धर्मवीर भारती की कालजयी कृतियों के साथ प्रेम पत्र भी रच गए शब्दलीला
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। क्या कभी कोई सोच भी सकता है कि किसी साहित्यकार द्वारा अपनी प्रेयसी अर्थात अपनी पत्नी को लिखे पत्र नाटक का भी रूप ले सकते हैं। उन पत्रों में शब्दों की इतनी गूढ़ता रची-बसी थी कि वे आज मंच पर भी साकार हो गए। डा. धर्मवीर भारती की कालजयी कृतियों अंधायुग और कनुप्रिया तथा डा धर्मवीर भारती द्वारा अपनी पत्नी को लिखे पत्रों को आधार बना कर इला अरुण द्वारा परिकल्पित नए नाटक शब्दलीला का मंचन भारत भवन में किया गया। भारत भवन में प्रख्यात रंगकर्मी ब.व. कारंत स्मृति समारोह आदरांजलि कार्यक्रम में मुम्बई की सुरनई थिएटर एंड फोक आर्टस फाउन्डेशन जिसकी क्रिएटिव डायरेक्टर इला अरुण हैं के अंतर्गत मंचित इस नाटक का निर्देशन के. के. रैना द्वारा किया गया।
भारत भवन के रंगमंडल में उपस्थित दर्शकों के लिए यह प्रस्तुति एक अलग अनुभव से गुजरने की तरह रही। इला अरुण डा. भारती की कृतियों की एक बड़ी प्रशंसक हैं। उन्होंने उनकी तीन अनुपम कृतियों को एकमेव कर इस नाटक को रचा और उनकी आत्मा को अक्षुण्ण बनाए रखा। इस नाटक को देख लगा वाकई यह काम काफी दुष्कर रहा होगा, क्योंकि यह कृतियां हिंदी साहित्य में ऊंचा स्थान रखती हैं और इनका मंचन भी कई बार किया जा चुका है।
शब्दलीला नाटक प्रख्यात उपन्यासकार, कवि धर्मवीर भारती की रचनाओं अंधा युग कनुप्रिया और एक साहित्यकार द्वारा अपनी पत्नी को लिखे प्रेम पत्र पर आधारित था। इला अरुण ने नाटक में उनके पत्रों को पढ़ते हुए दृश्यांकित किया। एक-एक कर उन पत्रों को पढ़ते हुए नाटक में अंधा युग का कथानक महाभारत युद्ध के अंतिम दिन पर आधारित दृश्य को भी ऐसे जोड़ा गया था कि पत्रों के भावों से मेल खा रहा था। इस दृश्य में युद्ध और उसके बाद की समस्याओं और मानवीय महत्वकांक्षाओं को प्रस्तुत किया गया। जबकि कनुप्रिया भगवान कृष्ण एवं राधा के संबंधों की काव्यात्मक प्रस्तुति थी जिसमें भगवान कृष्ण के द्वारका छोड़ते समय राधा की व्यग्रता का चित्रण किया गया। नाटक के इन दृश्यों में कई कविताओं को भी पिरोया गया था। यह नाटक पूरी तरह साहित्यकार डा. धर्मवीर भारती द्वारा अपनी पत्नी पुष्पा भारती को लिखे गए व्यक्तिगत पत्रों के कलेक्शन पर आधारित था। ड्रामैटिक रीडिंग के माध्यम से राधा-कृष्ण तथा पुष्पा भारती के जीवन एवं किस्से-कहानियों के मध्य सम्बंध स्थापित कर आधुनिक संदर्भ में इनका महत्व दशार्या गया। यह प्रस्तुति मात्र स्टोरी टेलिंग नहीं होने से अन्य नाटकों से भिन्न थी। अनूठा अनुभव होने के साथ-साथ इस प्रस्तुति ने दर्शकों के मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी। नाटक के कुछ हिस्सों में इला अरुण द्वारा कहानीकार की भूमिका निभाई गई। उन्होंने अंधायुग में गांधारी की भूमिका भी निभाई। इस नाटक के दृश्यों में दर्शक इतना खो गए कि पूरे हाल में सुई भी गिरे तो आवाज सुनाई दे जाए। भोपालवासियों को एक लंबे समय बाद इस तरह के नाटक को देखने का अवसर वाकई अंदर तक प्रेम में सराबोर कर गया। इस नाटक को अभिनीत करने वालों में इला अरुण, राजेश्वरी सचदेवा, वरुण वडोला, के. के. रैना व अभिषेक पाण्डेय, गौरव अमलानी, मयंक पांडेय, अविनाश कुमार, नवनीत रैना मुख्य रहे।