संघ सुप्रीमो डा. मोहन भागवत का मर्यादा मंत्र भाजपा से नाराजगी का संकेत
खरी खरी संवाददाता
नई दिल्ली, 11 जून। आरएसएस के मुखिया डा मोहन भागवत ने मणिपुर की हिंसा एक साल बाद भी शांत नहीं होने और हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव के दौरान अभद्र भाषा का उपयोग किए जाने पर जिस तरह का बयान दिया है, वह इस बात का संकेत है कि संघ और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। डा मोहन भागवत का मर्यादा मंत्र भले ही सामान्य परिप्रेक्ष्य में हो लेकिन इसे उनकी भाजपा नेतृत्व के प्रति नाराजगी से जोड़ा जा रहा है।
लोकसभा चुनाव बीतने के बाद भाजपा और आरएसएस का तनाव सतह पर आ गया है। मणिपुर में हो रही हिंसा को शांत करने में असफलता और चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के द्वारा उपयोग की गई 'अभद्र' भाषा पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का बयान इसी तरफ इशारा कर रहा है कि दोनों संगठनों के बीच सब कुछ ठीक ठाक नहीं है। संघ प्रमुख ने कहा है कि चुनाव में हारा हुआ व्यक्ति आपका दुश्मन नहीं है। संघ ने चुनाव के समय भी यह संदेश देने की कोशिश की थी लेकिन भाजपा का नेतृत्व संघ की नाराजगी को समझने को तैयार नहीं था। आमतौर पर संघ के समक्ष नतमस्तक रहने वाले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान ने नाराजगी की खाई को और गहरा कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि भाजपा अब काफी परिपक्व हो चुकी है और उसे अब आरएसएस के सहयोग की आवश्यकता नहीं है। नड्डा का यह बयान बेहद संतुलित संदर्भों में था, लेकिन इसका आशय यही निकाला गया कि भाजपा-आरएसएस में तनाव ज्यादा है। पार्टी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा।
संघ सूत्रों का कहना है कि इस बार भाजपा के कार्यकर्ता संघ के पदाधिकारियों से अपेक्षित सहयोग करने के लिए तैयार नहीं थे। कई सीटों पर भाजपा नेताओं को सब कुछ ठीक न होने की जानकारी भी दी गई थी, लेकिन इस पर समय रहते कोई एक्शन नहीं लिया गया। उलटे जिन उम्मीदवारों के बारे में संघ से नकारात्मक संकेत दिए गए थे, उन्हें भी टिकट पकड़ा दिया गया। पार्टी को इसका चुनावों में भारी नुकसान उठाना पड़ा। लोकसभा चुनावों के पहले संघ के बेहद वरिष्ठ पदाधिकारियों ने चुनावों को लेकर पार्टी के साथ समन्वय करने की कोशिश की थी। संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी अरुण कुमार ने चुनावों की घोषणा से पूर्व ही गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के संगठन मंत्री बीएल संतोष के साथ भाजपा के राष्ट्रीय कार्यालय में लगातार पांच दिन तक मैराथन बैठकें की थीं। कहा गया था कि संगठन के शीर्ष नेता देश की एक-एक सीट का गंभीर आकलन कर हर लोकसभा चुनाव के अनुसार अलग रणनीति तैयार कर रहे हैं। इसका उद्देश्य चुनाव में 400 सीटों के असंभव से लक्ष्य को हासिल करना बताया गया था। इसी तरह की बैठकें राज्यों के स्तर पर भी किए गए थे, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने संघ की राय से इतर फैसले और काम किया।