न्यायपालिका में 'अच्छे दिन' ला पाएंगे मोदी?

Jun 06, 2014

नई दिल्ली, 6 जून | क्या बदलाव की आंधी सिर्फ सत्ताधारी दल के बदलने तक ही सीमित रहेगी, या उसका असर न्यायपालिका में भी दिखेगा? यह लाख टके का सवाल न्यायपालिका की मौजूदा हालत को देखते हुए उठ रहा है। न्यायपालिका में विभिन्न स्तरों पर 3.3 करोड़ से अधिक लंबित मामले, 19238 स्वीकृत अधीनस्थ न्यायालयों में 4,296 अदालतों में रिक्ति और उच्च न्यायालयों में 906 न्यायधीशों के स्वीकृत पदों में से 266 पद रिक्त हैं। 

उम्मीद की किरण है और इस पर पूर्व प्रधान न्यायाधीश पी. सतशिवम ने कहा, "मुझे विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से न्यायपालिका के लिए और कोष निर्धारित कर कुछ करेंगे।"

अपने पद से 27 अप्रैल को निवृत होने वाले सतशिवम ने तमिलनाडु स्थित अपने पैतृक गांव कादप्पनल्लूर से फोन पर हुई बातचीत में आईएएनएस से कहा, "मैं समझता हूं कि यदि सरकार ने बजट से पहले हर वर्ष की जाने वाली हमारी मांग का 75 प्रतिशत भी जारी कर दिया तो इससे जिन समस्याओं से अदालतें गुजर रही हैं उनमें से कई का समाधान हो जाएगा। अभी सरकार मांग का 50 से 60 प्रतिशत ही जारी कर रही है।"

न्याय विधान में कोई समझौता किए बगैर बकाया घटाने के लिए नई सरकार से नवीन और लीक से हटकर तरीका अपनाने का आग्रह करते हुए पूर्व अतिरिक्त सोलिसीटर जनरल और वरिष्ठ वकील अमरेंद्र सरण ने कहा कि न्याय प्रदान करने की क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए।

उन्होंने इसे 'न्यायिक ढांचा तैयार करने, प्रक्रियागत कानूनों के सरलीकरण और अपीलों की संख्या घटाने, पुनरीक्षण और पुनर्विचार' आदि के रूप में सूचिबद्ध किया।

लंबित मुकदमों पर विधि आयोग के सदस्य मूलचंद शर्मा ने लीक से हटकर अपना नजरिया रखा।

शर्मा ने आईएएनएस से कहा, "अदालतों के समक्ष सबसे बड़े याची के रूप में सरकार के लिए इस बात पर और ज्यादा गंभीरता और संवेदनशीलता प्रदर्शित करने की आवश्यकता है कि वह किसी मामले को लेकर अदालत में जाए या नहीं जाए।"