नाटक का मंचन: मंत्र के बहाने डाक्टर को परोपकार सिखा गया बूढ़ा भगत
खरी खरी डेस्क
भोपाल। रंग समूह भोपाल एवं स्वरूप, रंग और छाया सांस्कतिक समिति द्वारा शहीद भवन के सभागार में मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर ‘कहानियों का नाट्य मंचन’ के अंतर्गत तीन कहानियों डॉ. नीलकमल कपूर द्वारा लिखित ‘बिरयानी’, डॉ. अनिता सिंह चौहान द्वारा लिखित ‘आजाद गुलाम नारी’ व मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी ‘मंत्र’ अशोक बुलानी व मोहन द्विवेदी के निर्देशन में मंचित किए गए। इस कार्यक्रम में साहित्य और संस्कृति प्रेमियों ने हिंदी के कालजयी उपन्यासकार और कहानीकार मुंशी प्रेमचंद का स्मरण किया। समिति द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में आलोक चटर्जी व राजेश जोशी द्वारा मुंशी प्रेमचंद के साहित्य, नाटक, फिल्म व सीरियल पर वक्तव्य व सारगर्भित चर्चा भी हुई।
कार्यक्रम की शुरूआत मुंशी प्रेमचंद के साहित्य पर चर्चा से हुई। साहित्य के दो दिग्गज वक्ताओं जाने माने रंगकर्मी आलोक चटर्जी और जाने माने कवि राजेश जोशी ने मुंशी जी के साहित्य से जुड़े नाटक, फिल्म और सीरियल पर वक्तव्य दिए। वक्ताओं का कहना था कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियों का नाट्य रुपांतरण जिस तरह से पसंद किया गया, उसी तरह से उन पर बनी फिल्मों और सीरियल को भी बेहद पसंद किया गया। प्रेमचंद ने वर्षों पर पहले जो साहित्य रचा था, वह आज भी जीवंत लगता है। यही कारण है कि आज भी उनके साहित्य को उसके मूल रूप के साथ-साथ नाटक, फिल्म या सीरियल के जरिए भी आम जनमानस पसंद कर रहा है। यह उनकी कालजयी रचनाकार होने का एहसास कराता है।
ऐसी थी ‘बिरयानी’-
रचना और धीरेंद्र का हंसता-खेलता परिवार रहता है। रचना द्वारा जब भी ‘बिरयानी’ बनती है, स्वाद लाजवाब रहता है, उसकी महक से आस-पास के लोग खिंचे चले आते हैं। अचानक धीरेंद्र की नौकरी चली जाती है। जिस कारण घर में उदासी छा जाती है। अब क्या होगा, घर कैसे चलेग जैसे सवालों के साथ ही रचना की बिरयानी कमाल दिखा जाती है और भटकाव के दौर में नई दिशा मिल जाती है।
आजाद-गुलाम नारी की ऐसी थी स्थिति-
शीला नारी सम्मान को लेकर बहुत सजग रहती है। पति अमित का ट्रांसफर बाहर हो जाता है। सप्ताह में एक दिन जब वह घर आता है तब नौकरी के साथ-साथ घर की देख-भाल व उसकी देखभाल सब उसके ऊपर आ जाती है। शीला द्वारा आर्थिक सहयोग के लिए की गई नौकरी के कोई मायने नहींं रह जाते, क्योंकि पुरुष मानसिकता से ग्रस्त शीला का पति उसे उपभोग की वस्तु से अधिक अहमियत नहीं देता।
ऐसा था ‘मंत्र’
कार्यक्रम में प्रस्तुत नाटक मंत्री मुंशी प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी मंत्र पर ही आधारित है। इस नाटक का निर्देशन मोहन द्विवेदी ने किया है। नाटक यह संदेश देने में सफल रहता है कि परोपकार ही सबसे बड़ा धर्म है। इसकी कहानी के मूल पात्र डा. चड्ढा है जो कस्बे के चर्चित डाक्टर हैं। एक दिन गोल्फ खेलने जाने की तैयारी में होते हैं कि गांव के कुछ लोग एक मरीज को लेकर आते हैं। मरीज सात साल का बच्चा था, उसका पिता बहुत मिन्नतें करता है ,लेकिन अपनी फिटनेस की ज्यादा चिंता करने वाले डा. चड्ढा उसे नहीं देखते है और सुबह आने का कहकर खेलने चले जाते हैं, बच्चा मर जाता है। समय बदलता है। कई साल बाद घर में एक समारोह के दौरान डा. चड्ढा के इकलौते जवान बेटे को सांप काट लेता है। तमाम दवा, इलाज और झाड-Þफूंक के बाद भी बेटे को मृत घोषित कर दिया जाता है। बाद में एक बूढ़ा आकर मंत्रों से उसे जिंदा कर देता है। वह बुजुर्ग अपना काम कर चुपचाप वहां से चला जाता है। लेकिन डा. चड्ढा उसे पहचना लेते हैं। यह वही बुजुर्ग होता है जिसके बच्चे को उन्होंने नहीं देखा था।