बल्ला मैच की जीत का प्रतीक होना चाहिए, प्रजातंत्र की हार का नहीं

Jun 29, 2019

प्रिय युवा साथियों , हिंदुस्तान की दो बड़ी खूबियाँ हैं, एक तो यह विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्र है और दूसरा विश्व में सर्वाधिक युवा देश। ऐसे में स्वाभाविक है कि चुने हुए युवा जन प्रतिनिधियों से देश को अपेक्षाएं भी अधिक होंगी, और हों भी क्यों न, हमारे पास अपने प्रजातंत्र की गौरवशाली विरासत जो है ।
भारतीय प्रजातंत्र का जो छायादार वटवृक्ष आज हमें दिखाई देता है , इसके त्याग और बलिदान का बीज बहुत गहरा बोया गया है और आज समूचे विश्व के लिए यह प्रेरणादायी है ।
पंडित नेहरू कहते थे, "संस्कारवान युवा ही देश का भविष्य सँवारेगा।" आज हमारे चुने हुए युवा जनप्रतिनिधियों को आत्ममंथन - आत्मचिंतन करना चाहिए कि वो किस रास्ते पर भारत के भविष्य को ले जाना चाहते हैं । एक रास्ता प्रजातंत्र की गौरवशाली विरासत की उम्मीदों को पूरा करने वाला है, और दूसरा उन्मादी । दोस्तों , उन्मादी व्यवहार सस्ता प्रचार तो दे सकता है ,प्रजातंत्र को परिपक्वता नहीं दे सकता ।
युवा जनप्रतिनिधियों , आप पर दायित्व है सदन में कानून बनाने का ,सड़कों पर कानून हाथ में लेने का नहीं । आप अपनी बात दृढ़ता और मुखरता से रखें, मर्यादा को लाँघ कर नहीं ।
आज समूचे विश्व को हमारे बल्ले की चमक देखने को मिल रही है । हमारी क्रिकेट टीम लगातार जीत हासिल कर रही है और हमें पूरी उम्मीद है कि हम विश्व कप में अपना परचम लहराएंगे । मगर बल्ले की यह जीत बग़ैर मेहनत के हासिल नहीं की जा सकती। खिलाड़ियों को मर्यादित मेहनत करनी होती है। मर्यादा धैर्य सिखाती है ,धैर्य से सहनशीलता आती है, सहनशीलता से वे परिपक्व होते हैं और परिपक्वता जीत की बुनियाद बनती है ।
अर्थात खेल का मैदान हो या प्रजातंत्र, मूल मंत्र एक ही है।
यह बात मैं सीमित और संकुचित दायरे में रह कर नहीं कह रहा हूँ। सभी दल के युवा साथियों से मेरा यह अनुरोध है। मुख्यमंत्री होने के नाते मेरा दायित्व भी है कि मैं अपने नौजवान और होनहार साथियों के साथ विमर्श करता रहूँ ।
युवा जनप्रतिनिधि साथियों, बल्ले को मैदान में भारत की जीत का प्रतीक बनाइए ,सड़कों पर प्रजातंत्र की हार का नहीं ।

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