भगवान कृष्ण खुद आकर भरते हैं भक्त की बेटी का मायरो
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नरसिंह की भक्ति व कृष्ण का भक्त की आवाज पर दौड़े चले आने पर आधारित लोककथा ‘नानी बाई को मायरो’ का मंचन उज्जैन के बाबूलाल देवड़ा के निर्देशन में किया गया। मालवी क्षेत्रों में प्रचलित माच शैली में हुआ यह नाटक रंगप्रयोगों के प्रदर्शन पर केंद्रिय अभिनयन श्रृंखला में किया गया।
नाटक की कहानीइस नाटक की कहानी गुजरात के जूनागढ़ में जन्में नरसिंह नामक व्यक्ति जो कृष्ण भगवान के परम भक्त है, के इर्द-गिर्द घूमती है। नाटक की शुरूआत नरसिंह के जन्म के दृश्य के साथ होता है। इस माच शैली के द्वारा उनके वयस्क होने पर उनके विवाह को भी बेहद खूबसूरती से दर्शाया गया। नरसिंह के विवाह के बाद उनके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव आता है, क्योंकि पत्नी का व्यवहार उनके प्रति ठीक नहीं रहता। पत्नी के व्यवहार से परेशान होकर नरसिंह शिव भक्ति के मार्ग में लग जाते हैं। शिव आराधना और मंत्रोच्चार से नरसिंह को काफी सकारात्मक बल मिलता है। इसी बीच नरसिंह को कुछ धन देकर घर से अलग कर दिया जाता है। नरसिंह अपने हिस्से का धन भगवान कृष्ण को अर्पित कर देते हैं। अत: भगवान कृष्ण की आराधना में अपना सर्वत्र न्यौछावर कर देते हैं। इसी बीच जब नरसिंह की बेटी का विवाह होता है और उनसे मायरो भरने को कहा जाता है, तब वह स्तब्ध हो कहते हैं कि मेरे पास तो कुछ नहीं है, मैं कैसे मायरो भरूं...’। कृष्ण अपने भक्त का दु:ख देख स्वयं प्रकट हो मायरो भरते हैं और इसी के साथ मालवी माच शैली में इस नाटक ‘नानी बाई को मायरो’ की समाप्ति होती है। इस लोक नाट्य में मानव आत्मविश्वास और सकारात्मक बल को बड़ी ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया गया साथ ही दर्शकों को संदेश दिया गया कि अपने जीवन में वस्तुनिष्ठ नहीं बनना चाहिए, अपने मन मानव में हमेशा त्याग की भावना को संजोए रखना चाहिए।
मंच पर
इस नाटक में अभिनय करने वालों में बाबूलाल देवड़ा, बाबू भाटी, मांगीलाल भाटी, सोनू, टीकाराम भाटी, नाणीबाई विष्णु, जगदीश, तेजू और सेवाराम आदि मुख्य रहे। इन सभी कलाकारों ने अपने कलात्मक अभिनय कौशल से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। बाबूलाल देवड़ा कई वर्षों से रंग कर्म के क्षेत्र से जुड़े हैं। वाद्य यंत्र पर संगत देने वालों में हारमोनियम पर रमेश व ढोलक पर पप्पू मुख्य रहे।