अरात्रिका के कलाकारों के ओड़िसी, मणिपुरी और छाऊ नृत्यों ने मन मोहा
सुमन त्रिपाठी
भोपाल। ओड़िसी और मणिपुरी तथा छाऊ जैसे नृत्यों की प्रस्तुतियां हमेशा दर्शकों को प्रभावित करती हैं। अगर तीनों ही नृत्य एक साथ, एक मंच पर एक दल के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जाएं तो छटा और अदभुत हो जाती है। ऐसा ही एक नजारा भोपाल में विख्यात कोरियोग्राफर स्वर्गीय प्रभात गांगुली की स्मृति में कीर्ति बैले एवं परफार्मिंग आर्ट्स द्वारा शहर के शहीद भवन में चल रहे राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव धरोहर (दशम) में देखने को मिला। मुंबई की अरात्रिका इंस्टीट्यूट के कलाकारों द्वारा मणिपुरी और ओडिसी तथा छाऊ नृत्यों की प्रस्तुति दी गई।
कलाकारों द्वारा सबसे ओड़िसी नृत्य की प्रस्तुति की गई। प्रस्तुतियों की शुरुआत मंगलाचरण से हुई। ओड़िसी नृत्य में सबसे पहले मंगलाचरण प्रस्तुत किए जाने की पंरपरा है। इस भगवान जगन्नाथ को समर्पित इस प्रस्तुति के द्वारा कलाकार अच्छे प्रदर्शन के लिए भगवान का आशीर्वाद लेते हैं। इसके साथ ही उस धरती मां को प्रणाम किया जाता है, जिस पर खड़े होकर नृत्य प्रस्तुत किया जा रहा है। नृत्य के महान गुरुओं को प्रणाम किया जाता है जिनसे सीखकर यहां तक पहुंचे हैं। साथ ही उन नृत्य प्रेमियों को प्रणाम किया जाता है जो दर्शकों के रूप में बैठकर नृत्य देख रहे हैं। इसकी शुरुआत भजे बृज का नंदनाम कृष्णाकष्टम से हुई। इसके कोरियोग्राफर गुरु विचित्रानंद जी थे तो इसे गुरु बिजय कुमार ने संगीतबद्ध किया।
मंगलाचरण के बाद मेघपल्लवी की प्रस्तुति हुई। इसमें संगीत और नृत्य दोनों की लयबद्धता कमाल की होत है। पल्लवी फूलों की पंखुड़ियों के खुलने का अहसास कराती है तो मेघपल्लवी उसके साथ मेघों के आने का सौंर्दय जोड़ देती है। इसलिए यह प्रस्तुति बहुत ही रोमांटिक, मस्ती भरी और मोहक थी। राघ मेघ में झंपा ताल पर हुई प्रस्तुति ने दर्शकों को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। इसकी कोरियोग्राफी गुरु रतिकांत महापात्रा ने की थी और संगीतबद्ध पंडित प्रदीप कुमार दास ने किया था। इसके बाद कलाकारों ने नाद नदी की प्रस्तुति दी। यह ओड़िसी, मणिपुरी और छाऊ नृत्यों को मिक्स कंपोजीशन होता है। इसमें नदियों और मानवीय जिंदगियों के बचे बने सामंजस्य को दिखाया जाता है। इसका कंसेप्ट नीलकंठ वुड्स पुरुलिया ने तैयार किया था। संजीब भट्टाचार्य और निवेदिता मुर्खजी के कोरियोग्राफी से सजी इस प्रस्तुति को कौशिक बसु ने संगीतबद्ध किया था। इन कलाकारों द्वारा प्रस्तुत बृज का छोरा भी बेहद पसंद की गई। वातसल्य रस पर आधारित यह प्रस्तुति ओड़िसी नृत्य के साथ उड़िया अभिनय के साथ होती है। इसमें मां यशोदा किस तरह कान्हा को मनाती हैं, यह दिखाया जाता है। राग मिश्रा काफी में जाटि ताल की इस प्रस्तुति को भी बेहद सराहना मिली। इसकी कोरियोग्राफी पद्म विभूषण नृत्य गुरु केलूचरण महापात्रा की है। पंडित भुवनेश्वर मिश्रा ने इसे संगीतबद्ध किया है।
ओड़िसी की इन प्रस्तुतियों के बाद मणिपुरी की प्रस्तुतियां हुई जिनका शीर्षक था- कृष्णरास । इसमें सबसे पहले कंदुक किरदा प्रबंध प्रस्तुत की गई। यह दो मणिपुरी की दो पारंपरिक नृत्यों की मिश्रित प्रस्तुति होती है। इसका प्रतिपादन संजीब भट्टाचार्य ने किया तो संगीत गुरु बिपिन सिंह का था। इसके बाद मनभंजन प्रिय चारूशीले की प्रस्तुति हुई। यह जाने माने कवि जयदेव द्वारा लिखित गीतगोविंद के अष्टपदी से लिया गया पद है। संजीब भट्टाचार्य की इस प्रस्तुति को पंडित जसराज के संगीत और शंकर महादेवन के स्वरों से सजाया गया है। कृष्ण रास से जुड़ी इन प्रस्तुतियों के बाद अंत में स्त्री कथ्य की प्रस्तुति की गई। इसमें शक्ति से जुड़े सभी रूपों को इसमें समाहित किया गया था।