सिर्फ ढाई रु के कमीशन के लिए बच्चों को मौत का सिरप लिखता रहा डाक्टर

खरी खरी संवाददाता
भोपाल। मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में 23 मासूमों को मौत की नींद सुला देने वाले कफ सिरफ का प्रिसक्पशन लिखने वाले ड़ा प्रवीण सोनी को सिरप की हर बोतल पर लगभग ढाई रुपए कमीशन मिलता था। सिर्फ इस कमीशन की लालच मे डा सोनी यही कफ सिरप इलाजे के पर्चे पर लिखता था।
छिंदवाड़ा से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जिसने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया है, जहां इलाज के नाम पर 23 मासूम जिदगियां चली गईं और अब सामने आया है कमीशन का काला खेल। पुलिस का दावा है कि आरोपी डॉक्टर ने कथित तौर पर 10% कमीशन लेकर मिलावटी कफ सिरप पर्चे पर लिख दिया। पुलिस की मानें तो हर बोतल पर 2।45 रुपए कमीशन के लिए डॉ। प्रवीण सोनी हर बच्चे के लिए कफ सिरप लिखता रहा। अब इस कफ सिरप को बनाने वाली कंपनी के मालिक और बच्चों की बीमारी के पर्चे पर कफ सिरप लिखने वाला डॉक्टर प्रवीण सोनी दोनों पुलिस की गिरफ्त में हैं। पुलिस की मानें तो डॉक्टर प्रवीण सोनी ने खुद अपने बयान में कहा कि उसे हर बोतल पर 10 फीसद कमीशन मिलता था। यही नहीं डॉ। प्रवीण सोनी जो दवा लिखते थे, उसकी बिक्री भी उनकी पत्नी और भतीजे की दवा की दुकान से होती थी। हालांकि अभी तक इस मामले में डॉक्टर सोनी के किसी रिश्तेदार की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
छिंदवाड़ा एसपी अजय पांडे ने कहा कि डॉक्टर सोनी के अलावा किसी को गिरफ्तारी या रिमांड पर नहीं लिया गया है, लेकिन मामला खुला है और इस मामले में जैसी जरूत होगी उस हिसाब से कार्रवाई की जाएगी। हालांकि डॉक्टर सोनी के वकील का कहना है कि ये सारे आरोप झूठे हैं। डॉ प्रवीण सोनी के वकील पवन शुक्ला ने कहा कि पुलिस को कहानी पूरी करनी है। कोई सीधा आरोप नहीं है। तकनीकी तौर पर संलिप्त करने के लिए इस बात की स्टोरी गढी गई। साथ ही उन्होंने कहा कि 10 प्रतिशत कमीशन की बात झूठी है।
पुलिस की जांच रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि 18 दिसंबर 2023 को ही केन्द्र ने पूरे देश में ये दिशानिर्देश दिये थे कि चार साल से कम उम्र के बच्चों को फिक्स्ड डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाएं न दी जाएं, फिर भी डॉक्टर सोनी ने ऐसी दवा लिखी। उन्हें पता लग गया था कि इससे बच्चों की किडनी खराब हो रही है, फिर भी वे दवा लिखते रहे।
करीब 10 साल पहले मध्य प्रदेश मेडिकल काउंसिल में एक शिकायत हुई थी कि प्रदेश के 14 जिलों के 20 बड़े और प्रतिष्ठित प्राइवेट डॉक्टर एक फार्मा कंपनी के खर्च पर सपरिवार इटली की सैर कर आए थे। इसके एवज में इन डॉक्टरों ने कंपनी की दवाएं मरीजों को लिखी थी। साल 2008 से 2011 के बीच एक और बड़ा मामला सामने आया था, जिसमें कई सरकारी डॉक्टरों पर मरीजों की जानकारी और सहमति के बिना उन पर अवैध रूप से ड्रग ट्रायल के आरोप लगे थे। डॉक्टरों के अलावा फार्मा कंपनियों पर भी सरकार के यूनिफॉर्म कोड फॉर फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रेक्टिस के तहत कार्रवाई हो सकती थी, लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ।