डाल पाई। हालांकि आम आदमी का मानना यही है कि अगर आईएएस की बेटी की जगह ये हादसा किसी आम व्यक्ति के साथ हुआ होता तो शायद इतना असर भी नहीं हुआ होता।
मध्यप्रदेश बेटियों के लिए बेहद संवेदनशील प्रदेश माना जाता है, या फिर कहें कि प्रदेश सरकार दावा करती दिखाई देती है। मध्यप्रदेश में बेटियों के लिए जितनी योजनाएं चल रही हैं उतनी शायद ही किसी प्रदेश में हों । लेकिन देश के किसी अन्य राज्य में प्रदेश का मुख्यमंत्री प्रदेश भर की बेटियों का मामा तो नहीं ही होगा। सियासत के दांव में रिश्तों की डोक सिर्फ मध्यप्रदेश में बंधी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को प्रदेश की सभी बेटियों का मामा कहते नहीं अघाते हैं। प्रदेश में होने वाले तमाम सियासी जलसों में मुख्यमंत्री के भाषणों का उपसर्ग और उपसंहार बेटियों के मामा वाला ही होता है। सरकार और सत्तारूढ़ बीजेपी के झंडाबरदार हरदम इसका ढिंढोरा पीटते नजर आते हैं। ऐसे में शिवराज की पुलिस और प्रशासन दोनों को अलर्ट मोड में रहना चाहिए, लेकिन प्रदेश में मामा की भांजियों के साथ आए दिन जो व्यवहार होता है वो इन दोनों की नाकामी साबित करने के लिए काफी है। लेकिन भांजियों और उनकी माताओं को इस बात से ज्यादा दुख इस बात का होता है कि इतना होने के बावजूद मामा की सरकार सिर्फ तमाशबीन बनी रहती है।
भोपाल के मॉल के शोरूम में जो कुछ हुआ और उसके बाद सरकार की नुमाइंदी करने वाले पुलिस और प्रशासन ने जो रोल दिखाया वो या तो मुख्यमंत्री के दावों को झूठा साबित करता है या फिर पूरी व्यवस्था को शर्मशार कर देता है। जब गोवा का प्रशासन ऐसी घटना पर शोरूम में ताला जड़ सकता है तब मध्यप्रदेश के शासन और भोपाल के प्रशासन का हाथ कौन रोकता है। पुलिस आए दिन निर्देश जारी करती है कि कहीं भी कर्मचारियों या नौकरों को रखा जाए तो पूरी जांच-पड़ताल की जाए। नौकरी पर रखने से पहले पुलिस वेरिफिकेशन कराया जाए। इन निर्देशों का पालन न करना प्रशासन की व्यवस्था और नियमों का उल्लंघन है। क्या पुलिस नियम या व्यवस्थाओं के उल्लंघन के आरोप में शोरूम संचालकों से पूछताछ नहीं कर सकती या उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती। पुलिस के हाथ बड़े मीडिया हाउस का मॉल होने की धमक से रुक गए या फिर मुख्यमंत्री की मंशा को हल्के में लेने की फितरत ने रोक दिए या फिर स्मृति ईरानी जैसी हैसियत और वजूद की जरूरत पड़ती है।
सवाल तमाम उठ रहे हैं लेकिन उनके जवाब देने वाला कोई नहीं है। ऐसा लगता है जवाब तब आएगा जब भांजियों का भरोसा उठ जाएगा। शायद तब उनके सीएम मामा के पास प्रायश्चित करने के अलावा अन्य विकल्प नहीं होगा।