सैयद हैदर रजा की प्रदर्शनी: बिंदुओं से बने चित्र कहते हैं एक कहानी
खरी खरी संवाददाता
भोपाल, 25 जुलाई। कलाकार तो बहुत होते हैं लेकिन कुछ कलाकार कालजयी होते हैं। समय और परिस्थितियों में तमाम बदलाव के बाद भी उनकी और उनकी कला की चमक जस की तस रहती है। सैयद हैदर रजा ऐसे ही कलाकारों में गिने जाते हैं। भारत भवन की रंगदर्शनी दीर्घा में चल रही सैय्यद हैदर रजा के चित्रों की प्रदर्शनी देखकर तो ऐसा ही लगता है।
भारत भवन की रंगदीर्घा में प्रदर्शित महान चित्रकार रजा के बिन्दू पर आधारित चित्रों को देखकर एक आम व्यक्ति के तुरन्त कुछ अनुमान लगा पाना असंभव सा ही है, लेकिन बिन्दुओं पर आधारित चित्रों को देखकर गहरी सोच का भी कायल हो जाता है। इस चित्र पदर्शनी में शामिल सभी चित्रो में भी बिंदु से शुरू करके बनाए गए चित्रों को शामिल किया गया है। भारतीय अध्यात्म पर बने कुछ चित्र उनकी अंतदृष्टि व विचारों को साफ प्रकट करते दिखे। गहरे रंगों से कैनवास पर उकेरे गए इन चित्रों में कई चित्र महाभारत पर आधारित हैं तो कई ज्यामितीय, कुंडलिनी व नाग पर भी प्रदर्शित किए गए हैं। गहरे रंगों में बिन्दू के आधार पर उनके द्वारा बनाए गए अधिकतर चित्र नीले चांद, चिंगारी, दहकती लौ आदि अपनी कहानी कहते महसूस होते हैं। कई चित्र कबीलों पर आधारित कहानी को बयां करते हैं, तो कई चित्रों में खंडहरों, सूनी इमारतों को भी दर्शाया गया है। प्रदर्शित चित्रों में कई चित्र के टाइटल भी बिन्दू, कुण्डलिनी, ट्री, शौर्य आदि दिए हैं तो कई चित्र बिना टाइटल के भी इनमें शामिल हैं। भारत भवन की रंगदीर्घा में प्रदर्शित रजा के इन चित्रों को देखने के लिए दर्शकों की भीड़ वैसी ही लग रही है जैसी कई साल पहले लगा करती थी। इससे साफ लगता है कि उनके कद्रदानों की कमी आज भी नहीं है। रजा के चित्रों में लगभग सभी अमूर्त चित्र होते हैं लेकिन एक अनकही कहानी सुनाते हैं। इस प्रदर्शनी में शामिल करीब तीस चित्र भी अमूर्त हैं लेकिन सब की अपनी कहानी है। रजा साहब ने प्रकृति और नारी के कॉन्सेप्ट को रंगों से खुद देखा और दुनिया को दिखाया। कैनवास पर रंगों से कई लाजवाब पेंटिंग्स बनाईं। उन्होंने बिंदु से शुरू करके चित्रों की अमिट कहानी कैनवास पर उकेर दी। सैयद हैदर रजा कालजयी हो गए हैं। उन्होंने चित्रकला की अपनी स्टाइल बनाई और वह स्टाइल उनकी पहचान बन गई। रजा की पहली प्रदर्शनी 1946 में बॉम्बे आर्ट सोसाइटी सैलून में लगी। उन्हें सोसाइटी ने सिल्वर मेडल दिया था। साल 1981 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया। ललित कला अकादमी से फेलोशिप भी रजा को इसी साल मिली था। 2007 में पद्म भूषण और 2013 में पद्म विभूषण सम्मान मिला।