नवजात बच्ची के शव को थैले में डालकर गांव ले गया पिता

खरी खरी डेस्क

नासिक। महाराष्ट्र में इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना सामने आई है। एक आदिवासी पिता को अपनी मृत बेटी को थैली में डालकर 90 किमी दूर अपने घर ले जाना पड़ा। घटना नासिक जिले की है।

कटकरी आदिवासी समुदाय के 28 वर्षीय दिहाड़ी मजदूर सखाराम का कहना है कि मैंने स्वास्थ्य प्रणाली की लापरवाही और उपेक्षा के कारण पहले अपनी नवजात बच्ची को खो दिया, फिर एंबुलेंस नहीं दिए जाने पर 20 रुपये का थैला खरीदकर उसमें शव रखकर महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (एमएसआरटीसी) की बस से 90 किलोमीटर दूर ले गया।  सखाराम ने नासिक सिविल अस्पताल प्रबंधन पर एंबुलेंस देने से इनकार करने का आरोप लगाया। सखाराम का कहना है, वह और उनकी 26 वर्षीय पत्नी अविता दो बच्चों के साथ ठाणे जिले के बदलापुर में ईंट भट्टे पर काम करते थे। 11 जून को अविता को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो सुबह से ही एंबुलेंस के लिए कॉल किया, लेकिन कोई नहीं आया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, गांव की आशा कार्यकर्ता भी नहीं थी। फिर खोडाला प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) ले जाने के लिए निजी वाहन की व्यवस्था की। अविता ने कहा, पीएचसी पहुंचने के बाद उसे एक घंटे से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा। बाद में उसे मोखदा ग्रामीण अस्पताल में रेफर किया गया। उन्होंने मुझे एक कमरे में अलग कर दिया। मेरे पति ने विरोध किया तो उन्होंने पुलिस को बुलाया, जिसने उन्हें पीटा मोखदा के डॉक्टरों ने भ्रूण की दिल की धड़कन रिकॉर्ड नहीं कर पाने के बाद नासिक सिविल अस्पताल में रेफर करने की सलाह दी, क्योंकि एंबुलेंस नहीं थी, इसलिए 25 किलोमीटर दूर आसे गांव से एक एंबुलेंस बुलाई गई। उन्होंने बताया कि नासिक में 12 जून को 1:30 बजे मृत बच्ची को जन्म दिया। सुबह अस्पताल ने बच्ची का शव सखाराम को सौंप दिया, लेकिन शव को घर ले जाने के लिए एंबुलेंस देने से इनकार कर दिया। सखाराम का कहना है कि, थैले में शव को लेकर जाने पर किसी ने नहीं पूछा कि मैं क्या लेकर जा रहा हूं। उसी दिन शव को गांव में दफना दिया। 13 जून को पत्नी को लाने के लिए भी एंबुलेंस नहीं दी गई। कमजोर अवस्था में पत्नी बस से घर लौटी। सखाराम ने कहा, उन्होंने कोई दवा भी नहीं दी।

मोखाडा ग्रामीण अस्पताल के डॉ. भाऊसाहेब चत्तर ने घटना के क्रम की पुष्टि की। उन्होंने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, बच्चा गर्भ में ही मर चुका था। हमारे केंद्र की एंबुलेंस खराब हो गई थी, इसलिए हमने आसे से एक एम्बुलेंस मंगवाई। वह वास्तव में बच्चे के शव के साथ बस में यात्रा कर रहा था। चत्तर ने यह भी दावा किया कि अस्पताल ने वापसी की यात्रा के लिए एंबुलेंस की पेशकश की थी, लेकिन सखाराम ने कथित तौर पर इन्कार कर दिया और एक छूट पर हस्ताक्षर किए- कुछ ऐसा, जिससे पिता इन्कार करते हैं। उन्होंने कहा कि आदिवासी दंपति को हरसंभव सहायता प्रदान की गई।

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