मिट्टी से जुड़ाव के कारण लोकसंगीत दिल पर असर करता है: शारदा

Jul 29, 2019

सुमन त्रिपाठी

भोपाल। हिंदुस्तान के जनमानस के भावों, विशेषकर उत्तर भारत की लोक संस्कृति को गीत-संगीत में सहेजकर अपने गीतों के माध्यम से देश दुनिया में प्रतिष्ठा के शिखर तक पहुंचाने वाली लोकगायिका शारदा सिन्हा का मानना है कि लोक संगीत का जुड़ाव सीधा वहां की मिट्टी से होता है, इसलिए वह दिल तक असर करता है। यही कारण है कि फिल्मी गीतों और पश्चिमी संगीत की धूम के बाद भी लोकसंगीत का प्रभाव कम नहीं हुआ है। भोजपुरी के शेक्सपीयर कहे जाने वाले नाट्य रचनाकार भिखारी ठाकुर पर आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने भोपाल आईं भोजपुरी की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा दबंग दुनिया से विशेष बातचीत कर रही थीं। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के खास अंश—

सवाल- आप करीब चार दशक से लोकसंगीत के लिए काम कर रही हैं, पर आज भी आपका अंदाज नहीं बदला है।

उत्तर- लोकसंगीत मेरे लिए सिर्फ गायन नहीं है, बल्कि वह हमारी मिट्टी की महक है। उसे दुनिया भर में पहुंचाने में जो खुशी मिली है और मिल रही है, उसे मैं कभी भुलाना नहीं चाहूंगी। इसलिए तमाम उतार चढाव के बाद भी में लोकसंगीत की सेवा में लगी हूं।

सवाल- किसी भी गीत संगीत से जुड़े लोग थोड़ सा भी नाम होने पर फिल्मी दुनिया का रुख कर लते हैं, लेकिन आप आज भी उस चमक धमक से काफी दूर हैं।

उत्तर- फिल्मी दुनिया ने मुझे भी अपनी ओर खींचने का खूब प्रयास किया लेकिन मैं अपनी विरासत पर अडिग रही। मैंने साफ कह दिया कि मैं फिल्मों मे तभी गाऊंगी जब उस गाने में लोक संस्कृति होगी और उसमें लोकसंगीत होगा। जममानस का भाव होगा, इसमें समझौता नहीं करूंगी। मैंने फिल्मों में जितना किया है, उससे भी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

सवाल-फिल्मी दुनिया वाले आपसे संपर्क तो करते होंगे, फिर कैसे बात बनती होगी।

उत्तर- मेरे पास लगातार आफर आते रहते हैं, लेकिन मेरी शर्तों पर गाना नहीं होता तो मैं बडे से बड़ा आफर ठुकरा देती हूं। एक बड़े फिल्मकार अपनी फिल्म के लिए एक गाना लेकर आए। उनकी इच्छा को देखकर मैं सहमत हो गई लेकिन गाने के बोल सुनकर मैंने साफ मना कर दिया। गाने के बोल थे… तेरे दिल की ट्यूब लाइट से मेरे दिल का बल्ब जले.. मैने सवाल किया इसमें गीत और संगीत कहां है।

सवाल- नई पीढी तो फिल्मों से आगे जाकर वैस्टर्न की दीवानी हो रही है। ऐसें में हमारे संगीत का भविष्य क्या होगा।

उत्तर—यह पुरानी बात हो गई, अब हमारा युवा एक बार फिर लोकसंगीत और शास्त्रीय संगीत की ओर झुक रहा है। देश विदेश में मेरे कार्यक्रम के श्रोताओं में बड़ी संख्या नई पीढ़ी की होती है।  फिल्मी संगीत और वैस्टर्न संगीत भी बुरा नहीं है। उनकी अपनी शैली है, लेकिन प्रोफेशन लोगों ने उनकी भी मूल शैली को बदल दिया। यही सबसे बड़ी खामी है, जिसके के कारण संगीत पर असर पड़ा, लेकिन अब फिर ठीक हो रहा है।

सवाल – आपको लगता है कि युवा पीढ़ी लोकसंगीत की दुनिया की ओर से आकर्षित होगी और लोकसंगीत भी सबकी पसंद बनेगा।

उत्तर—ऐसा होने लगा है। आप देखिए आज बहुत सारे युवा शाश्त्रीय संगीत सीखते नजर आएंगे। वे बड़े बड़े मंचों पर प्रस्तुति दे रहे हैं। उन्हें देखकर आप कह नहीं सकते हैं  कि हमारी युवा पीढ़ी हिंदुस्तान के मूल संगीत से दूर हो गई है।

सवाल- आपको इस नई पीढ़ीं मे क्या खामी नजर आती है। उन्हें संगीत की दुनिया में और बेहतर करने के लिए कैसे तैयार किया जा सकता है।

उत्तर—उन्हें रियाज ज्यादा करना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि नए कलाकार रियाज कम करते हैं। रियाज ही सबसे बड़ी साधना है। अगर उसमें कमी की तो संगीत के पूरे सफर पर असर पड़ता है।

सवाल- आजकल गीत संगीत, फिल्म से जुड़े लोग राजनीति में खूब जा रहे हैं। जिसका भी नाम हो जाता है, वह राजनीति में चला जाता है। आप इस बारे में क्या सोचती हैं।

उत्तर—कलाकार को सिर्फ कला की सेवा करनी चाहिए। राजनीति सबके बस की बात नहीं है। मुझे भी बहुत से आफर मिले लेकिन मैंने हाथ जोड़ लिए। राजनीतिकमें नाम के कारण चले भले जाएं लेकिन उसमें बने रहने के लिए जिस तरह से धन और अन्य चीजों की जरूरत पड़ती है, वहीं सबके पास नहीं होता है। मैं भी उनमें से एक हूं। इसलिए राजनीति से दूर से ही तौबा कर लेती हूं।