मप्र की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ज्यादा11.05 प्रतिशत

वित्तीय वर्ष 2024-25का आर्थिक सर्वेक्षण विधानसभा में पेश

खरी खरी संवाददाता

भोपाल। मध्यप्रदेश विधानसभा में मंगलवार को प्रस्तुत मोहन यादव सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण मे वित्तीय वर्ष 2024-25 में राज्य की विकास दर 11.05 प्रतिशत बताई गई है जो राष्ट्रीय औसत विकास दर से ज्यादा है। इस अवधि में राज्य की जीडीपी 15.03 लाख करोड़ बताई गई है। इस ऊंची छलांग का प्रमुख कारण राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को बताया गया है।

मध्यप्रदेश की  डा मोहन यादव सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट से एक दिन पहले मंगलवार को सदन में वित्तीय वर्। 2024-25 का आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। यह सर्वेक्षण दावा करता है कि प्रदेश की आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधार आया है। राज्य की विकास दर 11.05% रही, जो राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा है। पिछले दो दशकों के सरकारी प्रयासों को इस सफलता का श्रेय दिया गया है। सरकार विकसित भारत के सपने को साकार करने के लिए ‘विकसित मध्य प्रदेश’ बनाने पर काम कर रही है। सर्वेक्षण के अनुसार, 2024-25 में राज्य का सकल खरेलू उत्पाद (जीडीपी) 15,03,305 करोड़ रुपए रहा। यह 2023-24 के 13,53,809 करोड़ रुपए (अनुमानित) से 11.05% ज़्यादा है। बीते दो दशकों में मध्य प्रदेश ‘बीमारू’ राज्य से उबरकर तेजी से विकास करने वाला राज्य बन गया है। इसमें कल्याणकारी योजनाओं का बड़ा योगदान है। प्रति व्यक्ति आय में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। 2011-12 में यह 38,497 रुपए थी, जो 2024-25 में बढ़कर 1,52,615 रुपए हो गई।

प्राथमिक क्षेत्र का अधिक योगदान

वित्तीय वर्ष 2024-25 में प्राथमिक क्षेत्र का GSDP में 44.36% योगदान रहा। द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 19.03% और तृतीयक क्षेत्र का 36.61% रहा। इस प्रगति के बावजूद, राज्य की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है। सर्वेक्षण में औद्योगिक निवेश में तेजी का भी जिक्र है। दिसंबर 2024 तक 4 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा के प्रस्तावों को मंजूरी मिली है। इनसे 4 लाख नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है। पूंजी निवेश और औद्योगिक गतिविधियों से राज्य के विकास को और गति मिलेगी। हालांकि, GSDP में उद्योग क्षेत्र का हिस्सा 19.36% से घटकर 19.03% हो गया है। कृषि क्षेत्र का योगदान भी 31.10% से घटकर 30.90% रह गया है।कृषि और उद्योग क्षेत्र के GSDP में योगदान में मामूली गिरावट चिंता का विषय है। सरकार को इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। किसानों को आधुनिक तकनीक और बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए। उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नई नीतियां बनानी होंगी। इससे राज्य का संतुलित विकास होगा और सभी वर्गों को इसका लाभ मिलेगा। मध्यप्रदेश के इस बदलाव की कहानी वाकई काबिले तारीफ है। दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार (1990-2003) के दौरान मध्य प्रदेश को ‘बीमारू’ राज्य कहा जाता था। तब राज्य की औसत आय राष्ट्रीय औसत के एक तिहाई से भी कम थी। आज, यह राज्य निरंतर शासन और विकास की बदलाव लाने की ताकत का प्रमाण है। यह दर्शाता है कि सही नीतियों और योजनाओं से कैसे पिछड़े राज्य भी तरक्की की राह पर आगे बढ़ सकते हैं।
विकसित मध्य प्रदेश का लक्ष्य

मोहन यादव सरकार ने ‘विकसित मध्य प्रदेश’ का लक्ष्य रखा है। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकसित भारत” के विजन के अनुरूप है। सरकार का ध्यान सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास करने पर है। इसमें कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र शामिल हैं। साथ ही, सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर भी ध्यान दे रही है। इससे राज्य के लोगों का जीवन स्तर सुधरेगा और रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।राज्य में बढ़ते औद्योगिक निवेश से रोज़गार के नए अवसर पैदा होंगे। इससे युवाओं को अपने ही राज्य में काम करने का मौका मिलेगा। सरकार का लक्ष्य राज्य को निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाना है। इसके लिए नीतियों को सरल बनाया जा रहा है और बुनियादी ढांचे को मज़बूत किया जा रहा है।

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