गरीब बुजुर्ग तांत्रिक ने विख्यात डाक्टर को सिखाया परोपकार
खरी खरी संवाददाता
भोपाल। रंगभूमि साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा शहीद भवन में आयोजित कहानियों के नाट्य मंचन समारोह ‘जिंदगी के रंग कई रे’ में शनिवार को कथा सम्राट मुंशी प्रेमंचद की कहानी ‘मंत्र’ का नाट्य मंचन किया गया। मप्र शासन के संस्कृति संचालनालय के सहयोग से आयोजित यह दो दिवसीय नाट्य समारोह मुंशी प्रेम चंद को समर्पित था।
कार्यक्रम में प्रस्तुत नाटक मंत्र मुंशी प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी मंत्र पर आधारित था। इस कहानी का नाट्य रूपांतरण और नाटक का निर्देशन मोहन द्विवेदी ने किया है। संगीत-उमेश तरकसवार, भावना जगवानी ने दिया। नाटक यह संदेश देने में सफल रहता है कि परोपकार ही सबसे बड़ा धर्म है। गरीब बुजुर्ग तांत्रिक ने विख्यात धनवान डाक्टर को परोकार का मंत्र सिखाया। इसकी कहानी के मूल पात्र डा. चड्ढा हैं, जो कस्बे के चर्चित डाक्टर हैं। एक दिन शाम के समय डा. चड्ढ़ा गोल्फ खेलने जाने की तैयारी में होते हैं कि गांव के कुछ लोग एक मरीज को डोली में लेकर आते हैं। मरीज सात साल का बच्चा था, उसका पिता बहुत मिन्नतें करता है , लेकिन अपनी फिटनेस की ज्यादा चिंता करने वाले डा. चड्ढा उसे नहीं देखते है और सुबह आने का कहकर खेलने चले जाते हैं। बाद में बच्चा मर जाता है। समय बदलता है। कई साल बाद घर में एक समारोह के दौरान डा. चड्ढा के इकलौते जवान बेटे को सांप काट लेता है। तमाम दवा, इलाज और झाड-फूंक के बाद बेटे को मृत घोषित कर दिया जाता है। डा. चड्ढा बेटे के बदले अपनी सारी दौलत देने का ऐलान कर देते हैं, लेकिन कोई भी बेटे को जिंदा नहीं कर पाता है। सभी तरह से उम्मीदें टूटने के बाद एक बूढ़ा आकर बेटे का ईलाज करने की इच्छा जताता है। टूट मन से डा. चड्ढा उसे बेटे की देह के पास ले जाते हैं। बूढ़ा शरीर को देखकर कहता है कि अभी कुछ भी खत्म नहीं हुआ है। वह तंत्र मंत्र से उसे जिंदा कर देता है। वह बुजुर्ग अपना काम कर चुपचाप वहां से चला जाता है। डा. चड्ढा रात में उसे नहीं पहचान पाए थे, लेकिन जाते समय उसे पहचान लेते हैं। यह वही बुजुर्ग होता है जिसके बच्चे को उन्होंने नहीं देखा था। वे दौड़ते हैं लेकिन तब तक बूढ़ा उनकी आंखों से ओझल हो चुका था। वह सीख दे गया कि परोपकार ही सबसे बड़ा धर्म है।
मंच पर ---
डा चड्ढा-अरविंद विलगैयां, श्रीमती चड्ढा-अभिलाशा कुमार, कैलाश-लखन परियानी, मृणाल-अंजलि पुरी, भगत-आलोक गच्च, सावित्री-रजनी विंग, पार्टी गांव वाले-उदय नेवालकर, जगदीश बागोरा, गिरीश धत्ते, धनवंतरी द्विवेदी, कुणाल पुरोहित, रोहित नाथानी, राकेश सेवानी, पुष्पेंद्र जैन, कल्पना चंदानी, पिंकी लालवानी, प्रिया ज्ञानचंदानी, मीता जैसवानी, रोमिल तिवारी, गुलशन शर्मा।