पानी तो उतर गया लेकिन पीछे कई सवाल छोड़ गया

Jul 11, 2016

                        सुमन
बीते शुक्रवार और शनिवार के 48 घंटों में इंद्रदेव ने मध्यप्रदेश की सांस हलक में अटका दी। प्रदेश की राजधानी भोपाल सहित कई जिलों में आसमान से बादलों का कहर सा टूट पड़ा और पूरा प्रदेश पानी पानी हो गया। करीब एक दर्जन लोग मौत के आगोश में समा गए और तमाम परिवार तबाह हो गए, जिनके पास न तो खाने को कुछ बचा और ना ही रहने के लिए छत बची। पानी में सब कुछ बह गया। प्रदेश के मुखिया मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित समूचा शासन और प्रशासन सड़क पर उतर आया। सियासतदार भी सड़कों पर दिखाई पड़े, कहीं कुछ काम करते हुए तो कहीं पीडितों को सांत्वाना देते हुए। फिलहाल पानी तो उतर गया लेकिन अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ गया। सड़कों पर उतरे सियासतदारों के लिए भी और राहत की झोली लेकर मैदान में आए शासन और प्रशासन के लिए भी।

हर बरसात के पहले नाले-नालियों की सफाई, जर्जर निर्माणों पर कार्रवाई, पुल-पुलियों की मरम्मत, निचली बस्तियों में भराव रोकने के उपाय आदि कई काम करने के लिए प्रशासन को शासन की ओर से स्थायी निर्देश हैं। इसके लिए शासन और प्रशासन के साथ जिम्मेदार एजेंसियों के पास भी अतिरिक्त बजट होता है, लेकिन थोड़ा सा तेज पानी बरसते ही प्रदेश के सभी जिलों विशेषकर शहरी इलाकों में जो हालात हो जाते हैं, उसे देखकर तो नहीं लगता है कि मानसून पूर्व कोई काम होता है। प्रशासन के जिन आला-अफसरों को भरी बरसात में आम जनता के लिए परेशान होते देखा गया, उनके पास भी शायद इस सवाल का कोई जवाब नहीं होगा कि वे बरसात के पहले क्या कर रहे थे। अगर बरसात के पहले नालों पर हुए निर्माणों को हटा दिया जाता, नालों में फंसे कचड़े को साफ कर दिया जाता, खतरनाक भवनों को ढहा दिया गया होता, जर्जर दीवारों के मालिकों पर कार्रवाई हो गई होती तो शायद यह स्थिति नहीं बनती।

मध्यप्रदेश में शायद ही ऐसा कोई नगर निगम या नगर पालिका अथवा नगर पंचायत नहीं है, जिसने बरसात के पहले अपने कर्त्वयों का पालन किया हो। भोपाल सहित कई स्थानीय निकायों के महापौर और अध्यक्ष बरसात के पहले तफरी करते नजर आए। किसी न किसी बहाने दूसरे राज्यों अथवा देशों की यात्राएं की गई। जब महापौर और अध्यक्ष ही सुध नहीं ले रहे थे, तो पार्षदों को भी किसी बात की चिंता नहीं थी। वे तो अपनेे-अपने इलाकों में पैसे लेकर अतिक्रमण को बढ़ावा दे रहे थे। कहीं वोट बैंक के लिए नई झुग्गियां तनवा रहे थे। नगरीय प्रशासन विभाग वैसे भी कैैलाश विजयवर्गीय के इस्तीफे के बाद से ही अनाथ जैसा है। मुख्यमंत्री ने यह विभाग खुद अपने पास रख लिया और लाल सिंह आर्य राज्य मंत्री होने के नाते प्रभारी हो गए। आर्य की अफसरशाही पर पकड़ नहीं है और मुख्यमंत्री को इतनी समीक्षा करने की फुर्सत नहीं मिली। कुछ योजनाओं के चलते भोपाल सहित कई नगर निगमों में आईएएस अफसर ही कमिश्नर बनाने की मजबूरी है। नए अफसर न तो महापौर की सुनते हैं और न ही अन्य किसी की। ऐसे में कोई तैयारी नहीं हुई और खामियाजा भुगत रहा है आम आदमी, जैसे उससे जुड़ी व्यवस्थाओं का कोई माई बाप ही नहीं है। 

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद रैन कोट ओढ़कर बिना तामझाम के भोपाल की गलियों में घूमते पीड़ितों को सांत्वना और अफसरों को निर्देश दे रहे थे। उन्होंने कैबिनेट की प्रस्तावित पिकनिक केंसिल कर दी और सभी मंत्रियों को अपने-अपने क्षेत्रों में पहुंच कर जनता की मदद करने को कह दिया। मंत्रियों की सक्रियता पर पार्टी के विधायक और सांसद भी सक्रिय हो गए। सभी को बरसात से परेशान जनता से हमदर्दी हो गई। मुख्यमंत्री ने आला अफसरों को भी तलब कर लिया और धड़ाधड़ मीटिंग होने लगीं। लेकिन किसी ने यह सवाल नहीं किया जो सवाल उतरा हुआ पानी पूछ रहा है कि पहले से सब कुछ चाक-चौबंद क्यों नहीं किया गया। ऐसा न करने वालों के खिलाफ क्या एक्शन लिया जाएगा। सरकार की सक्रियता देखकर विपक्ष भी जाग गया। उसने भी गली मोहल्लों का जायजा लिया और सरकार पर तमाम आरोप जड़ दिए। लेकिन इस सवाल का जवाब विपक्ष भी नहीं दे रहा है कि मानसून के पहले उसने कितनी बार सरकार को आगाह किया कि बरसात आने वाली है सब ठीक कर लो।

साफ जाहिर की बरसात भी अब सियासत का मुद्दा बनती जा रही है। सरकारी तंत्र के साथ पीड़ितों के बीच पहुंच कर सत्तारूढ़ जन प्रतिनिधि जनता की हमदर्दी बटोरेंगे और विपक्ष उन पर आरोप लगाएगा। कुछ समय बाद पानी थम जाएगा और सभी लोग सब भूल जाएंगे। अपनों को खोने वाले पीड़ितों की कराह के साथ तमाम सवाल फिर अधूरे रह जाएंगे।