मोदी का प्रण पूरा- व्यर्थ नहीं गया डा. मुखर्जी का बलिदान
कैलाश विजयवर्गीय
कश्मीर के लाल चौक में अब शान से फहरायाएगा तिरंगा। पूरे जम्मू-कश्मीर में अब तिरंगा ही फहराएगा। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने के फैसले से 23 जून 1952 में देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों की बलि देने वाले जनसंघ के अध्यक्ष डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने 28 साल पहले 26 जनवरी 1992 में आतंकवाद से पीड़ित कश्मीर के लाल चौक से जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का जो प्रण लिया था, वह 5 अगस्त 2019 को पूरा कर दिया। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डा.मुरली मनोहर जोशी ने कन्याकुमारी से प्रारम्भ हुई यात्रा का उस दिन कश्मीर में समाप्त किया था।
इतिहास में 15 अगस्त भारत के स्वतंत्रता दिवस की तरह ही 5 अगस्त जम्मू-कश्मीर की आजादी के लिए दर्ज हो गया है। 5 अगस्त को गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में धारा 370 हटाने के लिए संकल्प पेश किया। शाह के संसद में प्रस्ताव रखने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 हटाने के लिए संविधान आदेश (जम्मू-कश्मीर के लिए) 2019 के तहत अधिसूचना जारी कर दी। लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर दिल्ली और पुद्दुचेरी की तरह विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर से धारा 35ए भी समाप्त कर दी गई है। 35ए के कारण जम्मू-कश्मीर की महिला के राज्य से बाहर शादी करने पर वहां की नागरिकता समाप्त कर दी जाती थी। पाकिस्तान में शादी करने पर तो वहां महिला को नागरिकता मिल जाती थी।
देश के बंटवारे के समय जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह पहले स्वतंत्र राज्य चाहते थे। बाद में उन्होंने भारत में विलय की मंजूरी दी। नेशनल कांफ्रेस के नेता शेख अब्दुल्ला ने राज्य को भारतीय संविधान से अलग करने की पेशकश की थी। नवंबर, 1956 में राज्य का संविधान बना और 26 जनवरी, 1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया। धारा 370 के प्रावधानों के कारण संसद को जम्मू-कश्मीर में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था। अन्य कार्यों से संबंधित क़ानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की अनुमति चाहिए थी। जम्मू-कश्मीर में भारत के निवासी जमीन नहीं खरीद सकते थे। धारा 370 में समय-समय पर बदलाब भी हुए। 1965 तक वहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था। उनकी जगह सदर-ए-रियासत और प्रधानमंत्री होता था। धारा 370 में हुए बदलावों के आधार पर ही धारा 370 हटाने का सरकार ने फैसला किया है।
जवाहर लाल नेहरू सरकार ने भारतीय संविधान की धारा 370 के तहत यह प्रावधान किया था कि कोई भी नागरिक भारत सरकार के परमिट बना जम्मू-कश्मीर में प्रवेश नहीं कर सकता था। जनसंघ के अध्यक्ष डा.मुखर्जी ने इस प्रावधान का विरोध किया था। 1952 में एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा के नारे के साथ जोरदार प्रदर्शन किए गए थे। डा.मुखर्जी उस समय कहते थे कि नेहरू जी कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है तो वहां जाने के लिए परमिट क्यों जरूरी है। शेख अब्दुल्ला ने डोगरा समुदाय पर भी बहुत जुल्म किए। डोगरा समुदाय में जम्मू-कश्मीर का पूरी तरह भारत में विलय करने के लिए आंदोलन किया था।
डा.मुखर्जी ने विरोध जताने और कश्मीर के हालत देखने के लिए 8 मई 1953 को दिल्ली से पैसेंजर ट्रेन यात्रा प्रारम्भ की। उनके साथ उस समय अटल बिहारी वाजपेयी भी थे। जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश करने पर डा.मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें शेख अब्दुल्ला सरकार ने बहुत ही छोटे से कमरे में कैद करके रखा। 23 जून 1953 को बीमारी की हालत में उन्हें एक इंजेक्शन दिया गया। डा.मुखर्जी देश की एकता और अखंडता के लिए बलिदान हो गए। नेहरू ने डा.मुखर्जी की मां जोगमाया की उनकी मृत्यु की जांच कराने की मांग को अनसुना कर दिया था।
अब तिरंगा ही जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज होगा। आरटीआई और सीएजी कानून लागू होंगे। विधानसभा की अवधि छह साल की बजाय पांच साल की होगी। राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अब अपराध माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश अब राज्य में लागू होंगे। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरह लगातार कठिन श्रम करते हुए जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन कराया, उन्हें बधाई। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी इस मुद्दे पर विरोध कर रहे हैं। संसद में हंगामा मचाया गया। ऐसे दलों को समझना चाहिए कि देश की राजनीति बदल गई है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक परिवर्तन की लहर चल रही है।