सूखे दरख्त: जिंदगी के आखिरी पड़ाव की दर्दनाक दास्तां
खरी खरी संंवाददाता
भोपाल। बुढ़ापे में केवल रोटी, कपड़ा और मकान ही महत्वपूर्ण नहीं होते बल्कि उनके एकाकीपन को किस तरह भरा जाए यह महत्वपूर्ण होता है। बुजुर्ग अपना समय गैसे गुजारें। आज की भागमभाग जिन्दगी में बच्चों के पास उनके पास बैठने, बात करने का समय नहीं है। बच्चे ज्यादा समझदार हो गए हैं शायद, इसलिए उन्हें बड़ों के अनुभवों को साझा करने या उनसे शिक्षा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती या यूं कहें कि जरूरत नहीं समझते। बुजुर्गों के कुछ ऐसे ही अवसादग्रस्त पलों को संजोकर नाटक ‘सूखे दरख्त’ का मंचन शहीद भवन के सभागार में विवेक सावरीकर के निर्देशन में किया गया। रंगमोहिनी आर्ट एंड वेलफेयर समिति के अंतर्गत होने वाला यह नाटक आसावरी सावरीकर के संयोजन से किया जा रहा है।
नाटक की कहानी
इस नाटक के माध्यम से जीवन के रंग को बखूबी मंच पर बिखेरा गया। नाटक की कहानी वृद्धों के जीवन पर आधारित रहा। इसके द्वारा बताया गया कि बुढ़ापे में केवल रोटी, कपड़ा और मकान ही महत्वपूर्ण नहीं होते। बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि बुजुर्ग अपना समय कैसे गुजारें। खासतौर पर ऐसे वृद्ध माता-पिता जिन्हें उनके बच्चे वृद्धाश्रमों में छोड़ देते हैं। ऐसे ही एक वृद्धाश्रम में रहने वाले दो बुजुर्गों मास्टर जी और चौधरी जी दोनों ही अपने परिवार के व्यक्तियों से दूर सुख-शांति के साथ रह रहे हैं। ऊपरी तौर पर उनका जीवन खुशनुमा है जिसमें आश्रम की नियमित दिनचर्या, सहपाठियों से नोंक-झोंक और दोनों के हंसमुख स्वभाव का बड़ा योगदान है। इसी बीच एक दिन उनके कमरे में सूट-बूटधारी और रौबिले व्यक्तित्व के धनी नए पार्टनर दीवान जी का आगमन होता है जिससे उन दोनों बुजुर्गों के जीवन का नियत क्रम भंग होता है और अतीत के जख्म ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ते हैं। इस नाटक के माध्यम से संस्था का उद्देश्य लोगों का नाट्यकला के माध्यम से मनोरंजन करने के साथ समाज की समस्याओं को उठाना और उन पर चिंतन करने के लिए अवसर जुटाना भी है, ताकि वैचारिकता और विवेकशीलता को बल मिले। दिनेश नायर द्वारा की गई मंच सज्जा नाटक के दृश्यों को अपने में समेटे थी तो ज्योति सावरीकर द्वारा की गई वेशभूषा पर मेहनत का रंग साफ दिख रहा था।
मंच पर
इस नाटक में अभिनय करने वालों में मैनेजर के गेटअप में- रमेश अहिरे, रमेश- शिशिर लोकरस, बूढ़ा 1- विवेक त्रिपाठी, बूढ़ा 2- शरद नाईक, बूढ़ा 3- शिशिर लोकरस, कामवाली- सुनीता अहिरे, चौधरी- संतोष मणिक्कर, मास्टरजी- विवेक सावरीकर, संजय- शुभम शिंदे और दीवानजी बने राजीव श्रीवास्तव मुख्य रहे।