राजा द्वारा पूजे जाने से शीतला बन गई माता शीतला देवी
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में बंगाली जात्रा शैली में शीतला मंगल की आत्मकथा का मंचन कोलकाता के शुभजीत हलधर के निर्देशन में किया गया। इस नाटक का मंचन प्रत्येक शुक्रवार को होने वाले नवीन रंगप्रयोगों के प्रदर्शन की साप्ताहिक श्रृंखला अभिनयन में किया गया। जात्रा शैली पश्चिम बंगाल की ऐसी शैली है जिसमें बेहद चमक दमक वेश-भूषा में घूम-घूम कर गायन के द्वारा नाटक मंचित किया जाता है।
नाटक की कहानी
इस नाटक के द्वारा कलाकारों ने धूमाबती के माता शीतला बनने के वृतांत को बंगाली जात्रा शैली में दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया। नाहुस नाम के राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। उस यज्ञ के मुख्य पुजारी भगवान ब्रम्हा थे। भगवान ब्रम्हा द्वारा मंत्रों के त्रुटिपूर्ण व गलत उच्चारण के प्रभाव से धूमाबती नामक एक बदसूरत महिला का जन्म हुआ। पृथ्वी पर पूजे जाने की चाह में धूमाबती अपना रूप परिवर्तित कर शीतला के रूप में आ गईं। शीतला ने अपने पुत्र से मत्स्य साम्राज्य के राजा विराट द्वारा पूजे जाने की इच्छा व्यक्त की। शुरू में राजा विराट शीतला की पूजा के लिए सहमत नहीं हुए, लेकिन शीतला द्वारा राजा विराट को धमकी दिए जाने पर वह पूजा करने के लिए विवश हो गए। राजा विराट से पूजा प्राप्त करने के पश्चात शीतला साधारण महिला से देवी शीतला बन गई और इसी के साथ प्रस्तुति का अंत हुआ।
मंच पर
इस नाटक को मंचित करने वाले कलाकारों में सभाजीत हलधर, बेचा रोय, बलराम पात्रा, सुवेंदु साधु, निलाद्री दास, नोमिता देबनाथ, राहुल दोलुइ, सुरोजीत मण्डल, समर बिस्वास, बोधिसत्वा डे, भोलानाथ मलाकर, किशोर और प्रीतम बोस मुख्य रहे।