साजिश का शिकार होने से पहले जुगनू और जूलियट ने मौत को गले लिया
खरी खरी संवाददाता
रवींद्र भवन में चल रहे 29वें इफ्तेखार स्मृति नाट्य एवं सम्मान समारोह के तहत गुरुवार को बुंदेली नाटक ‘जुगनू की जूलियट’ का मंचन किया गया। बिशना चौहान लिखित इस नाटक का निर्देशन वसीम अली द्वारा किया गया।
बुंदेलखंडी नाटक 'जुगनू की जुलियट' उन तमाम सामाजिक कुरीतियों का विरोध करता है जो समाज की समृद्धि में बाधक हैं। अमीर, गरीब, छोटी-बड़ी जातियां, अहम के नाम पर बेवजह की दुश्मनी को नाटक के माध्यम से दिखाया गया। नाटक की कहानी गांव के एक ठाकुर परिवार के इर्द गिर्द घूमती है। ठाकुर परिवार मध्यमवर्गीय है, लेकिन उसका दबदबा पूरे क्षेत्र में हैं। परिवार का बेटा सल्जू बिगड़ैल है, लेकिन वह अपनी बहन चांदनी को बहुत प्यार करता है। बहन चांदनी को अपनी सबसे अनमोल अमानत मानता है। खानदानी दुश्मनी के चलते सल्जू एक भांड परिवार के मुखिया का कत्ल कर देता है। कुछ समय बाद दुश्मन परिवार का छोटा बेटा जुगनू गांव लौटता है। दोनों परिवारों की दुश्मनी के बारे में वाकिफ होने के बाद भी जुगनू और चांदनी के बीच प्रेम हो जाता है। चांदनी प्यार में जुगनू की जूलियट बन जाती है। चांदनी के भाई सल्जू को जब इस प्रेम प्रसंग की जानकारी मिलती है तो वह षड़यंत्रपूर्वक दोनों को अलग करना चाहता है। वह जानता है कि सीधे तौर पर वह कुछ करेगा तो उसकी लाड़ली बहन कुछ भी कर सकती है। जगुनू को नुकसान होने पर चांदनी खुद को नुकसान पहुंचा लेगी। इसलिए सल्जू इस बार सीधे आक्रमण के बजाए षड्यंत्र रचता है। वह अपनी चाल के तहत चांदनी की शादी अपने समाज के किसी और लड़के से तय करता है, लेकिन चांदनी को बताया जाता है कि जुगनू से ही उसकी शादी तय की गई है। लेकिन चांदनी और जुगनू को यह बात पता चल जाती है। इसके बाद सल्जू का षड़यंत्र फ्लॉप हो जाता है जूलियट यानि चांदनी और जुगनू अपनी जीवनलीला स्वयं समाप्त कर लेते हैं और यह जोड़ा अमर हो जाता है। नाटक में लाइव म्यूजिक का शानदार इस्तेमाल किया गया। बीच-बीच में बुंदेलखंडी गानों ने नाटक में जान तो डाली ही साथ में जमकर तालियां भी बटोरीं। बुंदेली भाषा के संवादों ने नाटक को प्रभावी बनाया तो आम बुंदेली बाजारों जैसे दृश्य दिखाने के लिए बनाए गए सेट ने नाटक को जीवंत बना दिया।
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