ये हंगामा क्यूं है बरपा....
सुमन “रमन”
पांच सौ करोड़ रुपए हवाला मामले में राज्य सरकार के मंत्री संजय पाठक का नाम आने से पूरे मध्यप्रदेश की सियासत में घमासान मचा है। कभी पार्टी की आंखों का नूर रहे संजय पाठक के खिलाफ कांग्रेस सड़कों पर है। कटनी से लेकर भोपाल और दिल्ली तक कांग्रेस के सारे नेता अपने पुराने साथी, खास मौकों पर पार्टी के फायनेंसर और वर्तमान भाजपा नेता और मंत्री संजय पाठक के खिलाफ लामबंद हो गए हैं । ये बात तय है कि संजय के बहाने कांग्रेस म.प्र. की सरकार और विषेशकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरना चाहती है। यह सभी मानतॆ हैं कि संजय पाठक को कांग्रेस से बगावत करा कर बीजेपी में लाने के पीछे भले ही तमाम नेता रहे हैं लेकिन उन्हें मंत्रीमंडल में लेने का फैसला सिर्फ मुख्यमंत्री का माना जाता है। इसलिए भाजपा में भी लोग संजय पाठक को लेकर हमेशा कसमसाते रहते हैं। ये बात अलग है कि मुख्यमंत्री या पार्टी अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ बोलने की हिम्मत कोई नहीं कर पाता। ऐसे नेताओं को अब सीएम और प्रदेश अध्यक्ष दोनों पर ऊंगली उठाने का मौका मिल गया है। इसलिए भाजपा के कई बड़े नेता इस मुद्दे पर पार्टी लाइन के खिलाफ अपनी ही सरकार के मंत्री के विरुद्ध खड़े दिखाई दे रहे हैं। पूर्व मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय विश्नोई खुलेआम पाठक के खिलाफ आ गए हैं। ये बात अलग है कि विश्नोई मुख्यमंत्री पर सीधे टिप्पणी करने के बजाए संगठन पर निशाना साध रहे हैं। विश्नोई का कहना है कि जब वह मंत्री थे तब उनके भाई के यहां आयकर का छापा पड़ा था, लेकिन नैतिकता के आधार पर विश्नोई का मंत्रिमंडल से इस्तीफा हो गया था। तीन साल बाद जब उनके भाई इस मामले से पूरी तरह सुलझ गए तब अजय विश्नोई को दुबारा केबिनेट में शामिल किया गया था अब अजय विश्नोई उसी का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि जब भाई के कारण उनका इस्तीफा ले लिया गया था तब सीधे नाम आ के बावजूद संजय पाठक को क्यों बचाया जा रहा है। वह संजय पाठक के इस्तीफे की मांग को हवा दे रहे हैं।
अजय विश्नोई के पहले पार्टी के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर भी इस मामले को उठा कर पाठक के इस्तीफे की मांग कर चुके हैं। गौर का मानना है कि पाठक का इस्तीफा न होने से कांग्रेस को सरकार और भाजपा संगठन के खिलाफ बोलने का मौका मिल रहा है इसलिए पार्टी को अनुशासनात्मक कार्रवाई का फैसला लेना चाहिए। पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा के दबंग नेताओं में शुमार सांसद प्रहलाद पटेल भी इस मामले में गौर और विश्नोई के पक्ष में खड़े नजर आते हैं। पटेल ने भी संगठन को सलाह दी है कि संजय पाठक का केबिनेट से इस्तीफा हो जाना चाहिए, भले ही जांच में बेदाग पाए जाने पर उन्हें फिर मंत्री बना दिया जाए। प्रहलाद पटेल अपने विधायक भाई जालमसिंह को केबिनेट में मंत्री बनवाने के लिए बहुत कोशिश कर चुके हैं, लेकिन जालम सिंह के बेटों की गुंडागर्दी के किस्से हर बार जालम का रास्ता रोक लेते हैं। प्रहलाद पटेल का इशारा भी अजय विश्नोई की तरह साफ है कि अगर बेटों की गुंडागर्दी के किस्सों के चलते अगर पिता मंत्री बनने से वंचित कर दिया जाता है तो फिर हवाला जैसे मामले में नाम आने पर एक मंत्री को कैसे बचाया जा सकता है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान इस समय सबसे ज्यादा दुविधा- जनक स्थिति में है। पार्टी के नेता और तमाम कार्यकर्ता जिस तरह संगठन पर निशाना साध रहे हैं उससे चौहान की छवि भी खराब हो रही है। वैसे भी उन पर बड़ा आरोप चश्पा है कि उनका बेटा संजय पाठक की कंपनियों में पार्टनर है, यह पार्टनरशिप तीस करोड़ से ज्यादा की बताई जाती है। पाठक के मामले में पार्टी लाइन के खिलाफ खड़े नेता यह मान रहे हैं कि बेटे की पार्टनरशिप के कारण भाजपा अध्यक्ष नंदू भैया कोई कड़ा फैसला नहीं ले पा रहे हैं, हालांकि यह बात अलग है कि संजय पाठक के बारे में कोई भी फैसला लेने की हैसियत पार्टी अध्यक्ष की नहीं है, सारे फैसलेल मुख्यमंत्री के यहां से होंगे। लेकिन असंतुष्टों को मौका मिल गया है और वह नंदकुमार सिंह चौहान के खिलाफ दिल्ली तक शिकायतें पहुंचा रहे हैं। बीजेपी में यह बवाल ऐसे समय मच रहा है जब पार्टी मिशन दो हजार अठारह को लेकर तमाम प्रोग्राम तैयार कर रही है। पार्टी अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान इस कोशिश में हैं कि मिशन 2018 फतह करने के लिए पार्टी की कमान उनके हाथ में बनी रहे लेकिन असंतुष्ट धड़ा लगातार उनके खिलाफ काम कर रहा है और अब उसे कटनी के हवाला मामले के बहाने अच्छा मौका मिल गया है। पार्टी के बड़े नेता जैसे नरेंद्र सिंह तौमर, कैलाश विजयवर्गीय आदि यूपी चुनाव के बहाने फिलहाल मध्यप्रदेश की इस सियासी गर्माहट से दूर बने हैं। लेकिन उनके लोग भी संजय पाठक के बहाने चौहान पर निशाना साधने की कोशिश में जुटे हैं।
पार्टी विद् डिफरेंट का नारा देकर चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाली भाजपा फिलहाल जबाव दे पाने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस के आरोपों और प्रदर्शनों पर मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष भले ही “कानून अपना काम करेगा” कहकर शांत हो जाते हैं लेकिन जब पार्टी के अन्दर से सुचिता का सवाल उठेगा तब बहुत दिन तक टालना मुश्किल हो जाएगा और पार्टी एक अंतर्कलह से घिर जाएगी।