AMRITA-IMROZ LOVE STORY- प्यार के अनाम रिश्ते की अनूठी कहानी
खरी खरी डेस्क
इमरोज नहीं रहे..... साहित्य से थोड़ा भी लगाव रखने वालों के लिए तीन अक्षर की यह खबर बहुत महत्वपूर्ण है। हिंदुस्तानी साहित्य में कालजयी लेखिका अमृता प्रीतम का नाम इमरोज के बिना अधूरा माना जाता है। वही इमरोज इसी शुक्रवार को उम्रगत बीमारियों से हारकर मुंबई में फानी दुनिया से विदा हो गए। उनकी उम्र 97 साल थी।
इमरोज हिंदुस्तान के प्रसिद्ध चित्रकार और कवि थे, लेकिन उनकी पहचान अमृता प्रीतम के साथी के रूप में ज्यादा की जाती है। साथी इसलिए कि अमृता की मौत तक करीब चालीस साथ एक साथ रहने के बाद भी दोनों ने अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया। दोनों न तो प्रेमी जोड़ा थे और न ही पति पत्नी.. बस साथी थे। इमरोज़ को इंद्रजीत सिंह के नाम से भी जाना जाता था। वे अमृता प्रीतम के साथ अपने संबंधों को लेकर चर्चा में आए थे। दोनों ने कभी अपने रिश्ते को कोई दुनियावी नाम नहीं दिया, लेकिन दोनों करीब चालीस साल एक-दूसरे के साथ रहे। अविभाजित भारत के लाहौर से 100 किलोमीटर दूर एक गांव में 26 जनवरी 1926 को जन्मे इमरोज पिछले कुछ समय से उम्र संबंधी बीमारियों का सामना कर रहे थे और एक महीने पहले भी उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।अमृता प्रीतम की पुत्रवधू अलका क्वात्रा ने इमरोज के निधन की पुष्टि की। अलका, अमृता प्रीतम के पूर्व पति प्रीतम सिंह से पैदा हुए बेटे नवराज की पत्नी हैं। नवराज का भी निधन हो चुका है।परिवार में पुत्रवधू अलका क्वात्रा के अलावा एक पोता और एक पोती हैं।
अमृता और इमरोज़ के साथ का सिलसिला धीरे-धीरे ही शुरू हुआ था। अमृता ने एक चित्रकार सेठी से अपनी किताब 'आख़िरी ख़त' का कवर डिज़ाइन करने का अनुरोध किया था। सेठी ने कहा कि वो एक ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो ये काम उनसे बेहतर कर सकता है। सेठी के कहने पर अमृता ने इमरोज़ को अपने पास बुलाया। उस ज़माने में वो उर्दू पत्रिका शमा में काम किया करते थे। इमरोज़ ने उनके कहने पर इस किताब का डिज़ाइन तैयार किया। अमृता को डिज़ाइन भी पसंद आ गया और आर्टिस्ट भी। उसके बाद मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हो गया। दोनों पास ही रहते थे। इमरोज साउथ पटेल नगर में और अमृता वेस्ट पटेल नगर में। इमरोज बताते थे कि एक बार मैं यूँ ही उनसे मिलने चला गया। बातों-बातों में मैंने कह दिया कि मैं आज के दिन पैदा हुआ था। गांवों में लोग पैदा तो होते हैं लेकिन उनके जन्मदिन नहीं होते। वो एक मिनट के लिए उठीं, बाहर गईं और फिर आकर वापस बैठ गईं। थोड़ी देर में एक नौकर प्लेट में केक रखकर बाहर चला गया। उन्होंने केक काट कर एक टुकड़ा मुझे दिया और एक ख़ुद लिया। ना उन्होंने हैपी बर्थडे कहा ना ही मैंने केक खाकर शुक्रिया कहा। बस एक-दूसरे को देखते रहे। आँखों से ज़रूर लग रहा था कि हम दोनों खुश हैं। दोनों 40 साल तक एक-दूसरे के साथ रहे, लेकिन कभी अपने रिश्ते को शादी के बंधन में बांधने की कोशिश नहीं की। दुनिया में हर आशिक़ की तमन्ना होती है कि वो अपने इश्क़ का इज़हार करें लेकिन अमृता और इमरोज़ इस मामले में अनूठे थे कि उन्होंने कभी भी एक दूसरे से नहीं कहा कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं। इमरोज़ कहते थे कि जब प्यार है तो बोलने की क्या ज़रूरत है? फ़िल्मों में भी आप उठने-बैठने के तरीक़े से बता सकते हैं कि हीरो-हीरोइन एक दूसरे से प्यार करते हैं। वे बताते थे कि परंपरा ये है कि आदमी-औरत एक ही कमरे में रहते हैं। हम पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहते रहे। वो रात के समय लिखती थीं। जब ना कोई आवाज़ होती हो ना टेलीफ़ोन की घंटी बजती हो और ना कोई आता-जाता हो। उस समय मैं सो रहा होता था। उनको लिखते समय चाय चाहिए होती थी। वो ख़ुद तो उठकर चाय बनाने जा नहीं सकती थीं। इसलिए मैंने रात के एक बजे उठना शुरू कर दिया। मैं चाय बनाता और चुपचाप उनके आगे रख आता। वो लिखने में इतनी खोई हुई होती थीं कि मेरी तरफ़ देखती भी नहीं थीं। ये सिलसिला चालीस-पचास सालों तक चला। इमरोज़ और अमृता दोनों की नज़दीकी दोस्त रही हैं उमा त्रिलोक और उन पर उन्होंने एक किताब भी लिखी है- 'अमृता एंड इमरोज़- ए लव स्टोरी।' उमा कहती हैं कि अमृता और इमरोज़ की लव-रिलेशनशिप तो रही है लेकिन इसमें आज़ादी बहुत है। बहुत कम लोगों को पता है कि वो अलग-अलग कमरों में रहते थे एक ही घर में और जब इसका ज़िक्र होता था तो इमरोज़ कहा करते थे कि एक-दूसरे की ख़ुशबू तो आती है। ऐसा जोड़ा मैंने बहुत कम देखा है कि एक दूसरे पर इतनी निर्भरता है लेकिन कोई दावा नहीं है। अमृता के जाने के बाद अकेले से पड़ गए इमरोज भी अब चले गए। दोनों के जिस्म धरती पर नहीं हैं लेकिन उनकी कहानियां आने वाले कई सालों तक साहित्य की दुनिया को रोशन करती रहेंगी।