बीजेपी को कहीं महंगा न पड़ जाए बाबूलाल गौर का रिटायरमेंट

Jul 05, 2016

सुमन

मध्यप्रदेश में बीजेपी ने वरिष्ठतम मंत्री बाबूलाल गौर को सरकार से रिटायर तो कर दिया लेकिन उनका रिटायरमेंट बीजेपी को सियासी तौर पर मंहगा पड़ता नजर आ रहा है। कैबिनेट से इस्तीफे के बाद से ही गौर से सियासी मुलाकातों का सिलसिला जिस तरह से बढ़ा उसकी कल्पना शायद बीजेपी के नेताओं को नहीं रही होगी। सियासी दलों और नेताओं के साथ अब सामाजिक संगठन भी गौर के साथ खड़े हो रहे हैं। यादव महासभा ने तो दो टूक कहा है कि समाज के वरिष्ठ नेता के साथ बीजेपी ने जिस तरह का बर्ताव किया है, उससे यादव महासभा अब बीजेपी के साथ खड़े होना भी पसंद नहीं करेगी।

 बीजेपी ने यादव समाज के बाबूलाल गौर को मंत्री पद से हटाकर उसी समाज की ललिता यादव को कैबिनेट में जगह दी है, लेकिन ललिता यादव का सियासी वजूद गौर के पासंग भी नहीं है। ऐसे में समाज के वोटों का रुख बीजेपी की ओर होने का दावा नहीं किया जा सकता है। यादव महासभा ने खुला ऐलान किया है कि गौर को जिस तरह से हटाया गया, वह पूरे समाज का अपमान है और इसलिए महासभा उत्तरप्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का खुलकर विरोध करेगी। महासभा का तो दावा है कि इसका असर दोनों ही राज्यों में बीजेपी के वोट बैंक पर पड़ेगा, लेकिन यह तो तय है कि गौर के पैतृक प्रदेश उत्तरप्रदेश में इसका असर पड़ सकता है। उत्तरप्रदेश की सपा सरकार वैसे भी गौर को बहुत मानती है। ऐसे में तय है कि सपा यादव महासभा जैसे छोटे संगठनों को भी विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ उपयोग करने की कोशिश करेगी।

बीजेपी के लिए यह बात जरूर राहत भरी हो सकती है कि गौर कभी भी पार्टी के खिलाफ नहीं जाएंगे, लेकिन यह भी उतना ही सत्य है कि वे अब मन से पार्टी के लिए काम नहीं कर पाएंगे। गौर चूंकि मूलतः उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के हैं और अब एक जाना पहचाना नाम बन चुके हैं। ऐसे में बीजेपी अगले विधानसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में उनका सियासी उपयोग करती, लेकिन अब लग रहा है कि पार्टी अगर उन्हें प्रचार के लिए काम में लगाती भी है तो उसका कोई बड़ा फायदा पार्टी को नहीं होगा। गौर बेमन से काम करेंगे और यादव महासभा जैसे संगठनों के जरिए सपा जैसी पार्टियां इसका फायदा उठा लेंगी। अभी उत्तरप्रदेश के चुनाव दूर हैं, तब तक हो सकता है कि बीजेपी हाईकमान कहीं गौर का पुनर्वास कर दे। उस स्थिति में असंतोष शायद कुछ हद तक कम हो जाए। लेकिन किसी राजभवन में पहुंचने के बाद भी तो गौर पार्टी की खुलकर मदद कर पाने की स्थिति में नही होंगे।

वैसे भी रिटायरमेंट के बाद से जिस तरह गौर से मिलने के लिए तमाम दलों के नेता पहुंच रहे हैं, उसने बीजेपी की धड़कनें तो बढ़ा दी हैं। मध्यप्रदेश कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं को गौर के बंगले पर जाकर मिलते देखकर नए सियासी समीकरण बनने लगे हैं। वहीं गौर ने यह बताकर कि उनसे तो सिंधिया, कमलनाथ, दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज कांग्रेस नेताओँ ने भी फोन पर बात करके हालचाल पूछे हैं। बकौल सपा के सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपना दूत भेजकर गौर के हालचाल जाने हैं। कांग्रेस के दिग्गजों की गौर से भेंट पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान भले ही कह रहे हैं कि उनसे तो सोनिया गांधी भी मिल लेंगी तो बीजेपी के लिए चिंता का विषय नहीं है। शायद इसीलिए बीच बीच में बीजेपी के नेता और मंत्रीगण भी गौर के घर जाकर मिल आते हैं। ताकि खबर भी मिलती रहे और वरिष्ठ नेता का आशीर्वाद भी। हालांकि नंद कुमारसिंह चौहान का बयान गौर की पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता और निष्ठा की मजबूती को बयान करता है, लेकिन सियासी गलियारों में यह सवाल भी उठ रहा है कि गौर की उसी निष्ठा की तो पार्टी ने आखिरी दौर में कद्र नहीं की। सब का मानना है कि ढाई साल बाद प्रदेश में फिर विधानसभा चुनाव हैं तब तक गौर मंत्री बने रहते तो किसी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। बल्कि बीजेपी को फायदा ही होता। शायद इसीलिए राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि गौर का रिटायरमेंट बीजेपी को महंगा पड़ेगा।