सीएम साब.. कोई माई का लाल यह सियासी गणित नहीं बदल सकता
सुमन
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा की है कि कोई माई का लाल पदोन्नति में आरक्षण को खत्म नहीं कर सकता है। उनकी इस घोषणा में भले ही समय के साथ बदलाव हो जाए, लेकिन इस तरह की घोषणाओं के पीछे सियासत का जो गणित होता है, उसे सच में कोई माई का लाल न तो बदल सकता है और न ही बदलने की हिम्मत कर सकता है।
पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा इस समय मध्यप्रदेश की नौकरशाही और सियासत का सबसे गर्म मुद्दा बन गया है। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जब मप्र सरकार के पदोन्नति नियमों को खारिज कर दिया तो सरकार के चेहरे पर सियासी पसीना आ गया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर स्थगन आदेश देकर सरकार को थोड़ी राहत दे दी। तब से प्रदेश की नौकरशाही में आरक्षित तथा गैर आरक्षित की सियासी जंग छिड़ गई है।
आरक्षण के दायरे में आने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों के तमाम संगठन सक्रिय हो गए हैं और आए दिन कोई न कोई कार्यक्रम कर रहे हैं। ऐसे ही एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह खुद अचानक पहुंच गए। उनके पहुंचने से कार्यक्रम के आयोजकों और कार्यक्रम में शामिल कांग्रेस के दिग्गज नेताओं को काफी असहज होना पड़ा। कुछ समय के लिए तो खुद मुख्यमंत्री भी असहज हो गए थे, क्योंकि वहां पूरा माहौल सरकार के खिलाफ था, लेकिन बाद में अपने ही अधिकारियों कमर्चारियों को वहां देखकर शिवराज सिंह चौहान को जोश आ गया और वे हवा का रुख अपनी ओर मोड़ लेने में सफल रहे। उन्होंने घोषणा कर दी कि उनके रहते कोई माई का लाल पदोन्नति में आरक्षण खत्म नहीं कर सकता है।
अब सीएम से तो कोई यह सवाल नहीं पूछ सकता है कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो उसके फैसले का इंतजार क्यों नहीं किया जा सकता है। वैसे भी अदालतों में विचाराधीन मुद्दों पर कोई फैसला लेने से सभी बचते हैं, फिर यह मामला तो देश की सर्वोच्च अदालत में है और मंच से सरकार के मुखिया खुद बोल रहे हैं। लेकिन जब मामला विधानसभा की उन 100 सीटों का हो, जिन पर हार-जीत का फैसला आरक्षित वर्ग के वोटों से होना हो तो अदालतों को भी साइड लाइन करने से गुरेज नहीं किया जा सकता है। सीएम के जोशीले भाषण से तो सभी को यही अहसास हुआ।
इसकी प्रतिक्रिया ठीक वही हुई जिसका सभी को अंदाजा था। सामान्य वर्ग वाले कर्मचारियों अधिकारियों के संगठनों ने इसे अदालत की अवमानना बताते हुए मोर्चा खोल दिया। उनके द्वारा जमकर अभियान चलाया जा रहा है। सामान्य वर्ग के कर्मचारियों की संख्या भी कम नहीं है, लेकिन प्रदेश में ऐसे इलाके कम हैं जहां इन वर्गों के कर्मचारियों के वोटों से ही विधानसभा चुनावों में हारजीत का फैसला हो। इसलिए फिलहाल तो शिवराज और उनकी सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है। सरकार भले ही कुछ भी दावा करे लेकिन यह तय माना जा रहा है कि इस मुद्दे को अगले विधानसभा चुनाव तक इसी तरह गर्म करके रखा जाएगा। चुनाव के ठीक पहले नफा नुकसान सोचकर सरकार कोई बड़ा फैसला करेगी।
सीएम साहब ने तो कह दिया कि कोई माई का लाल पदोन्नति में आरक्षण खत्म नहीं कर सकता है। वोटों और सीटों का तकाजा है, इसलिए इस तरह के संवाद बेमानी नहीं है। लेकिन उन गरीबों का क्या होगा जो सिर्फ इसलिए पीछे हैं क्योंकि वे गरीब हैं। सीएम साब अगर यह भी बता देते कि उन गरीबों की सुध कौन माई का लाल लेगा.. तो शायद प्रदेश की एक बड़ी आबादी और भी खुश होती। लेकिन सियासत में यह सब देखने और समझने की फुरसत किसे है। मप्र सरकार यह बता पाने तक की स्थिति में नहीं है कि उसके द्वारा बनाए गए निर्धन वर्ग कल्याण आयोग के क्या हाल हैं अथवा उसकी सिफारिशों वाली फाइलें कहां धूल खा रही है। इससे एक बात बड़ी साफ है कि सरकारों का जनकल्याण सिर्फ सियासत के इस अंक गणित पर निर्भर होता है कि विधानसभा में स्पष्ट बहुमत कैसे मिलेगा? और कोई माई का लाल इस गणित को नहीं बदल सकता है।