चुनाव बना कुरुक्षेत्र का मैदान, कई सीटों पर फैमिली फाइट, सगे रिश्ते आमने सामने
सुमन त्रिपाठी
भोपाल, 22 अक्टूबर। मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव मैदान इस बार महाभारत का कुरुक्षेत्र बन रहा है। महाभारत की तरह सगे रिश्ते आमने-सामने हैं। कई सीटों पर फैमिली फाइट होगी। अभी प्रचार अभियान ने गति नहीं पकड़ी है, लेकिन गति पकड़ते ही रिश्तों की परिभाषा सियासी दांव-पेंच में उलझने की संभावना प्रबल है।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस और भाजपा ने अपने लगभग सारे पत्ते खोल दिए हैं। चुनाव जीतने के लिए दोनों पार्टियों ने रिश्तों तक को खूंटी पर टांग दिया है। कई सीटों पर सगे रिश्तों को ही टिकट देने में कोई कोताही नहीं बरती गई। सगे रिश्तेदार दोनों प्रमुख दलों से आमने सामने होने के कारण मुकाबाल रोचक होने जा रहा है।
इटारसी में भाई-भाई
सबसे महत्वपूर्ण फैमिली फाइट नर्मदापुरम जिले की इटारसी सीट पर होगी। यहां दो बजुर्ग सगे भाई आमने –सामने हैं। बीजेपी ने इस सीट से वर्तमान विधायक औऱ मप्र विधानसभा के पूर्व स्पीकर सीतासरण शर्मा को एक बार फिर मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने उनके सगे भाई गिरिजाशंकर शर्मा पर दांव लगाया है। गिरिजाशंकर शर्मा एक बार इस सीट से 2008 में विधायक रह चुके हैं। तब बीजेपी ने सीतासरण का टिकट काटकर गिरिजाशंकर को टिकट दिया था। अगले चुनाव 2013 में गिरिजाशंकर की टिकट काटकर एक बार फिर सीतासरण शर्मा प्रत्याशी बनाए गए औऱ वे जीत हासिल कर विधानसभा के स्पीकर बने। पिछले साल 2018 मे भी सीतासरण धर्मसंकट के बीच बीजेपी प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीते थे। उनके मुकाबले कांग्रेस ने बीजेपी से नाराज होकर कांग्रेस में आए दिग्गज नेता सरताज सिंह को चुनाव में उतार दिया था। सरताज सिंह को सीतासरण शर्मा का सियासी गुरु माना जाता है। इस चुनाव में चेले ने गुरु को हराकर जीत हासिल की थी। इस बार माना जा रहा था कि अधिक उम्र के चलते सीतासरण का टिकट कट जाएगा। इसलिए उनके भाई गिरिजाशंकर बहुत आशान्वित थे, लेकिन जब उन्हे समझ में आया कि बीजेपी उन्हें तवज्जो नहीं दे रही है तो वे कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस ने उन्हें इटारसी से प्रत्याशी बना दिया। बीजेपी ने बाद में सीतासरण को टिकट देकर इटारसी के मुकाबले को रोचक फैमिली फाइट बना दिया।
सागर में जेठ-बहू
बुंदेलखंड की प्रमुख सीट सागर में जेठ और बहू आमने सामने हैं। भाजपा ने यहां से अपने वर्तमान विधायक शैलेंद्र जैन को मैदान में उतारा है। शैलेंद्र बीते तीन चुनावों से कांग्रेस के लिए चुनौती बने हैं। कभी कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाले सागर सीट को वापस पाने के लिए कांग्रेस के हर जतन बेकार गए हैं। तीन चुनावों से तो शैलेंद्र जैन ही कांग्रेस पर भारी पड़ रहे हैं। इस बार कांग्रेस ने मुकाबले को परिवार की लड़ाई बना दिया। कांग्रेस ने शैलेंद्र जैन का मुकाबला करने के लिए निधि जैन पर दांव लगाया है। वे विधायक शैलेंद्र जैन के सगे छोटे भाई सुनील जैन की पत्नी हैं। सुनील भी एक बार कांग्रेस से विधायक रह चुके हैं। कांग्रेस ने निधि जैन को कुछ समय पहले हुए निकाय चुनाव में सागर से महापौर प्रत्याशी बनाया था। वे बीजेपी प्रत्याशी से चुनाव हार गई थीं। कांग्रेस ने उऩ पर दांव लगाकर विधानसभा चुनाव को फैमिली फाइट के साथ रोचक बना दिया है।
देवतालाब में ताऊ-भतीजा
रीवा जिले की देवतालाब सीट पर भी फैमिली फाइट हो रही है। बीजेपी ने इस सीट पर वर्तमान विधायक औऱ मप्र विधानसभा के स्पीकर गिरीश गौतम को एक बार फिर मैदान में उतारा है। गिरीश गौतम इस सीट पर लगातार तीन जीत हासिल कर चुके हैं। चौथी बार मैदान में उतरे तो कांग्रेस ने इसे रोचक बना दिया। कांग्रेस ने उनके मुकाबले उनके सगे छोटे भाई स्वर्गीय शिवेश गौतम के बेटे पद्मेश गौतम को मैदान में उतार दिया। पद्मेश पिछले साल हुए जिला पंचायत के चुनाव में गिरीश गौतम के पुत्र राहुल को चुनाव हराकर चर्चा में आए थे। ताऊ-भतीजे के बीच यह मुकाबला रोचक होगा। क्योंकि इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी का भी प्रभुत्व है और पिछली बार गिरीश गौतम बमुश्किल एक हजार वोटों से चुनाव जीते थे।
डबरा में समधी- समधन
इस बार भाजपा के लिए कठिन माने जा रहे ग्वालिर अंचल की डबरा सुरक्षित (अजा) सीट पर समधी-समधन की बीच मुकाबला होगा। बीजेपी ने इस सीट पर इमरती देवी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने उनके खिलाफ सुरेश राजे को टिकट दिया है जो रिश्ते में इमरती देवी के समधी हैं और वर्तमान में डबरा से विधायक भी हैं। इमरती देवी कांग्रेस प्रत्याशी के रूप मे डबरा सीट से 2008, 20013 और 2018 का चुनाव जीत चुकी हैं। सुरेश राजे बीजेपी प्रत्याशी के रूप में 2013 में इमरती से करीब 32 हजार वोटों से हार चुके हैं। इमरती ही 2018 में सुरेश को बीजेपी से कांग्रेस में लाई थीं। सिंधिया खेमे की इमरती देवी डबरा से 2018 का चुनाव जीतकर कमलनाथ सरकार में मंत्री बनी थीं। बाद में सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में गए तो इमरती भी उनके साथ भगवाधारी हो गईं। उसके बाद 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस ने इमरती के खिलाफ सुरेश राजे को मैदान में उतारा और इस चुनाव में इमरती को सुरेश राजे से हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव ने समधी –समधन के बीच ऐसी खटास पैदा की जो आज तक बनी हुई है। यह खटास इस बार मुकाबले को और रोचक बनाएगी।
टिमरनी में चाचा-भतीजा
हरदा जिले की टिमरनी विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला सगे चाचा-भतीजे के बीच है। बीजीपे ने इस सीट वर्तमान विधायक संजय शाह को एक बार फिर मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने यहां से उनके भतीजे अभिजीत शाह को टिकट दिया है। अभिजीत संजय शाह के सगे बड़े भाई अजय शाह के पुत्र हैं। बड़े अजय शाह और छोटे संजय शाह के मंझले भाई विजय शाह हरसूद से चुनाव जीतते हैं और भाजपा सरकार में कद्दावर मंत्री हैं। साल 2018 के चुनाव में भी टिमरनी में चाचा संजय और भतीजे अभिजीत के बीच मुकाबला था। इसमें चाचा की करीब 3 हजार वोटों से जीत हुई थी। शाह परिवार मकड़ई के गोंड राजपरिवार का वंशज है। परंपरा अनुसार अजय शाह वर्तमान में मकड़ई के राजा हैं। चाचा-भतीजे के बीच यह मुकाबला पिछली बार की तरह इस बार भी रोचक होगा।
इस बार विधानसभा के कुरुक्षेत्र में कई मुकाबले रोचक होंगे, उनके कारण सियासी या जातीय होंगे लेकिन जिन सीटों पर सगे रिश्तों का आमना-सामना है, वहां महाभारत की तरह फैमिली फाइट के कारण लड़ाई रोचक है। शायद इसीलिए कई संत महात्मा इस बार विधानसभा चुनाव को धर्म युद्ध बता रहे हैं।