फिर जीत के लिए मंत्रियों पर लगाम कसने की सीएम शिवराज की कवायद
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 18 मार्च। मध्यप्रदेश में बीजेपी को लगातार पांचवी बार सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने की कवायद में जुटे सीएम शिवराज सिंह चौहान मंत्रियों पर लगाम कसने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण पिछले विधानसभा चुनाव में मंत्रियों के खराब प्रदर्शन के कारण पार्टी का चुनाव हारना है। इस बार सीएम ऐसी कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार की असली कसक को भूले नहीं है। पार्टी सत्ता से बाहर सिर्फ 13 मंत्रियों की हार के चलते हुई थी। अगर 10 मंत्री और चुनाव जीत जाते तो भाजपा के खाते में 119 सीटों होतीं सरकार बनाने के लिए यह आंकड़ा सुरक्षित और काफी था। लेकिन मंत्रिय़ों के गुरूर ने सरकार दांव पर लगवा दी। इसलिए अब अभी से लगाम कसी जा रही है। अगर सरकार की दम पर पार्टी की सत्ता में वापसी करना है तो कड़े कदम उठाने पड़ेंगे। पिछले विधानसभा चुनाव में मंत्रियों के कारण ही पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा था और शर्मसार पूरी सरकार को होना पड़ा था। बीते विधानसभा के आम चुनाव में शिव सरकार के 13 मंत्री हार गए थे। जिसकी वजह से भाजपा बहुमत के आंकड़े से सात सीट पीछे रह गई थी। इसकी वजह से भाजपा की सीटों की संख्या महज 109 रह गई थी। हारने वालों में भोपाल दक्षिण-पश्चिम सीट से उमाशंकर गुप्ता, दमोह में जयंत मलैया, जबलपुर उत्तर सीट से शरद जैन, ग्वालियर सीट पर जयभान सिंह पवैया, ग्वालियर दक्षिण सीट पर नारायण सिंह कुशवाहा, हाटपीपल्या सीट से दीपक जोशी, सेंधवा से अंतरसिंह आर्य, बड़ा मलहरा सीट पर ललिता यादव, मुरैना सीट से रुस्तम सिंह, शहपुरा में ओमप्रकाश धुर्वे, खरगोन में बालकृष्ण पाटीदार, गोहद में लाल सिंह आर्य और बुरहानपुर सीट से अर्चना चिटनीस का नाम शामिल हैं। चुनाव हारने वाले इन 13 मंत्रियों में दो तीन को छोड़कर बाकी सब अपने आप को सियासी बादशाह समझते थे। बैठकों में सीएम के कई बार समझाने के बाद भी सभी को लग रहा था कि उनके जीत बहुत आसान है। इन मंत्रियों ने मतदाताओं और कार्यकर्ताओ दोनों से ठीक से बात करना तक मुनासिब नहीं समझा। परिणाम पूरी सरकार और पार्टी को भुगतना पड़ा। इसलिए इस बार अभी से रणनीति बनना शुरू हो गई है। मंत्रियों को मैदानी हकीकत से रूबरू कराया जा रहा है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह लगातार इस कोशिश में हैं कि सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी जैसा कोई मामला न होने पाए। इसलिए वे सरकार की योजनाओं की लगातार समीक्षा कर रहे हैं। अफसरशाही के खिलाफ भी उनके तेवर कड़े हो रहे हैं। वे भरे मंच से जन शिकायतों को संजीदगी से लेते हुए एक्शन ले रहे हैं। कर्मचारियों अधिकारियों के खिलाफ मंच से ही कार्रवाई की जा रही है। कलेक्ट-एसपी तक हटाए जा रहे हैं। इसलिए जरूरी हो गया है कि मंत्रियों को भी लगाम कसकर रखा जाए। सरकार की गोपनीय सर्वे रिपोर्ट इस बात के संकेत दे रही है कि कई मंत्रियों के क्षेत्र में स्थितिय़ां ठीक नहीं हैं। मतदाताओं की तो छोडिए, पार्टी कार्यकर्ताओं तक की बात नहीं सुनी जा रही है। इसका नुकसान चुनाव में सीधे सरकार को होगा। इसलिए सीएम को अभी से मंत्रियों की लगाम कसना लाजिमी होगा। बचे हुए समय में बड़ी संजीदगी से साथ दबाव डालकर मंत्रियों को अपने क्षेत्र और प्रभार वाले जिलों में सक्रिय करना होगा। जनता से किए गए वायदों को पूरा करना पड़ेगा। और अंत में बेदर्दी से टिकट भी काटना होगा। इसके अलावा और कोई चारा अब नहीं बच रहा है।