हरिशंकर परसाई की तीन कहानियों का नाटक के रूप में मंचन
खरी खरी संवाददाता
भोपाल।लगातार खोखली होती जा रही हमारी सामाजिक और राजनैतिक व्यवस्था में पिसते मध्यमवर्गीय मन की सच्चाईयों को निकटता से पकड़ने वाले हरिशंकर परसाई ने सदैव विवेक और विज्ञान सम्मत दृष्टि को खास किस्म से अपनाया, जिससे पाठक हर समय यह महसूस करता रहा कि लेखक उसके सामने ही बैठा है। हरिशंकर परसाई की सामाजिक ताने-बाने पर आधारित कुछ इसी तरह की कहानियों में से तीन कहानियों ‘प्रेमियों की वापसी’, ‘घेरे के भीतर’ और ‘एक फिल्म कथा’ को चुनकर मध्यप्रदेश नाट्य विद्यालय में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं द्वारा नाटकों का मंचन देवेंद्र राज अंकुर के मार्गदर्शन तथा द्वारिका दाहिया के सह निर्देशन में परसाई के संग ‘प्रेम के तीन रंग’ के अंतर्गत किया गया।
प्रेमियों की वापसी-
व्यंग्यात्मक रूप से इस नाटक की कहानी ऐसे दो प्रेमियों के इर्द-गिर्द घूमती है जो समाज के बंधनों से मुक्त होकर प्रेम करते हैं। लेकिन यहां सामाज द्वारा लगाए जा रहे तमाम बन्धनों के कारण वह सोचते हैं कि मरने के बाद स्वर्ग में मुक्त रूप से प्यार कर सकेंगे। वहां उन्हें कोई नहीं रोकेगा और आत्महत्या कर लेते हैं। इस नाटक में लेखक ने व्यंग्यात्मक रूप से प्रेमी-प्रेमिका की उस मनोदशा को दर्शाया है जिसके दौरान उन्हें प्रेम के अलावा कुछ नहीं दिखता। समाज द्वारा लगाए जा रहे तरह-तरह के बंधन के कारण वह उस समाज को ठुकरा स्वर्ग में प्यार करने की सोचते हैं।
मंच पर- इस नाटक को अभिनीत करने वालों में उत्तम कुमार, अखण्ड शर्मा, अंशुल दुबे, राजा सुब्रमणियम, विकास राजपूत, विकास सोनी, प्रेक्षा मेहता व अनीता बिटालू प्रमुख रहे।
घेरे के भीतर-
यह नाटक भी भारतीय समाज पुरुष प्रधानता के अभिमान से घिरा और इसी घेरे के भीतर पुरुष द्वारा पिटती स्त्री के वेदना की आवाज का द्वंद्व चलता है। एक स्त्री विमला जो अपने पति रामप्रसाद के किसी दूसरी स्त्री लक्ष्मी के साथ प्रेम-पत्र व्यवहार को पकड़ने पर पिटती है, क्योंकि वह उसके काम में हस्तक्षेप करती है। वहीं दूसरी तरफ जब विमला दूसरे मर्द को कल्पित भाई मानकर लिखती है तब भी पति उसे मारता है क्योंकि वह उसकी बराबरी करती है। यहां विमला को मार पसंद है क्योंकि रामप्रसाद और विमला के बीच घृणा का रिश्ता बनने लगता है और रामप्रसाद के मन से लक्ष्मी के हटने से दोनों घृणा से बने अटूट रिश्ते के भीतर बंधकर भी जीवन साथ निभाते हैं।
मंच पर- इस नाटक को अभिनीत करने वालों में ख्याति मण्डोड, शिव नारायण कुन्देर, आरती यादव, शान्तनू पाण्डेय, रोहित पासवान, सुनील कुमार शर्मा व पूजा मिश्रा, सोनू साहा और दुर्गेश खास रहे।
एक फिल्म कथा की कहानी-
इस नाटक की कहानी जैसा नाम है उसी तरह गरीब और अमीर की कहानी को कहती फिल्म की कथा की ही तरह है। इसमें जहां लड़की रंजना गरीब परिवार से है तो वहीं राकेश अमीर पिता का इकलौता बेटा है। राजीव रंजना को गुण्डों से बचाता है और दोनों में प्यार हो जाता है और दोनों शादी करना चाहते हैं लेकिन राकेश का पिता इसके लिए तैयार नहीं होता। फिल्मी कहानी की तरह इस नाटक में विलेन सुरेंद्र सिंह का प्रादुर्भाव होता है और वह रंजना के पिता को दिए गए कर्ज के बदले बेटी से शादी करना चाहता है। किसी अन्य विकल्प के न होने पर रंजना का विवाह सुरेंद्रसिंह से हो जाता है। इस नाटक को अभिनीत करने में राजीव रंजन झा, शिवानी वर्मा, अक्षय कुमार ठाकुर, एकता सिंह परिहार, गौरव, आराधना परस्ते, सौरभ शर्मा, हरि नारायण चढ़ार रहे।