महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण के दावेदार टिकट में 12 फीसदी पर ही अटक गए
सुमन त्रिपाठी
भोपाल, 24 अक्टूबर। संसदीय चुनाव प्रक्रिया में महिलाओं के लिए आरक्षण का दमदारी से समर्थन करने वाले दल मौका पड़ने पर फिसड्डी साबित हुए। आधी आबादी को 33 फीसदी आरक्षण का दम भरने वाली भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा, आप आदि बड़ी पार्टियां मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में उन्हें 15 फीसदी टिकट भी नहीं दे पाईं। यह आंकड़ा साढ़े बारह फीसदी के आसपास ही अटक गया। जबकि मध्यप्रदेश में महिला वोटरों की संख्या कुल वोटरों की लगभग पचास फीसदी है।
मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में पिछले कुछ समय से महिला आरक्षण हाट इश्यू बना हुआ है। मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर संसदीय चुनावों में 33 फीसदी महिला आरक्षण का बिल पास करवाया तो सरकार की तारीफ में तमाम कसीदे पढ़े गए। विपक्ष में होने के बावजूद बिल का समर्थन करने वाली कांग्रेस इस बात को लेकर अपनी पीठ थपथपाती रही कि आधी आबादी को 33 फीसदी आरक्षण मूलतः उसकी सोच है और राजीव गांदी के प्रधानमंत्री काल में यह बिल लाया गया था। भाजपा और कांग्रेस के साथ अन्य कई दलों ने भी बिल का समर्थन करते हुए खुद को आधी आबादी का सबसे बड़ा हितचिंतक बता दिया। मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में महिलाओं का हितचिंतक बताने की होड़ सी लग गई। भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निकाय चुनाव में पचास फीसदी टिकट महिलाओं को देने के फैसले को खूब प्रचारित किया तो कांग्रेस की ओर से पूर्व सीएम कमलनाथ ने उनकी सरकार में महिलाओँ के लिए उठाए गए कदमों का दम भरा। दोनों ही पार्टियों के तमाम जिम्मेदारों ने अपने-अपने नेताओं की हां में हां खूब मिलाई। लेकिन विधानसभा चुनाव में सब खामोश हो गए। किसी भी दल ने महिलाओं को 33 फीसदी टिकट देना तो दूर उस बारे में सोचा तक नहीं है। सभी का एक ही दावा है कि जीत सकने वाले उम्मीदवार को टिकट दिया गया है। भाजपा ने सिर्फ 28 महिलाओं को ही चुनाव मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने 29 महिलाओं को टिकट दिया है। मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों की तुलना में यह टिकट करीब साढ़े बारह फीसदी ही होते हैं। यह स्थिति तब है जब मध्यप्रदेश के मतदाताओं में लगभग आधी संख्या महिलाओं की है। मध्यप्रदेश में इस बार मतदाताओं की संख्या लगभग 5 करोड़ 60 लाख 60 हजार है। इनमें से लगभग करीब 2 करोड़ 72 लाख 33 हजार महिला मतदाता हैं। इसके बाद भी टिकट बमुश्किल साढ़े बारह फीसदी महिलाओं को ही दिए गए हैं। शायद यही राजनीति की कड़वी हकीकत है।
भाजपा से सिर्फ 28 महिलाएं
ग्वालियर पूर्व से माया सिंह, हटा से उमा खटीक, रैगांव से से प्रतिमा बागरी, चितरंगी से राधा सिंह, मंडला से संपतिया ऊइके, बालाघाट से मौसम बिसेन, खंडवा से कंचन मुकेश तन्वे, पंधाना से छाया मोरे, नेपानगर से मंजू राजेन्द्र दादू, बुरहानपुर से अर्चना चिटनिस, धार से नीना विक्रम वर्मा, अम्बेडकर नगर महू से ऊषा ठाकुर, जयसिंहनगर से मनीषा सिंह, मानपुर से मीना सिंह मांडवे, गोविंदपुरा से कृष्णा गौर, देवास से गायत्रीराजे पंवार, इंदौर 4 से मालिनी लक्ष्मण सिंह गौड़, अमरवाड़ा से मोनिका बट्टी, डबरा से इमरती देवी, सीधी से रीति पाठक,परासिया से ज्योति डहेरिया, घोंडाडोंगरी से गंगा बाई उइके, भीकनगांव से नंदा ब्राह्मणे, सैलाना से संगीता चारले, सबलगढ़ से सरला विजेंद्र यादव, चाचौड़ा से प्रियंका मीणा, छतरपुर से ललिता यादव और पेटलावद से निर्मला भूरिया।
कांग्रेस से 29 महिलाएं मैदान में
बीना से निर्मला सप्रे, खुरई से रक्षा राजपूत, रहली से ज्योति पटेल, सागर से निधि जैन, बांधवगढ़ से सावित्री सिंह, गडरवारा से सुनीता पटेल, कुरवाई से रानी अहिरवार, सारंगपुर से कला महेश मालवीय, नेपानगर से गेंदू बाई चौहान, धार से प्रभा गौतम, धौहानी से कमलेश सिंह, जतारा से किरण अहिरवार, खरगापुर से चंदा सिंह गौर, रैगांव से कल्पना वर्मा, मलहारा से साध्वी रामसिया भारती, नागौद से डॉ. रश्मि सिंह पटेल, मनगवां से बबिता साकेत, सिंगरौली से रेनू शाह, जैतपुर से उमा धुर्वे, सिहोरा से एकता ठाकुर, लांजी से हीना कांवरे, बालाघाट से अनुभा मुंजारे, बैरसिया से जयश्री हरिकरण, पांधाना से रूपाली बारे, भीकनगांव से झूमा सोलंकी, महेश्वर से विजयलक्ष्मी साधो, सांवेर से रीना बौरासी सेठिया, उज्जैन उत्तर से माया राजेश त्रिवेदी और जोबट से सोना पटेल।
थर्ड फोर्स भी दम नहीं दिखा पाई
महिलाओँ को टिकट देने के मामले में थर्ड फोर्स भी दम नहीं दिखाई पाई है। संसद में महिला आरक्षण बिल का समर्थन करते हुए तमाम दावे करने वाली बसपा, सपा और आप ने भी इस मामले में दमदारी का प्रदर्शन नहीं किया। इन दलों ने मध्यप्रदेश की 230 सीटों में से 10 पर भी महिलाओँ को चुनाव मैदान में नहीं उतारा है।