भरोसा नहीं होता कि अनिल जी चले गए...
(शिवराज सिंह चौहान)
भरोसा नहीं होता है कि अनिल दवे जी अब हमारे बीच नहीं हैं। अदभुत व्यक्तित्व के धनी, नदी संरक्षक, पर्यावरणविद, मौलिक चिंतक, कुशल संगठक थे। अनिल जी मौलिक लेखक थे। वे कल्पनाशील मस्तिष्क के धनी थे। उन्होंने अनेकों किताबें लिखीं। वे असाधारण रणनीतिकार थे। बचपन से जीवन भारत माता के चरणों में समर्पित कर दिया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक के नाते पूरा जीवन, देश और समाज की सेवा में समर्पित कर दिया।
अनिल जी को जो भी दायित्व मिला, उनको पूरा किया। संघ की योजना के अनुरूप वे भोपाल विभाग के प्रचारक थे और मैं उनका स्वयं-सेवक रहा। वे सबका ध्यान रखते थे। मुझे याद है कि जब मेरा जब एक्सीडेंट हुआ था तब उन्होंने मेरा आपरेशन मुम्बई में डॉ. ढोलकिया के हाथों से ही करवाना सुनिश्चित किया था। वे अपने कार्यकर्ताओं का हमेशा ध्यान रखते थे। सदैव कार्य में रमे रहते थे । कुशल रणनीतिकार थे। वर्ष 2003, 2008 व 2013 के विधान सभा व लोक सभा के चुनाव उनकी कुशल रणनीति के कारण हम जीते, मैं यह कहूँ तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। विजय में उनका उल्लेखनीय योगदान था।
सदैव काम मे लगे रहने वाले, रमे रहने वाले एवं माँ नर्मदा के वे ऐसे भक्त थे कि उन्हें जब भी समय मिलता था, मैय्या के तट पर पहुँच जाते थे। वे पायलट थे। उन्होंने नर्मदा की परिक्रमा छोटे विमान से की थी, फिर राफ्ट से गुजरे थे। इस दौरान नर्मदा संरक्षण के लिए गाँवों में संरक्षण चौपाल बैठकें की थीं। बांदराभान में नर्मदा के तट पर नदी महोत्सव का प्रति दो वर्ष में आयोजन करते थे। मैं भी उसमें भाग लेता था। 'नमामि देवि नर्मदे'-सेवा यात्रा का विचार जब मैंने उन्हें बताया था तो वे बहुत प्रसन्न हुए थे। मेरी बहुत इच्छा थी कि वे नर्मदा सेवा यात्रा में आये और वे 09 मई को यात्रा में आए। नदी जल और पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम में 8 मई को भोपाल में भाग लिया था। परसों उनसे मेरी बात हुई थी। मैंने बताया कि अमरकंटक कार्यक्रम बहुत अच्छा हुआ। मैंने उन्हें आगे की योजनाएँ बनाईये एवं मिलकर उसे पूरी करना है। बहुत एवं अल्प समय में पर्यावरण एवं वन मंत्री होने के नाते अस्वस्थ होने के बाद भी उन्होंने बडी दक्षता एवं प्रशासनिक कुशलता का परिचय दिया था। भारतीय संस्कारों में पले-बढे पगे अनिल जी अब हमारे बीच नहीं हैं, सहज भरोसा नहीं होता।
उनके निधन से हमने कुशल संगठक, नदी संरक्षक, पर्यावरणविद एवं एक नेतृत्व जो देश के लिए समर्पित था उसे खोया है। उनका जाना प्रदेश व देश के लिए अपूरणीय क्षति है। व्यक्तिगत रूप से मेरी क्षति है। मैं सदमें में हूँ। लेकिन नियती पर किसी का बस नहीं है। उनकी वसियत मिली है जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि संभव हो तो उनका अंतिम संस्कार बांद्राभान में नदी महोत्सव के स्थान पर किया जाए। अंतिम संस्कार वैदिक रीति से करें एवं उनकी स्मृति में स्थल का नामकरण, पुरस्कार, प्रतियोगिता इत्यादि का आयोजन न करें। अगर कुछ करना है तो पेड़ लगाए एवं उन्हें संरक्षित कर बढ़े करें एवं नदी तालाब का संरक्षण का कार्य करेंगें तो उन्हें आनंद होगा और ये करते हुए भी उनके नाम का उल्लेख न करें। एक महामानव ही इस तरह की वसियत लिख सकता है।
मैं उनके चरणों में प्रणाम करता हूँ। भगवान ने श्री चरणों में उनको स्थान दिया है। ईश्वर दिवंगत आत्मा शांति दे। मेरे जैसे हजारों कार्यकर्ता परिजनों को गहन दुख सहन करने की क्षमता दे। हो सके तो अनिल जी फिर लौटें........
(ब्लॉगर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)