घर में मचे घमसान से बीजेपी हलाकान
कई मिथकों को तोड़ते हुए लगातार तीन बार मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज होने वाली बीजेपी चौथी बार भी सत्ता के सिंहासन तक पहुंचने का ख्वाब खुली आंखों से देख रही है। इस सपने को हकीकत में बदलने के लिए बेताब बीजेपी सूबे के सियासी अखाड़े में अकेले ही दम भर रही है। विपक्ष की कोई चुनौती फिलहाल नहीं दिखाई पड़ रही है। डंपर और व्यापमं जैसे बड़े तीर चलाकर भी विपक्ष जनता के मुख्यमंत्री बन चुके शिवराज सिंह चौहान को धराशायी नहीं कर पा रहा है।
अपनी सादगी और सहजता से सियासत की नई इबारत लिखने वाले शिवराज सिंह चौहान ने शायद जनता के मनोभावों को पढ़ने और उन्हें वोट में बदले का ऐसा जादू सीख लिया है, जिसका कोई तोड़ विपक्ष के पास नहीं है। इसके बावजूद अब मध्यप्रदेश के सत्ता साकेत में ऐसा घमासान मचा है जो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान की जोड़ी को विचलित कर सकता है। पार्टी के धुंरधऱ नेताओँ में गिने जाने वाले बाबूलाल गौर, सरताज सिंह, कैलाश विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव, रघुनंदन शर्मा, विक्रम वर्मा जैसे नेताओं की टिप्पणियां सरकार को सांसत में डाल रही हैं। इन दिग्गज नेताओं की बेबाकी पार्टी के उन तमाम कार्यकर्ताओं की नाराजगी को हवा दे रही है, जो पार्टी के सत्तानशीं होने के बाद भी तवज्जो न मिलने से खफा हैं।
यह एक कड़वी सच्चाई है कि पार्टी की पालकी को अपने कांधे पर ढोकर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने वाले कार्यकर्ताओं की आकांक्षाएं सत्ता की चकाचौंध में अपने ही नेता धूमिल कर रहे हैं। ऐसे में प्रदेश की नौकरशाही को अपने मन से सत्ता के रथ को हांकने का गुमान हो गया है और शायद नौकरशाही के इसी गुमान को पढ़ पाने में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे फिलासफर मुख्यमंत्री से भी चूक हो गई। यही चूक आज पार्टी के लिए नासूर बनती जा रही है। मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई भी मुद्दा नहीं खोज पाने वालों ने नौकरशाही के बहाने शिवराज और उनकी सरकार दोनों पर हमला बोलना शुरू कर दिया है।
जब दिग्गज नेता पार्टी लाइन को तोड़ते हैं तो पन्ना लाल शाक्य, ममता मीणा, रामेश्वर शर्मा, शंकरलाल तिवारी, सुदर्शन गुप्ता जैसे विधायकों की हिम्मत बढ़ जाती है। उन सहित कई विधायक और नेता भी पार्टी लाइन को जाने अनजाने में तोड़ रहे हैं। इससे छवि खराब हो रही है तो सिर्फ शिवराज और उनकी सरकार की....असल में मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के जादुई व्यक्तित्व और करिश्माई नेतृत्व ने संघ, संगठन और सत्ता यानि मंत्री, विधायक, कार्यकर्ता सबको बौना कर दिया है। इसलिए मध्यप्रदेश में सरकार तो सिर्फ शिवराज की मानी जाती है। यही पब्लिक परसेप्शन नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी लाइन तोड़कर टीम शिवराज के खिलाफ खड़ा कर देता है। क्योंकि यह एक सच्चाई है कि पार्टी के ही कुछ चिंतकों ने शिवराज महिमा और बेहतर करने के चक्कर में बीजेपी को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी जैसा बना दिया। वोट बटोरने वाला आम कार्यकर्ता इस इवेंट मैनेजमेट के वालेंटियर और पार्टी के बड़े नेता इवेंट्स के खास दर्शक बन गए। पार्टी में नेता और नेतृत्व के नाम पर सिर्फ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ही बचे हैं। इसलिए वे सत्ता के स्वाद से थोड़ा भी दूर होने वाले के निशाने पर आ जाते हैं। पार्टी अगर इस मिथक को तोड़ पाने में सफल नहीं हुई तो निश्चित ही 18 का चुनाव बीजेपी बनाम बीजेपी होगा और पार्टी विथ डिफरेंस से पार्टी विथ कनवीनिएंट बन गई बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर देगा।
नौकरशाही के बहाने अपनी ही पार्टी की सरकार पर निशाना साधने वाले बाबूलाल गौर, कैलाश विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव जैसे बड़े नेता भी यह कतई नहीं चाहते कि पार्टी सत्ता से बाहर हो जाए। उनकी सारी कवायद सिर्फ इस बात को लेकर है कि उनकी वरिष्ठता का सम्मान करते हुए उन्हें सरकार और संगठन के फैसलों में भागीदार बनाए रखा जाए। इसलिए सत्ता और संगठन में जिम्मेदार ओहदों पर बैठें नेताओं को भविष्य की आहट सुन पाना और पहले से ही सावधानी बरतना कोई कठिन काम नहीं होगा। घर में मचे घमासान को जिम्मेदार लोग ही ठीक कर पाएंगे।