बिरसा मुंडा के बहाने आदिवासी वोट बैंक को साधने की कवायद में बीजेपी कांग्रेस
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 9 जून। विधानसभा चुनाव 2023 से पहले मध्यप्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां वोटरों के हर वर्ग को साधने की कोशिश में जुटी हैं। इनमें आदिवासी वोट बैंक पर दोनों की नजर लगी है। इसलिए इस वर्ग को लुभाने के लिए हर संभव कोशिश की जा रही है। ऐसे में आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले जननायक बिरसा मुंडा सियासी हथियार बन रहे हैं। बीजेपी ने जहां बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवम्बर को धूमधाम से मनाती है, वहीं कांग्रेस ने बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि 9 जून को टारगेट किया है। इस बार कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि पर आदिवासी विधानसभा क्षेत्र हरसूद पहुंच गए और एक तरह से कांग्रेस के चुनाव प्रचार का शंखनाद कर दिया।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का नौ जून को आदिवासी अंचल हरसूद पहुंचकर जननायक भगवान बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि मनाने का फैसला सामान्य नहीं है। बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि के बहाने आदिवासी वोट बैंक पर कांग्रेस की पकड़ बढ़ाने की कवायद में यह सब हो रहा है। बीजेपी पहले ही बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर पर अधिकार सा जमा चुकी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 15 नवबंर को प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश की घोषणा सहित कई बड़े ऐलान कर चुके हैं। इसलिए बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि पर आदिवासी अंचल में पार्टी के बड़े कार्यक्रम का आयोजन कांग्रेस का चुनावी लाभ वाले सियासी ट्रैक पर चलना है। इसे बीजेपी पर काउंटर अटैक भी माना जा सकता है, कयोंकि हरसूद बीजेपी के दिग्गज आदिवासी नेता और पावरफुल मिनिस्टर विजय शाह की विधानसभा क्षेत्र है जो उनके लिए अजेय गढ़ बन गया है। हरसूद में बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि के बहाने कांग्रेस डबल अटैक कर रही है।
कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ ने हरसूद में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में मंच से भाजपा को खुली चुनौती देते हुए कहा कि आने वाले चुनाव में उनका मुकाबला 2018 की जगह 2030 माडल कमल नाथ से है। भाजपा के जो लोग जुल्म और आतंक मचा रहे है, वे समझ लें। सब कान खोल कर सुन लें, पुलिस वाले वर्दी की इज्जत करें, कर्मचारी- अधिकारी, एसडीएम, कलेक्टर आपको ये जनता सर्टिफिकेट देगी। भाजपा की डराने और धमकाने की राजनीति अब नहीं चलेगी। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने इशारों में ही हरसूद विधायक व वन मंत्री विजय शाह का नाम लिए बगैर लोगों से कहा कि अब किसी से डरने की जररूत नहीं है।
कांग्रेस से पहले बीजेपी भी इस वर्ग को साधने में जुट चुकी है। अभी 5 जून को आदिवासी क्षेत्र झाबुआ में सीएम शिवराज एक सम्मेलन में शामिल हुए थे। यह सम्मेलन लाडली बहना योजना को लेकर आयोजित किया गया था, लेकिन इसका निशाना आदिवासी वोट बैंक था। उन्होंने वोटर्स को साधने की कोशिश की और झाबुआ में रात्रि विश्राम भी किया था। इसी दौरान 5 जून को ही ही बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा पन्ना जिले के दौरे पर पहुंचे थे और आदिवासियों से जुड़े कार्यक्रमों में शामिल हुए। दोनों ही पार्टियां हर आदिवासी वर्ग को साधने की हर संभव कोशिश में जुटी हैं।
मध्य प्रदेश की सियासत में आदिवासी वोटर बहुत महत्वपूर्ण हैं। साल 2011 की जनगणना के अनुसार प्रदेश की आबादी में करीब 22 फीसदी वोट अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासियों के हैं। इस वर्ग के लिए प्रदेश में 47 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। वहीं करीब 80 विधानसभा सीटों पर आदिवासी वोटर निर्णायक भूमिका में रहते हैं। साल 2003 में भाजपा ने आरक्षित 41 में से 37 सीटों पर कब्जा किया था। इसके बाद 2008 में आरक्षित सीटें बढ़कर 47 हो गई। तब भी भाजपा ने 29 सीटों और 2013 में 31 सीटें जीती थी। 2018 में कांग्रेस ने 30 सीटें और भाजपा सिर्फ 16 सीटें जीत सकी थी। इस वजह से सत्ता छिटककर कांग्रेस के हाथ आ गई थी। कांग्रेस इस स्थिति को बनाए रखने की जुगत में है तो बीजेपी वापसी पुरानी स्थिति में जाने की कवायद कर रही है।