वो शिवराज जिन्हें मैं जानती हूँ..............

Mar 23, 2021

उमा श्री भारती 

1984 का दिसम्बर का महीना था, लोकसभा का चुनाव था इंदिरा गांधी जी की शहादत के कारण राजीव गांधी और कांग्रेस के लिए प्रचण्ड लहर थी लेकिन फिर भी हम भाजपा के लोग पूरी मजबूती से चुनाव लड़ रहे थे। मुझे राजनीति में आए कुछ ही दिन हुए थे लेकिन फिर भी मैं भाजपा की कई कारणों से स्टार केम्पेनर थी।
1. मेरे प्रवचनों के कारण देश-विदेश में बचपन से ही मेरी ख्याति थी।
2. मेरा महिला होना, युवा होना।
3. हमारी विचारधारा के परिवार में एवं राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी की घनिष्ठता के कारण भाजपा में आत्मीय एवं सम्मानजनक स्थिति होना।

साधनों का घोर अभाव था गाड़ियों की कमी थी इसलिए मैं रायसेन की तरफ से चुनाव प्रचार करते हुए बाड़ी की तरफ आई। किराये की एक ही एम्बेसडर थी, विदिशा लोकसभा का चुनाव था मुझे बाड़ी में सभा को सम्बोधित करना था, लेकिन देर हो चुकी थी, रात हो चुकी थी, ठण्ड बढ़ चुकी थी तो मैं गाड़ी की पीछे की सीट पर सो गई तथा बाड़ी में मुझे भाषण करने के लिए जगाया नहीं जा सका। वहां शिवराज जी का भाषण चल रहा था। वो भाषण खत्म करके आये तथा मेरी ही गाड़ी की आगे की सीट पर बैठ गये, हम भोपाल पहुंचे मेरी सारंग जी के यहां रूकने की व्यवस्था थी, इसलिए मैं जब गाड़ी से उतरी तब मैंने शिवराज जी को पहली बार देखा। उस समय मुझे बहुत ही गंभीर प्रवृत्ति के धैर्यवान व्यक्ति लगे। फिर मैं भाजपा की उपाध्यक्ष, शिवराज जी भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने और मैं युवा मोर्चा की प्रभारी बनी फिर मेरा और शिवराज जी का संपर्क बढ़ा। कार्यक्रमों में एक साथ भागीदारी हुई मैंने देखा गंभीरता, सहनशीलता, धैर्य उनके स्वभाव के सहज अंग हैं। इस तरह से 2003 तक हमारा एक लंबा साथ चला। उनका विवाह हुआ तो शिवराज जी की जीवन संगिनी साधना सिंह जी ने मुझे ननद का दर्जा देते हुए मेरे और शिवराज जी की नजदीकियों को और मजबूत किया।

जब शिवराज जी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो जो हालात थे, उसमें बहुत कटुता आ सकती थी, किन्तु उनके संस्कारशील, शालीन स्वभाव के कारण संतुलन बना रहा।

मैंने मध्यप्रदेश में 2003 में बहुत संघर्ष, तपस्या एवं कठिनाई से कांग्रेस की जड़ें उखाड़ कर भाजपा की सरकार बनाई थी। मेरे बाद शिवराज जी ने उतनी ही तपस्या, संघर्ष एवं धैर्य से सरकार चलाई और इसी के कारण 2008 एवं 2013 में उनके नेतृत्व में चुनाव हुआ एवं विजय मिली। मध्यप्रदेश ने उनके शासन काल में विकास की नई ऊॅंचाईयों को छुआ। सड़क, बिजली, पानी एवं गाय, गरीब, नारी की रक्षा का वायदा पूरा हुआ।
उनकी विशेषता रही कि मध्यप्रदेश में जो विकास हुआ वह मानवीय संवेदनाओं के साथ हुआ, जिसके उदाहरण तो अनन्त हैं किन्तु मैं दो का उल्लेख करती हूँ-

सड़क, बिजली, पानी, सिंचाई भी हो रहे थे तथा तीर्थ दर्शन योजना एवं कन्या विवाह भी हो रहे थे। भारत में किसी राज्य में शायद यह पहला प्रयोग था जहां विकास के समानांतर मानवीय संवेदना की धारा बह रही थी।

शिवराज जी के मध्यप्रदेश की सरकार के स्वर्णिम काल के समय पर सबसे बड़ी चुनौती थी केंद्र में यूपीए की मनमोहन सिंह जी की सरकार होना। 2006-14 तक यही मध्यप्रदेश के विकास का स्वर्णिम काल था तथा इसी समय पर केन्द्र में हमारे लिए विपरीत परिस्थितियाँ हो सकती थीं किन्तु यह तो अध्ययन करने के योग्य विषय है कि अपनी सूझबूझ से शिवराज जी ने केन्द्र की योजनाओं का भरपूर लाभ उठाया तथा उन्हीं परिस्थितियों में 2013 का विधानसभा का चुनाव प्रबल बहुमत से जीता। जब केन्द्र में विपरीत दल की सरकार होती है तब अधिकतर मुख्यमंत्री अपने राज्यों के विकास को लेकर यह शिकायत करते हैं कि केन्द्र हमारा सहयोग नहीं कर रहा। इस विषय पर शिवराज जी से सीखा जा सकता है कि ऐसी परिस्थिति का मुकाबला करते हुए राज्य के विकास की धारा को गतिमान बनाये रखना, इसमें शिवराज जी का अनुकरण किया जा सकता है।

फिर आया 2018 हम जरा सी चूक से चुनाव हार गये कितने प्रकार के दबाव पड़े कि उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया में चूक हो गई और शिवराज जी के अपार लोकप्रिय होते हुए भी कुछ सीटों से पीछे रह गये।

कमलनाथ जी की सरकार स्वाभाविक रूप से नहीं बनीं थी न तो जनता, न भाजपा के कार्यकर्ता इस सत्य को स्वीकार कर पा रहे थे। कमलनाथ जी की सरकार को बहुत लोग मिलकर चला रहे थे तथा जिस नौजवान की बदौलत कांग्रेस की सरकार बन पाई थी उसकी एवं उसके सहयोगियों की पूरे समय अवहेलना हो रही थी अपमान हो रहा था अधिकारी निरंकुश, सब तरफ अराजकता का माहौल था तथा मध्यप्रदेश के नागरिक असुरक्षा के बोध से पीड़ित हो गये थे। सरकार तो गिरनी ही थी ऐसी सरकार लोकतंत्र के लिए घातक होती और अंत में कांग्रेस में भगदड़ मची और सरकार गिरी ज्योतिरादित्य जी भाजपा में आये एवं उनके साथी जो कैबिनेट मिनिस्टर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन थे यह भी पद की परवाह ना करते हुए सर्वस्व त्याग कर भाजपा में आये।

अगर कमलनाथ जी ने इस्तीफे की जगह फ्लोर टेस्ट का सामना किया होता तो एक साथ 40-50 विधायकों की हिलोर उधर से इधर आ गई होती क्योंकि कांग्रेस के सभी विधायक असुरक्षित महसूस करने लगे थे और अभी तक कर रहे हैं।

23 मार्च, 2020 को जब शिवराज जी ने शपथ ली तब उनके साथ पांच कैबिनेट मिनिस्टर थे और दिनांक 22 मार्च को ही लॉक डाउन लग गया था। फिर पंचमुखी महादेव की तरह शिवराज जी ने लॉकडाउन का मुकाबला किया। कोरोना का मुकाबला किया। फिर 28 स्थानों पर उप चुनावों का मुकाबला किया। इन सबमें हमने उनके साथ मेहनत की और जिस तरह से ज्योतिरादित्य जी ने अपने लोगों को कांग्रेस के टिकिट पर जिता लिया था उसी तरह से भाजपा से भी उनको जिता के ले आये। ज्योतिरादित्य जी के जैसा करिश्माई व्यक्तित्व भाजपा की बहुत बड़ी उपलब्धि है तथा उनके साथ आए सभी लोग भी हमारी ताकत बन गये हैं। जब हम सवा साल के लिए सत्ता से बाहर थे तब शिवराज जी संघर्ष के लिए सड़क पर खड़े हो गये और जब सरकार बनी तो इस कठिन दौर में विकास की प्रकियाओं को चलाने में भी उन्होंने चमत्कार दिखाया। वे भारत की राजनीति के अनूठे नेता हैं। उनमें एक साथ गंभीरता, गहराई, दृढ़ता एवं शालीनता का मेल है। मेरे बड़े भाई श्री शिवराज जी मुझसे एक साल बड़े होते हुए भी मुझे कभी पिता जैसे तो कभी पुत्र जैसे तथा कई गुणों में गुरू के जैसे लगते हैं। एक साल पूरा करने के लिए शिवराज जी, भाजपा के कार्यकर्ता, भाजपा के विधायक, ज्योतिरादित्य जी एवं उनके साथी तथा मध्यप्रदेश की जनता का भूरि-भूरि अभिनन्दन।

मैं हमेशा शिवराज जी की समर्थक, सहयोगी रहूंगी तथा मध्यप्रदेश में भाजपा का परचम फहराता ही रहे, इसमें खुद भी जी तोड़ मेहनत करूंगी।

 

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