विधान परिषद का गठन अब मुश्किल होगा मध्यप्रदेश में
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। देश में मोदी सरकार की भारी बहुमत से वापसी के बाद मध्यप्रदेश में सत्तारूढ कांग्रेस का जनता से किया गया एक चुनावी वायदा पूरा हो पाना मुश्किल लग रहा है। प्रदेश में विधान परिषद का गठन अब नहीं हो पाएगा। विधानपरषद के गठन का कांग्रेस का चुनावी वायदा था, लेकिन पहले मध्यप्रदेश में अल्पमत की सरकार बनने और अब केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकार सत्तारूढ़ हो जाने के कारण इस वायदे के पूरा होने की उम्मीदों पर पानी फिर गया है।
भारत के संविधान में दी गई संसदीय व्यवस्था के तहत प्रदेशों में विधानपरिषद के गठन का प्रावधान है। जिस तरह केंद्रीय व्यवस्था में संसद का ऊपरी सदन राज्यसभा और निचला सदन लोकसभा होती है, उसी तरह राज्यों के विधानमंडलों में विधान परिषद ऊपरी सदन और विधानसभा निचला सदन होता है। यह अधिकार राज्यों को दिया गया है कि वे अपने यहां विधानमंडल में दो सदनीय व्यवस्था रखते हैं या नहीं। इसलिए देश के सिर्फ 7 राज्यों में ही दो सदनीय व्यवस्था है। मध्यप्रदेश में एक सदनीय व्यवस्था के तहत सिर्फ विधानसभा है। कई बार सियासी दलों ने विधान परिषद बनाने की मुहिम भी चलाई लेकिन उसे अमली जामा आज तक नहीं पहनाया जा सका। प्रदेश के नए विधान भवन में तो विधानसभा के साथ साथ विधान परिषद के लिए सभागार का प्रावधान भी किया गया है। लेकिन विधान परिषद का गठन आज भी कागजी वायदों में ही शुमार है।
कांग्रेस ने इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव के लिए जारी अपने वचन पत्र (घोषणपत्र) में प्रदेश में विधानपरिषद के गठन का वायदा किया था। कांग्रेस के नेताओं ने अपने चुनावी भाषणों में इसका जिक्र करते हुए यह लुभावना सपना भी दिखाया कि इससे कई विद्जन विधानपरिषद के सदस्य बनकर नीतियों के निर्माण में अपनी भूमिका निभा सकेंगे। कांग्रेस विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनने के कारण सरकार बनाने में सफल रही। सरकार बनाते ही उसने अपने चुनावी वायदे भी निभाने शुरु कर दिए, लेकिन अल्पमत सरकार होने के कारण विधान परिषद के गठन की कवायद ही मुश्किल हो गई। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार विधानपरिषद की सदस्य संख्या विधानसभा की सदस्य संख्या की एक तिहाई हो सकती है। ऐसे में मध्यप्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा के चलते करीब 77 सदस्यों वाली विधानपरिषद बन सकती है। लेकिन यह सब कानूनी झमेले में उलझ गया। संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक विधानपरिषद के गठन के लिए राज्य विधानसभा में प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पास होना जरूरी है। मध्यप्रदेश विधानसभा की सदस्य संख्या 230 है, इसलिए करीब डेढ़ सौ सदस्यों द्वारा प्रस्ताव पारित होना जरूरी है। विधानसभा में कांग्रेस के पास कुल 114 विधायक ही हैं। उनके सहयोगियों को भी मिला लिया जाए तो यह संख्या 121 ही हो पाती है। ऐसे में विधान परिषद के गठन का प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पास होना मुश्किल है। विधानपरिषद का गठन अब भाजपा के एजेंडे में नहीं है। इसलिए वह इस प्रस्ताव पर कांग्रेस का साथ नहीं देगी। किसी तरह विधानसभा से प्रस्ताव पारित भी हो जाए तो भी मामला संसद में अटक जाएगा। नियमानुसार राज्य से पारित प्रस्ताव का संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत से पास होना जरूरी है। उसके बाद ही राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर कर विधान परिषद के गठन की मंजूरी देंगे। देश में एक बार फिर मोदी सरकार भारी बहुमत के साथ आ जाने से यह संभावना भी समाप्त हो गई। लोकसभा में कांग्रेस के पास सिर्फ 52 सदस्य हैं और राज्य सभा में भी उसके पास बहुमत नहीं है। ऐसे में विधानसभा से किसी तरह भेजा गया प्रस्ताव संसद में जाकर अटक जाएगा। इसलिए यह तय है कि अब मध्यप्रदेश में विधानपरिषद का गठन नहीं होगा और कांग्रेस सरकार में आने के बाद भी अपना एक वचन नहीं निभा पाएगी।
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